Social Media Addiction: सोशल मीडिया की लत ने छीना ध्यान, अब इंसानों से ज्यादा फोकस्ड है गोल्डफिश!
पिछले 10 सालों में इंसानों की एकाग्रता 30 मिनट से घटकर केवल 7 सेकंड रह गई है। एम्स के डॉक्टरों ने चेताया कि सोशल मीडिया की लत बच्चों को गंभीर मानसिक बीमारियों की ओर धकेल रही है। जानिए इससे बचाव के लिए 'मेट फाइव परियोजना' कैसे बन रही है उम्मीद की किरण।

क्या आप जानते हैं कि आज एक इंसान की एकाग्रता की औसत अवधि गोल्डफिश से भी कम हो चुकी है? जी हां, सुनने में हैरान कर देने वाला ये तथ्य हाल ही में एम्स दिल्ली की एक रिपोर्ट में सामने आया है। सोशल मीडिया और इंटरनेट की अति-लत ने हमारे ध्यान की क्षमता को इतना प्रभावित किया है कि अब हम केवल 7 सेकंड तक ही फोकस कर पा रहे हैं — जबकि एक गोल्डफिश 9 सेकंड तक केंद्रित रह सकती है!
दिल्ली स्थित एम्स के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. नंद कुमार, डॉ. दीपिका और डॉ. निषाद अहमद ने एक संयुक्त प्रेस वार्ता में बताया कि बीते 10 वर्षों में इंसानों की एकाग्रता शक्ति 30 मिनट से घटकर महज सात सेकंड तक आ चुकी है। यह बदलाव न केवल बच्चों में बल्कि युवाओं और वयस्कों में भी तेजी से देखने को मिल रहा है।
इंटरनेट और सोशल मीडिया: कैसे बन गया मस्तिष्क का दुश्मन?
जहां एक तरफ डिजिटल दुनिया ने जानकारी तक आसान पहुंच बना दी है, वहीं दूसरी ओर इसका अत्यधिक उपयोग हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर डाल रहा है। खासकर रील्स, शॉर्ट्स और वायरल कंटेंट लगातार हमारे ब्रेन के रिवार्ड सिस्टम को एक्टिव करते हैं, जिससे डोपामिन का स्तर तो बढ़ता है, लेकिन धैर्य और ध्यान की शक्ति खत्म होती जाती है।
डॉ. नंद कुमार के मुताबिक, "लोग घंटों सोशल मीडिया पर बिता रहे हैं, लेकिन उनका मस्तिष्क अब लंबे समय तक किसी एक काम पर टिक नहीं पाता। यह स्थिति आगे चलकर हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, डिप्रेशन, और यहां तक कि अर्ली डिमेंशिया जैसी बीमारियों को जन्म दे सकती है।"
बच्चों पर सबसे बड़ा असर: चेतावनी की घंटी
सबसे चिंता की बात यह है कि यह लत अब छोटे बच्चों को भी अपनी गिरफ्त में ले रही है।
स्क्रीन टाइम बढ़ने से बच्चों की सामाजिक क्षमता, भावनात्मक संतुलन और सीखने की योग्यता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। इसके परिणामस्वरूप वे बातचीत से कतराने, अकेलापन महसूस करने और गुस्सैल व्यवहार की ओर झुकते जा रहे हैं।
समाधान की तलाश: ‘मेट फाइव’ परियोजना बनी उम्मीद की किरण
डॉ. नंद और उनकी टीम ने इस समस्या से लड़ने के लिए एक अनोखी पहल की शुरुआत की है – ‘मेट फाइव परियोजना’ (MET FIVE Project)।
इसमें पांच मुख्य गतिविधियों के माध्यम से बच्चों की एकाग्रता, सामाजिक मेलजोल और मानसिक सेहत को बेहतर बनाया जाता है।
इस परियोजना को पहले दिल्ली के चार स्कूलों में पायलट रूप में लागू किया गया, जहां चौंकाने वाले सकारात्मक नतीजे सामने आए। बच्चों में धैर्य बढ़ा, भावनात्मक समझ विकसित हुई और उन्होंने स्क्रीन टाइम में कमी करना शुरू कर दिया।
इस सफलता को देखते हुए एम्स दिल्ली ने अब इसे मेघालय के 20 स्कूलों में विस्तार दिया है, जहां बच्चों को मानसिक स्वास्थ्य के साथ-साथ सामाजिक व्यवहार में भी सुधार लाने की दिशा में प्रशिक्षित किया जा रहा है।
भविष्य की दिशा: डिजिटल बैलेंस बनाएं, ध्यान वापस लाएं
डॉक्टर्स का मानना है कि जब तक हम डिजिटल दुनिया के साथ संतुलन नहीं बनाते, तब तक ध्यान, धैर्य और मानसिक शांति की वापसी मुश्किल है।
पैरेंट्स, टीचर्स और समाज को मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि बच्चों को सही दिशा दी जाए — ताकि वे तकनीक का उपयोग करें, उसका शिकार न बनें।
तो अगली बार जब आप अपने फोन पर एक और रील देखने की सोचें — एक पल रुकिए, सोचिए, और खुद से पूछिए:
क्या मैं भी सात सेकंड की दुनिया में जी रहा हूं?
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