Bokaro Tragedy Case : भगवान विश्वकर्मा विसर्जन में दामोदर नदी ने ली दो सगे भाइयों की जान, गांव में मचा कोहराम
बोकारो में विश्वकर्मा पूजा विसर्जन के दौरान बड़ा हादसा, दामोदर नदी में डूबे दो सगे भाई। बिहार से आए युवक की डूबकर मौत से गांव में मातम, गोताखोरों की तलाश जारी।

झारखंड के बोकारो से एक दिल दहला देने वाली खबर सामने आई है। शुक्रवार की देर शाम भगवान विश्वकर्मा पूजा के प्रतिमा विसर्जन के दौरान दामोदर नदी ने दो सगे भाइयों को अपनी लहरों में समा लिया। यह हादसा बोकारो जिले के बेरमो थाना क्षेत्र के फुसरो के करगली गेट स्थित फिल्टर प्लांट के समीप हुआ, जहां प्रतिवर्ष हजारों श्रद्धालु पूजा विसर्जन के लिए पहुंचते हैं।
डूबने वाले युवकों की पहचान राकेश कुमार (22 वर्ष) और अंकित कुमार (18 वर्ष) के रूप में हुई है। दोनों सगे भाई बिहार के जहानाबाद जिले के तेलहाड़ा निवासी विधु प्रसाद के पुत्र थे। यह दोनों कुछ दिन पहले ही अपने मामा शिव विनय कुमार के घर करगली तीन नंबर में विश्वकर्मा पूजा के उत्सव में शामिल होने आए थे।
हादसे की भयावह घड़ी
प्रतिमा विसर्जन का कार्यक्रम चल रहा था, चारों ओर ढोल-नगाड़े और जयकारे की आवाज गूंज रही थी। इसी बीच अचानक दोनों भाई नदी के गहरे हिस्से में चले गए। देखते ही देखते चीख-पुकार मच गई। स्थानीय लोगों ने उन्हें बचाने की कोशिश की, लेकिन तेज धारा ने दोनों को निगल लिया।
घटना की जानकारी मिलते ही बेरमो थाना प्रभारी रोहित कुमार सिंह पुलिस बल के साथ मौके पर पहुंचे। आसपास के ग्रामीण नदी किनारे इकट्ठा हो गए। गोताखोरों को बुलाया गया, लेकिन खबर लिखे जाने तक दोनों का कोई सुराग नहीं लग सका था।
परिवार पर टूटा दुखों का पहाड़
मौके पर पहुंचे परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल है। पिता विधु प्रसाद को जैसे विश्वास ही नहीं हो रहा कि कुछ घंटे पहले हंसते-खेलते बेटे अब हमेशा के लिए उनसे दूर चले गए हैं। पूरे इलाके में मातम पसरा हुआ है और हर किसी की जुबां पर यही सवाल है कि आखिर इस तरह की घटनाओं को रोका कैसे जाए।
दामोदर नदी का इतिहास और हादसों का सिलसिला
झारखंड-बिहार की जीवनरेखा कही जाने वाली दामोदर नदी न केवल औद्योगिक क्षेत्र का सहारा है बल्कि पूजा-पाठ और विसर्जन का भी प्रमुख स्थल मानी जाती है। लेकिन यह नदी हादसों की गवाह भी रही है।
पिछले कई वर्षों में विश्वकर्मा पूजा, दुर्गा पूजा और छठ महापर्व के दौरान दामोदर में डूबने की घटनाएं दर्ज की जाती रही हैं। स्थानीय लोग इसे “खतरनाक धारा” कहते हैं क्योंकि इसके तल में अचानक गहराई आ जाती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि प्रशासन को हर साल ऐसे अवसरों पर एनडीआरएफ और डाइविंग टीम की तैनाती करनी चाहिए, ताकि इस तरह के हादसों को समय रहते टाला जा सके।
श्रद्धा और सुरक्षा का सवाल
विश्वकर्मा पूजा झारखंड और बिहार के औद्योगिक क्षेत्रों में बड़े धूमधाम से मनाई जाती है। मजदूर और कारखानों में काम करने वाले लोग भगवान विश्वकर्मा से सुरक्षा और तरक्की की कामना करते हैं। लेकिन हर साल पूजा के बाद विसर्जन के दौरान सुरक्षा लापरवाही सवाल खड़े करती है।
स्थानीय नागरिकों का कहना है कि प्रशासन को विसर्जन स्थल पर बैरिकेडिंग, गोताखोरों और मेडिकल टीम की मौजूदगी सुनिश्चित करनी चाहिए थी। यदि ऐसी व्यवस्था पहले से होती, तो शायद आज दो मासूम जिंदगियां बचाई जा सकती थीं।
बोकारो की इस त्रासदी ने एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आखिर श्रद्धा और आस्था के बीच सुरक्षा क्यों पीछे छूट जाती है। दो परिवारों ने अपने लाल खो दिए और दामोदर नदी ने फिर एक बार अपना रौद्र रूप दिखा दिया।
अब सवाल यह है कि क्या प्रशासन इससे सबक लेगा और आने वाले समय में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोक पाएगा? या फिर हर साल विसर्जन के बाद कोई न कोई परिवार यूं ही अपनों की लाश ढूंढने को मजबूर होगा।
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