SCO 2025: क्या मोदी-जिनपिंग का ‘ड्रैगन और हाथी का एक साथ आना’ नारा भारत को फिर धोखा देगा?
SCO सम्मेलन 2025 में मोदी-जिनपिंग की मुलाकात ने भारत-चीन संबंधों में नई उम्मीद जगाई, लेकिन क्या यह आत्मनिर्भर भारत के वादों को पूरा कर पाएगा? जानें क्यों भारत अब भी अमेरिका और चीन के बीच फंसा है।
तियानजिन, चीन (2 सितंबर 2025): शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के 25वें शिखर सम्मेलन का समापन हो चुका है, जहां भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात ने दोनों देशों के बीच तनावपूर्ण संबंधों में एक नई उम्मीद जगाई है। तियानजिन में 31 अगस्त से 1 सितंबर तक चले इस सम्मेलन में मोदी और जिनपिंग ने सीमा शांति, विकास साझेदारी और बहुपक्षीय विश्व व्यवस्था पर चर्चा की। लेकिन क्या यह मुलाकात भारत की आर्थिक चुनौतियों को हल कर पाएगी? पिछले साल चीन का बहिष्कार करने वाले भारत अब अमेरिका के खिलाफ बहिष्कार की बात कर रहा है, जबकि मोदी सरकार की 'आत्मनिर्भर भारत' की नीति अभी भी अधर में लटकी नजर आ रही है।
सम्मेलन के दौरान जारी तियानजिन घोषणापत्र में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) में सहयोग मजबूत करने की प्रतिबद्धता दोहराई गई, जो भारत और चीन जैसे उभरते बाजारों के लिए महत्वपूर्ण है। मोदी-जिनपिंग की द्विपक्षीय बैठक में सीमा विवाद पर शांति बनाए रखने और आर्थिक सहयोग बढ़ाने पर जोर दिया गया। लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यह 'ड्रैगन और हाथी' का नारा सिर्फ सतही लगता है, क्योंकि इतिहास गवाह है कि 'हिंदी-चीनी भाई-भाई' के नारे के बाद 1962 की जंग में भारत को मुंह की खानी पड़ी थी। क्या चीन फिर से भारत के पीछे 'कंजर घोंपने' की तैयारी में है?
पिछले साल तक भारतीय सोशल मीडिया और बाजार में 'बायकॉट चाइना' का शोर था, लेकिन अब डोनाल्ड ट्रंप की छाया में अमेरिकी टैरिफ के खिलाफ 'बायकॉट अमेरिका' की आवाजें सुनाई दे रही हैं। मोदी जी का 56 इंच का सीना लेकर भारत का इकोसिस्टम विकसित करने का वादा 2014 से ही चल रहा है, जब NDA सरकार ने 'आत्मनिर्भर भारत' के नारे लगवाए थे। लेकिन आज भी भारत की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से दो बड़े उद्योगपतियों - अंबानी और अडानी - पर टिकी हुई है, जो भविष्य के लिए खतरनाक संकेत है। नेहरू जी ने भी अपने समय में बहुत काम किया, और मोदी जी ने भी, लेकिन दोनों ही अपने-अपने दौर के महान नेता हैं। सवाल यह है कि BJP अभी भी कांग्रेस को कोस रही है, जबकि सत्ता में आने के 11 साल बाद भी वादे पूरे क्यों नहीं हो पा रहे?
सम्मेलन में अमेरिकी व्यापार युद्ध का मुद्दा भी छाया रहा, जहां SCO सदस्यों ने सामान्य शिकायतें साझा कीं। भारत, जो आजादी के बाद से 'मिस्टर डिपेंडेबल' बना हुआ है - कभी अमेरिका का सहारा, कभी चीन का - अब पाकिस्तान से तुलना करने की बजाय विश्व के साथ कदम मिलाकर चलने की जरूरत है। पाकिस्तान को भूलकर हमें अपना पूरा इकोसिस्टम विकसित करना होगा, ताकि आयात पर निर्भरता कम हो। किसी भी देश से आयात करते समय एक क्लॉज जोड़ना चाहिए कि 5 साल में पूरी तकनीक और विकास भारत में शुरू हो। लेकिन मोदी सरकार चुनावी वादों के बावजूद विदेशी मैन्युफैक्चरिंग को भारत क्यों नहीं ला पा रही?
विशेषज्ञों का मानना है कि SCO जैसे मंच भारत के लिए अवसर हैं, लेकिन सतर्क रहना जरूरी है। चीन और अमेरिका दोनों से ही खतरा है, और भारत को विश्व गुरु बनने की बजाय मजबूत, स्वतंत्र अर्थव्यवस्था पर फोकस करना चाहिए। उद्योगपतियों को तकनीकी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रदान कर नए उद्यमियों को बढ़ावा देना समय की मांग है। क्या तियानजिन सम्मेलन इस दिशा में एक कदम साबित होगा, या सिर्फ एक और फोटो ऑप? समय बताएगा।
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