Chaibasa Crisis: चाईबासा में रात के अंधेरे में पुलिस का खौफनाक लाठीचार्ज! ढोल-नगाड़ों पर नाचते आदिवासी क्यों बन गए अचानक शिकार?
क्या आप जानते हैं कि कोल्हान के ताबो चौक में अनिश्चितकालीन धरना दे रहे आदिवासी समुदाय के लोगों पर पुलिस ने रात 11:30 बजे लाठीचार्ज क्यों किया? वे कौन सी "नो एंट्री" की मांग थी जिसके लिए सैकड़ों मौतें हो चुकी हैं? ढोल-नगाड़ों के साथ चल रहे इस ऐतिहासिक आंदोलन को अचानक क्यों कुचला गया? पूरी सच्चाई जानने के लिए तुरंत पढ़ें!
चाईबासा, 28 अक्टूबर 2025 – कोल्हान क्षेत्र के चाईबासा स्थित ताबो चौक में लोक आंदोलन की एक अभूतपूर्व और दुखद गाथा लिखी गई। भारी ट्रकों के अनियंत्रित परिचालन से होने वाली लगातार मौतों को रोकने की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरना दे रहे स्थानीय लोगों और आदिवासी समाज पर देर रात पुलिस प्रशासन ने अचानक लाठीचार्ज कर दिया। इस घटना ने आंदोलनकारियों के शांतिपूर्ण प्रयास को बलपूर्वक कुचलने की एक गंभीर मिसाल पेश की है।
जनता की मांग, प्रशासन की उदासीनता: 'नो एंट्री' का सवाल
आंदोलन का मुख्य कारण अत्यंत संवेदनशील और मानवीय था। स्थानीय निवासियों का कहना था कि दिन के समय बड़ी-बड़ी ट्रक गाड़ियों के चलने की वजह से सैकड़ों आम नागरिक और स्कूल के बच्चों की भीषण सड़क दुर्घटनाओं में मृत्यु हो चुकी है। इस जानलेवा समस्या को रोकने के लिए उनकी एकमात्र मांग थी कि दिन के समय इन वाहनों के लिए 'नो एंट्री' लागू की जाए।
यह आंदोलन इस बात का प्रमाण है कि झारखंड में खनन और परिवहन के दबाव ने आम जनता के जीवन को किस कदर खतरे में डाल दिया है। अपनी मांग मनवाने के लिए ही जनता सड़कों पर उतरने को मजबूर हुई थी।
ताबो चौक पर डेरा: जब सड़क बनी आंदोलन का मंच
प्रदर्शनकारियों ने अपनी बात सीधे मंत्री आवास तक पहुँचाने की योजना बनाई थी, लेकिन पुलिस प्रशासन ने उन्हें ताबो चौक सड़क पर ही रोक दिया। इस कारण हजारों की संख्या में लोग सड़क पर ही जमा हो गए। अनिश्चितकालीन धरना होने के कारण यह भीड़ शाम ढलते-ढलते आंदोलन के एक अनोखे रूप में बदल गई।
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सामुदायिक भोजन: लोगों ने सड़क को ही अपना डेरा बना लिया। रात भर वहाँ रुकने की तैयारी के तहत सामुदायिक रूप से खाना बनाया गया और लोगों ने सड़क पर ही सब्जी और रोटी बनाकर खाया।
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सांस्कृतिक मोर्चा: आंदोलन में चाईबासा के आदिवासी समाज के लोगों की भागीदारी ने एक अद्भुत ऊर्जा भर दी। अपने पारंपरिक ढोल-नगाड़ों और बाजे की थाप पर नाचते हुए वे एक तरफ से आंदोलन का मोर्चा संभाले हुए थे। यह दृश्य न केवल सुंदर था, बल्कि प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती भी बन गया, जिससे उनके पसीने छूट गए।
रात के अंधेरे में लाठीचार्ज: प्रशासन ने क्यों चुना यह वक्त?
शांतिपूर्ण ढंग से चल रहे इस आंदोलन को प्रशासन ने रात के अंधेरे में बलपूर्वक कुचलने का निर्णय लिया। देर रात करीब 11:30 बजे, रात का फायदा उठाते हुए, पुलिस प्रशासन ने धरना प्रदर्शनकारियों पर अचानक भारी लाठीचार्ज कर दिया।
यह कार्रवाई न सिर्फ अमानवीय थी, बल्कि यह सवाल भी खड़ा करती है कि क्या लोकतंत्र में अपनी जान की सुरक्षा मांगने पर लाठी ही एकमात्र जवाब है? आंदोलनकारियों को तितर-बितर करने के लिए की गई इस कार्रवाई में कई लोगों को चोटें आई हैं।
यह घटना दर्शाती है कि जब बात आम जनता की सुरक्षा और खनन माफियाओं के हितों की आती है, तो प्रशासन किस ओर खड़ा होता है। चाईबासा का यह आंदोलन फिलहाल कुचल दिया गया है, लेकिन 'नो एंट्री' की मांग और इस लाठीचार्ज की याद कोल्हान के इतिहास में एक दर्दनाक अध्याय के रूप में दर्ज हो गई है।
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