Dhanbad Protest: कुड़मी समाज के आंदोलन से रेलवे का चक्का जाम, वंदे भारत और राजधानी एक्सप्रेस रद्द
धनबाद और आसपास के रेलवे मंडलों में कुड़मी समाज के आंदोलन का बड़ा असर देखने को मिला। अनुसूचित जनजाति का दर्जा मांग रहे प्रदर्शनकारियों ने पटरियों पर बैठकर रेल चक्का जाम कर दिया, जिससे वंदे भारत और राजधानी एक्सप्रेस जैसी कई बड़ी ट्रेनें रद्द करनी पड़ीं।
धनबाद, झारखंड का एक अहम औद्योगिक और रेलवे हब, शनिवार को एक बार फिर सुर्खियों में आ गया। वजह थी कुड़मी समाज का आंदोलन, जिसने पूरे पूर्वी रेलवे और दक्षिण-पूर्व रेलवे के नेटवर्क को हिलाकर रख दिया। अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मांग को लेकर कुड़मी समाज के लोगों ने रेल पटरियों पर बैठकर रेल चक्का जाम कर दिया।
इस आंदोलन का असर इतना व्यापक रहा कि वंदे भारत एक्सप्रेस और नई दिल्ली-रांची राजधानी एक्सप्रेस जैसी बड़ी ट्रेनों को रद्द करना पड़ा। वहीं दर्जनों पैसेंजर और इंटरसिटी ट्रेनें या तो रास्ते से लौटा दी गईं या फिर बदले हुए मार्ग से चलानी पड़ीं।
आंदोलन का असर कहाँ-कहाँ?
धनबाद रेल मंडल के प्रधानखंता, पारसनाथ, चंद्रपुरा, बरकाकाना, राय, मेसरा, जोगेश्वर विहार और चरही स्टेशन पर कुड़मी समाज के लोग रेल पटरी पर बैठ गए। रांची और चक्रधरपुर रेल मंडल में भी मूरी, सिनी, कांड्रा, गम्हरिया, चांडिल, नीमडीह और अन्य स्थानों पर ट्रेनों की आवाजाही रोक दी गई।
रेलवे की रिपोर्ट के अनुसार –
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28 ट्रेनों को रद्द करना पड़ा
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23 ट्रेनें बीच रास्ते से लौटा दी गईं
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21 ट्रेनों को बदले मार्ग से चलाया गया
यानी पूरे दिन यात्रियों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ा।
कौन-कौन सी बड़ी ट्रेनें रद्द हुईं?
इस आंदोलन की वजह से रद्द हुई ट्रेनों की सूची लंबी है। इनमें कुछ अहम नाम हैं:
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रांची-नई दिल्ली राजधानी एक्सप्रेस
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पटना-सिंगरौली एक्सप्रेस
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पटना-टाटानगर वंदे भारत एक्सप्रेस
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धनबाद-हावड़ा ब्लैक डायमंड एक्सप्रेस
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रांची-गोड्डा एक्सप्रेस (वाया भागलपुर)
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रांची-पटना जनशताब्दी एक्सप्रेस
इसके अलावा कई मेमू और पैसेंजर ट्रेनों को भी कैंसल करना पड़ा।
आंदोलन के पीछे की पृष्ठभूमि
दरअसल, कुड़मी समाज लंबे समय से अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा मांग रहा है। ऐतिहासिक रूप से कुड़मी समाज खुद को आदिवासी मानता है, लेकिन सरकारी वर्गीकरण में यह अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) में आता है।
ब्रिटिश काल में कुड़मी समुदाय को कुछ स्थानों पर आदिवासी की श्रेणी में शामिल किया गया था। लेकिन 1931 की जनगणना के बाद इन्हें आदिवासी सूची से बाहर कर दिया गया। स्वतंत्र भारत में भी इन्हें एसटी की सूची में शामिल नहीं किया गया। यही कारण है कि पिछले दो दशकों से यह समाज बार-बार रेल चक्का जाम और बड़े प्रदर्शन करके अपनी मांग उठा रहा है।
यात्रियों की मुश्किलें
शनिवार को रेलवे प्लेटफॉर्म और कोचों में अफरा-तफरी का माहौल रहा। कई यात्री जो वंदे भारत या राजधानी एक्सप्रेस से सफर करने वाले थे, उन्हें अचानक कैंसिलेशन की जानकारी मिली।
एक यात्री ने नाराज़गी जाहिर करते हुए कहा – “हमने हफ्तों पहले टिकट बुक किया था। अब अचानक ट्रेन कैंसल कर दी गई। हमें न होटल मिला, न कोई विकल्प।”
दूसरी तरफ आंदोलनकारियों का कहना है कि “जब तक हमें आदिवासी दर्जा नहीं मिलेगा, हमारा संघर्ष जारी रहेगा।”
आगे क्या?
रेलवे ने यात्रियों से अपील की है कि वे सफर पर निकलने से पहले अपनी ट्रेन की स्थिति अवश्य जांच लें। साथ ही बताया गया कि कुछ ट्रेनें रविवार यानी 22 सितंबर को भी रद्द रहेंगी, जिनमें नई दिल्ली-रांची राजधानी एक्सप्रेस और सिंगरौली-पटना एक्सप्रेस शामिल हैं।
कुड़मी समाज का यह आंदोलन केवल रेल यातायात को नहीं रोकता, बल्कि यह सवाल भी खड़ा करता है कि क्या सरकार उनकी मांगों पर गंभीरता से विचार करेगी? जब तक इसका हल नहीं निकलता, यात्रियों को ऐसे रेल चक्का जाम का सामना बार-बार करना पड़ सकता है।
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