Jharkhand Convention: झामुमो के अधिवेशन में दिखी बड़ी सियासी हलचल, कल्पना सोरेन को मिल सकती है नई जिम्मेदारी
झारखंड में झामुमो का 13वां महाधिवेशन जोरदार तरीके से शुरू हुआ। शिबू सोरेन और हेमंत सोरेन की मौजूदगी में पार्टी के नए विस्तार और 2024 की जीत के बाद सियासी दिशा तय करने पर मंथन शुरू हुआ। कल्पना सोरेन को मिल सकती है नई भूमिका।

झारखंड की सियासत एक बार फिर करवट लेती दिख रही है। सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) का 13वां महाधिवेशन सोमवार से राजधानी रांची में पूरे जोश और रणनीतिक मंथन के साथ शुरू हुआ। ये सिर्फ एक पार्टी सम्मेलन नहीं, बल्कि आने वाले दिनों में राज्य की सियासी दिशा तय करने वाला ऐतिहासिक आयोजन बन चुका है।
पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष और झारखंड आंदोलन के जनक शिबू सोरेन (गुरुजी) की अध्यक्षता में यह अधिवेशन शुरू हुआ। मंच पर मुख्यमंत्री और कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन, विधायक बसंत सोरेन और कल्पना सोरेन समेत झामुमो के तमाम कद्दावर नेता मौजूद थे। खास बात यह रही कि यह महाधिवेशन बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर की जयंती के दिन शुरू हुआ, जो खुद में एक मजबूत सामाजिक और राजनीतिक संदेश देता है।
2019 की सत्ता वापसी से 2024 की दोबारा जीत तक
हेमंत सोरेन ने उद्घाटन सत्र में कहा कि झारखंड की जनता ने 2019 में डबल इंजन सरकार को उखाड़ फेंका था क्योंकि वह सरकार जनविरोधी थी। और अब 2024 में भी लोगों ने उन्हें फिर से सत्ता से दूर कर दिया। यह जनादेश साबित करता है कि झारखंड की जनता अब अपने अधिकारों और पहचान के लिए सजग हो चुकी है।
हेमंत ने कहा, “गुरुजी ने जो पौधा लगाया था, वो अब वटवृक्ष बन चुका है। अब हमारी सरकार आदिवासी, मूलवासी, दलित, पीड़ित और वंचित तबकों को उनका अधिकार दिलाने में जुटी है।”
संगठन को नए रूप में गढ़ने की तैयारी
तीन दिनों तक चलने वाले इस अधिवेशन में पार्टी के पुनर्गठन की रणनीति पर विचार किया जाएगा। झामुमो की केंद्रीय कार्यकारिणी में बड़े बदलाव संभव हैं। पार्टी को 24 जिलों में मजबूत करने के लिए विशेष रणनीति तैयार की जा रही है। कल्पना सोरेन को भी इस बार बड़ी और निर्णायक भूमिका मिल सकती है, जिससे झारखंड की राजनीति में एक नया चेहरा सामने आएगा।
क्या होगा प्रमुख एजेंडा?
महाधिवेशन के दौरान पार्टी की ओर से कई राजनीतिक प्रस्ताव पारित किए जाएंगे। इनमें सarna धर्म कोड को संविधान में मान्यता दिलाने, 1932 के खतियान को लागू करने, निजी क्षेत्र में 75% आरक्षण सुनिश्चित करने जैसे मुद्दे प्रमुख होंगे। इसके अलावा, झामुमो को राष्ट्रीय पहचान दिलाने की दिशा में भी ठोस कदम उठाने का संकल्प लिया जाएगा।
इतिहास से सबक लेकर भविष्य की तैयारी
झारखंड मुक्ति मोर्चा की नींव 1972 में पड़ी थी। उस समय शिबू सोरेन ने आदिवासियों के जल, जंगल और जमीन की लड़ाई को संगठित रूप दिया था। यह पार्टी न केवल झारखंड राज्य की मांग की प्रतीक बनी, बल्कि दशकों तक आदिवासी राजनीति का केंद्र भी रही।
इस महाधिवेशन में झामुमो के नेताओं ने उस ऐतिहासिक आंदोलन को याद किया और जनता से जुड़ाव बनाए रखने की बात दोहराई। हेमंत सोरेन ने कहा कि “हम उस लड़ाई को आगे बढ़ा रहे हैं, जो हमारे पुरखों ने शुरू की थी।”
क्या कल्पना सोरेन होंगी अगली बड़ी नेता?
महाधिवेशन में कल्पना सोरेन की मौजूदगी और उनके लिए नई भूमिका की चर्चाएं तेज हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कल्पना सोरेन को सामने लाकर झामुमो महिला नेतृत्व को भी सशक्त करना चाहता है, जिससे राज्य की राजनीति में एक नया चेहरा और नई ऊर्जा का संचार हो सके।
यह महाधिवेशन झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए सिर्फ एक आयोजन नहीं, बल्कि नई राह चुनने का अवसर है। पार्टी न केवल अपने संगठन को सशक्त बनाने जा रही है, बल्कि झारखंड की जनता को यह संदेश भी दे रही है कि अब समय उनके अधिकारों को सुनिश्चित करने का है।
इस बार का अधिवेशन झारखंड के राजनीतिक इतिहास में मील का पत्थर साबित हो सकता है — जहां न केवल नेतृत्व के पुनर्गठन की नींव रखी जाएगी, बल्कि राज्य की सामाजिक संरचना को भी नए ढंग से परिभाषित किया जाएगा।
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