Saraikela Crime: हांड़िया की प्याली ने छीनी मां की जान! बहू ने सास को पीट-पीटकर मार डाला
झारखंड के सरायकेला में हांड़िया पीने के दौरान मामूली कहासुनी खौफनाक हत्या में बदल गई। बहू ने सास के सिर पर पीढ़ा मारकर उतार दिया मौत के घाट। जानिए पूरी कहानी और पुलिस की कार्रवाई।

सरायकेला-खरसावां जिले का मेरा मजंगा गांव, जहां आदिवासी परंपराएं और ग्रामीण जीवन की ठहरी हुई लय आज एक खौफनाक मोड़ पर आ गई। यहां की एक सामान्य-सी रात, जहां एक बहू अपनी सास के साथ हांड़िया पी रही थी, अचानक खून की होली में बदल गई। टोला तुरामडीह की गलियों में अब सिर्फ एक ही चर्चा है—"पालो मुंडाईन ने क्यों की अपनी सास मक्खी मुंडाईन की हत्या?"
यह घटना मंगलवार की शाम की है। गंधर्व मुंडा की पत्नी पालो मुंडाईन (28) अपनी 47 वर्षीय सास मक्खी मुंडाईन के साथ घर के पास बैठकर पारंपरिक शराब हांड़िया का सेवन कर रही थी। यह झारखंड के कई आदिवासी गांवों में आम दृश्य है, जहां पीढ़ियों से महिलाएं भी सामाजिक रूप से हांड़िया की बैठकों में शामिल होती रही हैं।
लेकिन उस रात जो हुआ, वह उस परंपरा के चेहरे पर खून का धब्बा बनकर रह गया।
क्या थी वजह?
स्थानीय लोगों के अनुसार, दोनों महिलाएं हांड़िया पीते हुए किसी बात को लेकर उलझ पड़ीं। कहासुनी बढ़ते-बढ़ते बहस में बदली और अचानक पालो ने पास में रखी बैठने की पीढ़ी उठाकर सास के सिर पर दे मारी। एक ही वार इतना भयानक था कि मक्खी मुंडाईन ने वहीं दम तोड़ दिया।
हत्या के बाद गांव में हड़कंप मच गया। लोगों ने तुरंत पंचायत के मुखिया मंगल सिंह मुंडा को सूचना दी, जिन्होंने इस दिल दहला देने वाली वारदात की खबर दलभंगा ओपी पुलिस को दी। हालांकि मंगलवार की रात हो चुकी थी, पुलिस तुरंत मौके पर नहीं पहुंच पाई।
अगली सुबह गांव में पसरा सन्नाटा
बुधवार सुबह ओपी प्रभारी रविंद्र सिंह मुंडा टीम के साथ घटनास्थल पहुंचे। मृतका का शव कब्जे में लिया गया और पोस्टमार्टम के लिए सरायकेला सदर अस्पताल भेजा गया।
इस लेख के लिखे जाने तक एफआईआर दर्ज नहीं हुई थी, लेकिन पुलिस का कहना है कि मामला पूरी गंभीरता से लिया जा रहा है और विस्तृत जांच की जा रही है।
आदिवासी समाज और घरेलू हिंसा: एक मौन संघर्ष
झारखंड के ग्रामीण आदिवासी समाज में घरेलू हिंसा कोई नई बात नहीं, लेकिन जब यह एक पारंपरिक सामाजिक क्रिया—जैसे हांड़िया पीने—के दौरान घटती है, तब यह सवाल खड़ा करता है कि क्या हम सामाजिक मर्यादाओं के नाम पर भीतर ही भीतर हिंसा को पनपने दे रहे हैं?
इतिहास गवाह है कि आदिवासी समाज में सास-बहू के रिश्ते में अपनापन और संघर्ष दोनों रहते हैं। लेकिन समय के साथ, आर्थिक दबाव, शिक्षा की कमी और मानसिक स्वास्थ्य की अनदेखी ऐसे अपराधों की जमीन तैयार कर रही है।
गांव में डर और सन्नाटा
गांव के लोग आज भी स्तब्ध हैं। एक महिला ने बताया, “ऐसा कभी नहीं हुआ गांव में... बहू-सास में झगड़े होते थे, पर हत्या? वो भी पीढ़ी से सिर कुचल देना?” यह घटना न सिर्फ एक हत्या है, बल्कि सामाजिक ताने-बाने की उस दरार की ओर इशारा करती है जिसे हम अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं।
अब क्या आगे?
पुलिस मामले की तह तक जाने की कोशिश में जुटी है। घटनास्थल से साक्ष्य जुटाए जा रहे हैं और पालो मुंडाईन को हिरासत में लेने की प्रक्रिया तेज़ कर दी गई है।
लेकिन बड़ा सवाल ये है—क्या यह हत्या सिर्फ एक बहस का नतीजा थी या किसी लंबे समय से पल रही कड़वाहट का विस्फोट?
इसका जवाब अब पुलिस जांच के बाद ही सामने आएगा, लेकिन फिलहाल मेरेा मजंगा गांव में डर, सदमा और कई अनुत्तरित सवाल हवा में तैर रहे हैं।
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