Saranda Naxal : सारंडा में नक्सलियों ने काटा शाल का पेड़, कोलभंगा शिव मंदिर के पास रास्ता किया जाम, 'ऑपरेशन कगार' के समर्थन में किया बंद, बाजार, स्कूल और खदान सब ठप, पोस्टर में पुलिस पर लगाए गंभीर आरोप, क्या पुलिस पर कार्यकर्ताओं को गायब करने के आरोप से बढ़ेगा टेंशन?
पश्चिमी सिंहभूम के सारंडा क्षेत्र में भाकपा माओवादियों ने 'ऑपरेशन कगार' के समर्थन में 15 अक्टूबर को सड़क जाम करके बंद कराया। कोलभंगा शिव मंदिर के पास पेड़ काटकर रास्ता अवरुद्ध किया गया। नक्सलियों ने पोस्टर लगाकर पुलिस पर फर्जी मुठभेड़ और कार्यकर्ताओं को गायब करने का गंभीर आरोप लगाया है।
झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले का सारंडा क्षेत्र, जो कभी एशिया के सबसे घने जंगलों में गिना जाता था, एक बार फिर माओवादी गतिविधियों के कारण दहशत और भय का केंद्र बन गया है। भाकपा माओवादी संगठन ने अपने 'ऑपरेशन कगार' के समर्थन में 15 अक्टूबर को बुलाए गए बंद को सफल बनाने के लिए कोलभंगा शिव मंदिर के पास सड़क को पूरी तरह से अवरुद्ध कर दिया। इस तरह से शाल के बड़े पेड़ों को काटकर और बैनर-पोस्टर लगाकर विरोध जताने की घटना ने स्थानीय जनजीवन और अर्थव्यवस्था को पूरी तरह ठप कर दिया।
सारंडा का यह क्षेत्र इतिहास में हमेशा से ही सरकार और नक्सलियों के बीच की जंग का मैदान रहा है। यह वन क्षेत्र घने पेड़ों और कठिन भूगोल के कारण नक्सलियों के लिए सुरक्षित पुलिया का काम करता रहा है। हालांकि सरकार ने विकास और सुरक्षा दोनों के मामले में कई कदम उठाए हैं, लेकिन इस तरह से सड़क जाम करके और सीधे पुलिस पर आरोप लगाकर किया गया प्रदर्शन जंगलों में बढ़ते टेंशन को दर्शाता है।
बैनरों पर गंभीर आरोप: फर्जी मुठभेड़ और यातना
माओवादी संगठन ने सिर्फ रास्ता जाम नहीं किया, बल्कि बैनरों और पोस्टरों के माध्यम से स्थानीय पुलिस और अर्द्धसैनिक बलों पर बेहद गंभीर आरोप भी लगाए हैं, जिससे पूरा मामला और ज्यादा संवेदनशील हो गया है।
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नक्सली आरोप: संगठन ने दावा किया है कि पुलिस द्वारा सादे पोशाक वाले और निहत्थे लोगों को पकड़कर फर्जी मुठभेड़ों में मारा जा रहा है। यह आरोप मानवाधिकार संगठनों के बीच एक बड़ा विवाद खड़ा कर सकता है।
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बंधकों को गायब करने का आरोप: पोस्टर में यह भी आरोप है कि गिरफ्तार किए गए लोगों को घायल अवस्था में भी यातनाएं दी जा रही हैं और उन्हें पकड़कर 'गायब' रखा जा रहा है। इस आरोप के जवाब में माओवादियों ने समान जवाब देने की चेतावनी दी है, अगर कार्यकर्ताओं को समयसीमा के भीतर अदालत में पेश नहीं किया गया।
स्थानीय जनजीवन पूरी तरह ठप
नक्सलियों द्वारा मार्ग अवरुद्ध किए जाने का सीधा असर स्थानीय ग्रामीणों, बाजारों और स्वास्थ्य सेवाओं पर पड़ा।
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बाजार और स्कूल बंद: आवाजाही पूरी तरह ठप होने से स्थानीय बाजार बंद रहे, छात्र स्कूल नहीं जा पाए और जरूरी स्वास्थ्य सेवाओं की सुलभता पर भी असर पड़ा।
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खदानों में काम ठप: यह क्षेत्र खनिज संपदा के लिए जाना जाता है। बंद के चलते खदानों में कामगारों को लेकर जाने वाले कई वाहन लौट गए या उन्हें कठिन वैकल्पिक रास्तों का इस्तेमाल करने पर मजबूर होना पड़ा। इससे स्थानीय अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ा।
स्थानीय ग्रामीणों और मजदूरों में इस घटनाक्रम के चलते असमंजस और भय का माहौल देखा गया। सारंडा में गत कुछ समय से ऐसे घटनाक्रम बढ़ने से समुदायों में डर और अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है। पुलिस और सुरक्षा बलों को अब इस सड़क को खोलने और साथ ही नक्सलियों द्वारा लगाए गए गंभीर आरोपों का जवाब देने की दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ेगा।
आपकी राय में, सारंडा जैसे दुर्गम नक्सल प्रभावित इलाकों में विकास कार्य बाधित न हो, इसके लिए स्थानीय प्रशासन और सुरक्षा बलों को कौन से दो सबसे कुशल सामुदायिक सुरक्षा मॉडल अपनाए जाने चाहिए?
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