Jamshedpur Crackdown: पहाड़ों को निगल रहा था अवैध खनन, प्रशासन ने मारा छापा और जब्त की हिटाची!

जमशेदपुर के पटमदा इलाके में अवैध पत्थर खनन पर प्रशासन की बड़ी कार्रवाई, खदान से हिटाची मशीन जब्त। कई वर्षों से रैयती जमीन पर चल रहा था अवैध खनन कारोबार। जानिए पूरी रिपोर्ट और प्रशासन की रणनीति।

Apr 16, 2025 - 19:38
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Jamshedpur Crackdown: पहाड़ों को निगल रहा था अवैध खनन, प्रशासन ने मारा छापा और जब्त की हिटाची!
Jamshedpur Crackdown: पहाड़ों को निगल रहा था अवैध खनन, प्रशासन ने मारा छापा और जब्त की हिटाची!

जमशेदपुर: क्या आप जानते हैं कि झारखंड के पहाड़ किस खामोशी से हर दिन कटा-कटा कर खत्म होते जा रहे हैं? और वो भी ज़मीन के नीचे से नहीं, खुलेआम, रैयती ज़मीन पर, गांवों के बीचोबीच! जमशेदपुर के पटमदा प्रखंड अंतर्गत सिसदा गांव से आई एक चौंकाने वाली खबर ने प्रशासन को हिला कर रख दिया है। यहां बुधवार को जिला प्रशासन ने एक बड़ी कार्रवाई करते हुए अवैध पत्थर खनन में लगी हिटाची मशीन को जब्त कर लिया।

कैसे हुआ खुलासा?
अंचलाधिकारी डॉ. राजेंद्र कुमार दास को एक गुप्त सूचना मिली थी कि सिसदा गांव में अवैध खनन का काम जोरों पर है। जिला प्रशासन के निर्देश पर एक विशेष टीम गठित की गई जिसमें खनन निरीक्षक अरविंद उरांव, पटमदा डीएसपी वचनदेव कुजूर और थाना प्रभारी करमपाल भगत शामिल थे। इस टीम ने सिसदा गांव में कई खदानों का औचक निरीक्षण किया। तभी एक खदान में सक्रिय खनन मशीन (हिटाची) मिली, जिसे तत्काल जब्त कर लिया गया।

सालों से चल रहा था खेल!
सूत्रों की मानें तो जमशेदपुर निवासी और पत्थर व्यवसायी सुभाष शाही, जो गाड़ीग्राम में क्रशर प्लांट चलाते हैं, उन्होंने सिसदा गांव के अभिनव सिंह से रैयती ज़मीन लीज पर लेकर खनन का काम शुरू किया था। और यह कोई हालिया शुरुआत नहीं, बल्कि पिछले कई वर्षों से यह कारोबार शांतिपूर्वक चल रहा था, प्रशासन की नज़रों से बचते हुए।

प्रशासन की रणनीति और सख्ती
अंचलाधिकारी दास ने बताया कि इस मामले में एफआईआर दर्ज की जाएगी और कानूनी कार्रवाई की जाएगी। वहीं, खनन विभाग ने जांच का दायरा और भी बढ़ा दिया है। इससे पहले भी इको-सेंसिटिव ज़ोन के तहत ठनठनी घाटी और अन्य इलाकों में छापेमारी की गई थी, हालांकि वहां किसी तरह की सक्रियता नहीं मिली थी। लेकिन सिसदा में मिली इस हिटाची मशीन ने संकेत दे दिया है कि अवैध खनन माफिया अब भी सक्रिय हैं।

इतिहास की परतें खोलती कहानी
झारखंड, जिसे ‘खनिजों की धरती’ कहा जाता है, लंबे समय से खनन माफियाओं के लिए स्वर्ग रहा है। राज्य के कई इलाकों में रैयती जमीनों पर क्रशर प्लांट, पत्थर खदान और बालू घाट चलाए जाते हैं — बिना पर्यावरणीय मंज़ूरी और कानूनी दस्तावेजों के। 1990 के दशक से ही स्थानीय प्रशासन और खनन विभाग पर सवाल उठते रहे हैं कि आखिर ये अवैध खदानें चल कैसे रही हैं?

अब क्या होगा आगे?
प्रशासन की इस कार्रवाई से निश्चित तौर पर अवैध कारोबारियों में खलबली मच गई है। सूत्रों की मानें तो आने वाले दिनों में अन्य खदानों और क्रशर प्लांट्स पर भी शिकंजा कसा जाएगा। साथ ही रैयती ज़मीनों पर हुए अनुबंधों की भी गहन जांच की जाएगी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अवैध तरीके से कोई भी प्राकृतिक संपदा का दोहन न कर सके।

जनता की क्या भूमिका?
गांववालों का कहना है कि वे वर्षों से इस खनन के खिलाफ बोलने से डरते थे। लेकिन अब प्रशासन की सक्रियता से उनमें उम्मीद जगी है कि शायद अब गांव की ज़मीन और पर्यावरण सुरक्षित रह पाएंगे।

ये कार्रवाई सिर्फ एक हिटाची की जब्ती नहीं है, बल्कि यह एक संदेश है — कि प्रशासन अब जाग चुका है। सवाल अब यह है कि क्या आने वाले दिनों में अन्य गांवों में भी यही साहसिक कार्रवाई होगी? और क्या झारखंड अपनी खोती जा रही पहचान को फिर से बचा पाएगा?

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Nihal Ravidas निहाल रविदास, जिन्होंने बी.कॉम की पढ़ाई की है, तकनीकी विशेषज्ञता, समसामयिक मुद्दों और रचनात्मक लेखन में माहिर हैं।