Mango Protest: मानगो में कचरा डंपिंग का विरोध,आदिवासी ग्रामीणों की आपत्ति और उपायुक्त से जगह बदलने की मांग

मानगो नगर निगम द्वारा बेताकोचा मौजा में कचरा डंपिंग को लेकर आदिवासी ग्रामीणों का विरोध। उपायुक्त को ज्ञापन सौंपा और कचरा डंपिंग स्थान को स्थानांतरित करने की मांग। पढ़ें पूरी खबर।

Dec 11, 2024 - 16:02
Dec 11, 2024 - 16:04
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Mango Protest: मानगो में कचरा डंपिंग का विरोध,आदिवासी ग्रामीणों की आपत्ति और उपायुक्त से जगह बदलने की मांग
Mango Protest: मानगो में कचरा डंपिंग का विरोध,आदिवासी ग्रामीणों की आपत्ति और उपायुक्त से जगह बदलने की मांग

11 दिसंबर 2024: मानगो नगर निगम द्वारा बेताकोचा मौजा में कचरा डंप किए जाने की घटना ने स्थानीय आदिवासी समुदाय में रोष पैदा कर दिया है। यह मामला बुधवार को और भी गरमा गया जब आदिवासी ग्रामीणों ने ग्राम सभा और पंचायत मुखिया के नेतृत्व में उपायुक्त को ज्ञापन सौंपा। उनका कहना है कि यह कदम मानगो अंचल अधिकारी के निर्देश पर लिया गया है, लेकिन इसके लिए किसी से अनुमति नहीं ली गई।

मौजा बेताकोचा की ज़मीन आदिवासियों के लिए सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व रखती है। यहां स्थित देवीस्थान उनकी आस्था का केंद्र है और पीढ़ियों से इसका संरक्षण किया जाता रहा है। लेकिन, नगर निगम द्वारा कचरा डंप करने की कार्रवाई से आदिवासी समुदाय में गहरी नाराजगी फैल गई है। ग्रामीणों के अनुसार, इस स्थान की निकटवर्ती भूमि खेती के लिए इस्तेमाल की जाती है। कचरा डंपिंग से फसलें प्रदूषित हो सकती हैं, जिससे उनके जीवनयापन और खाद्य सुरक्षा पर प्रतिकूल असर पड़ने की आशंका है।

इतिहास को देखें तो, आदिवासी समुदायों ने हमेशा से अपनी जमीन और पर्यावरण की रक्षा के लिए संघर्ष किया है। यह उनका अधिकार और परंपरा है कि वे अपनी भूमि को स्वच्छ और सुरक्षित रखें। लेकिन अब यह मामला एक नई चुनौती पेश करता है, जहां सरकारी आदेशों और आदिवासी अधिकारों के बीच संतुलन बनाए रखना जरूरी हो गया है।

आदिवासी ग्रामीणों ने उपायुक्त से मांग की है कि कचरा डंपिंग को किसी अन्य जगह स्थानांतरित किया जाए। उनका कहना है कि अगर उनकी इस मांग को नजरअंदाज किया गया तो वे उग्र आंदोलन करने के लिए मजबूर होंगे।

स्थानीय पंचायत मुखिया ने भी इस मुद्दे की गंभीरता को स्वीकार किया है और प्रशासन से आदिवासियों की चिंता को समझने की अपील की है। उनका कहना है कि यह केवल एक पर्यावरणीय समस्या नहीं, बल्कि आदिवासी समुदाय की सामाजिक और सांस्कृतिक अस्मिता का सवाल भी है।

यदि प्रशासन इस मामले का शीघ्र समाधान नहीं निकालता, तो ग्रामीणों के द्वारा आंदोलन का अलख जगाना तय है। आदिवासी समुदायों के लिए यह केवल कचरे की समस्या नहीं, बल्कि उनके अधिकारों और सम्मान की रक्षा का सवाल है।

समाज और प्रशासन के बीच संवाद और समझ का महत्व इस मुद्दे में विशेष रूप से स्पष्ट है। अगर सही समय पर कदम नहीं उठाए गए, तो यह मामला एक बड़ा विरोध प्रदर्शन बन सकता है, जो पूरे इलाके में चर्चा का विषय बनेगा।

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Nihal Ravidas निहाल रविदास, जिन्होंने बी.कॉम की पढ़ाई की है, तकनीकी विशेषज्ञता, समसामयिक मुद्दों और रचनात्मक लेखन में माहिर हैं।