Jharkhand Statement : मंत्री हफीजुल हसन के बयान ने बढ़ाया सियासी तापमान, BJP ने मांगा बर्खास्तगी
अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री हफीजुल हसन के 'शरिया संविधान से बड़ा' वाले बयान ने झारखंड की राजनीति में उबाल ला दिया है। भाजपा ने इसे इस्लामिक एजेंडा बताते हुए उन्हें मंत्रिमंडल से बाहर करने की मांग की है।

झारखंड की राजनीति एक बार फिर गर्मा गई है और इस बार केंद्र में हैं राज्य के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री हफीजुल हसन। एक निजी टीवी चैनल को दिए बयान में उन्होंने कहा, "शरिया मेरे लिए संविधान से ऊपर है। हम कुरान को सीने में रखते हैं और हाथ में संविधान।" इस बयान के बाद विपक्षी भारतीय जनता पार्टी ने मोर्चा खोलते हुए इसे 'इस्लामिक एजेंडा' बताया और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से उनकी तुरंत बर्खास्तगी की मांग की।
लेकिन सवाल उठता है कि क्या यह सिर्फ एक व्यक्तिगत विचार था या इसके पीछे कोई गहरी राजनीतिक रणनीति छुपी हुई है?
BJP का तीखा प्रहार
नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी ने सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रिया दी और कहा, "हफीजुल हसन सिर्फ अपनी कौम के प्रति वफादार हैं। उन्होंने चुनाव के समय गरीब, दलित और आदिवासियों से वोट मांगा था लेकिन अब वे इस्लामिक एजेंडा चलाने में जुटे हैं।" उन्होंने इसे संथाल परगना की सांस्कृतिक पहचान और आदिवासी अस्मिता के लिए खतरा बताया।
मरांडी का यह बयान सिर्फ एक राजनीतिक प्रतिक्रिया नहीं है, बल्कि यह झारखंड की सामाजिक संरचना को लेकर एक गंभीर सवाल भी उठाता है। क्या एक संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति धार्मिक कानून को संविधान से ऊपर मान सकता है?
संवैधानिक जिम्मेदारी बनाम धार्मिक आस्था
भारत का संविधान, जिसे बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने बनाया था, हर नागरिक को समान अधिकार देता है। ऐसे में अगर एक मंत्री खुले मंच से कहता है कि उसके लिए धार्मिक कानून संविधान से ऊपर है, तो यह संवैधानिक मर्यादाओं की अवहेलना नहीं तो और क्या है?
इतिहास गवाह है कि जब-जब नेताओं ने धर्म को राजनीति में घुसाया है, नतीजे सामाजिक विद्वेष और असंतुलन के रूप में सामने आए हैं। आज जब झारखंड जैसे बहु-सांस्कृतिक राज्य में सामाजिक समरसता की जरूरत सबसे ज्यादा है, तब ऐसे बयान सिर्फ आग में घी डालने का काम करते हैं।
हेमंत सरकार की चुप्पी क्यों?
अब तक मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस पूरे विवाद पर चुप्पी साध रखी है। जबकि यह मुद्दा केवल विपक्ष का नहीं, बल्कि राज्य के संवैधानिक मूल्यों और सामाजिक ताने-बाने से जुड़ा है। अगर हेमंत सोरेन और राहुल गांधी जैसे नेता सच में संविधान के प्रति निष्ठा रखते हैं, तो उन्हें यह तय करना होगा कि क्या हफीजुल हसन जैसे मंत्री मंत्रिमंडल में बने रहने लायक हैं?
यह पहली बार नहीं है...
गौर करने वाली बात यह है कि हफीजुल हसन विवादों से पहले भी जुड़े रहे हैं। 2022 में भी उन्होंने धार्मिक प्रतीकों को लेकर एक बयान दिया था, जिस पर काफी बवाल हुआ था। लेकिन तब मामला जल्द शांत हो गया। इस बार मामला सीधे संविधान और धार्मिक कानून की टकराहट से जुड़ा है, जिससे पीछे हटना मुश्किल दिख रहा है।
आगे क्या?
अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या हेमंत सोरेन राजनीतिक दबाव में झुकते हैं या फिर संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के लिए कोई ठोस कदम उठाते हैं। भाजपा ने इस मुद्दे को आगामी लोकसभा चुनाव 2024 से जोड़ते हुए इसे बड़ा राजनीतिक हथियार बना लिया है।
इस विवाद से यह भी साफ हो गया है कि झारखंड में आने वाले दिनों में धर्म और राजनीति का घालमेल और तेज होगा, जो राज्य की सामाजिक एकता के लिए खतरे की घंटी बन सकता है।
हफीजुल हसन का 'शरिया बनाम संविधान' बयान एक सामान्य प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि एक राजनीतिक तूफान की शुरुआत है। यह झारखंड की सांस्कृतिक पहचान, संविधान की मूल भावना, और राज्य सरकार की नैतिक जिम्मेदारी—तीनों पर एक बड़ा सवालिया निशान खड़ा करता है। अब देखना ये है कि हेमंत सोरेन इस राजनीतिक पेंच से खुद को कैसे बाहर निकालते हैं।
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