Gurabanda Loot: पन्ना की अवैध लूट का काला राज! गुड़बांदा में छापेमारी के बाद दिखे गहरे साक्ष्य, बेशकीमती पन्ना माफियाओं के हाथों में, सवाल- किसके संरक्षण में चल रहा है यह काला धंधा?
कोल्हान प्रमंडल के उप निदेशक खान के नेतृत्व में पूर्वी सिंहभूम के गुड़बांदा इलाके में अवैध पन्ना खनन के खिलाफ छापेमारी की गई, जहां कई साक्ष्य मिले। यहां पन्ना दो बड़े ब्लॉकों में मौजूद है, लेकिन सरकार ने सालों से इसकी नीलामी नहीं की है। हाईकोर्ट ने मामले का संज्ञान लिया है, लेकिन वरिष्ठ अधिकारी जवाब देने से बच रहे हैं।
झारखंड की जमीन सोने और कोयले के साथ-साथ बेशकीमती रत्न 'पन्ना' भी उगलती है, लेकिन पूर्वी सिंहभूम जिले का गुड़बांदा इलाका इन दिनों इस खनिज की अवैध लूट का एक बड़ा केंद्र बन गया है। यह इलाका सिर्फ पन्ना माफियाओं की मनमानी नहीं झेल रहा, बल्कि सरकारी फाइलों में अटके प्रस्तावों और विभागों के बीच के आपसी दोषारोपण का भी शिकार है। गुरुवार को कोल्हान प्रमंडल के उप निदेशक खान ज्योति शंकर शतपथी के नेतृत्व में हुई छापेमारी से यह स्पष्ट हो गया है कि यहां बड़े पैमाने पर अवैध खनन हो रहा था, लेकिन सबसे बड़ा सवाल है- आखिर यह सब कुछ किसकी मिलीभगत से चल रहा है?
झारखंड में खनिज संपदा की अवैध लूट का इतिहास कई दशकों पुराना है। गुड़बांदा के मामले में पन्ना जैसे अति मूल्यवान खनिज का अवैध खनन होना सीधे तौर पर सरकारी तंत्र की विफलता और भ्रष्टाचार की ओर इशारा करता है।
बरुनमुटी और ठुरकुगोड़ा में मिले अवैध खनन के साक्ष्य
गुरुवार को की गई इस छापेमारी में उप निदेशक के साथ जिला खनन अधिकारी सतीश कुमार नायक, पुलिस और वन विभाग के अधिकारी भी शामिल थे।
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खुले राज: बरुनमुटी पहाड़ और ठुरकुगोड़ा इलाके में की गई छापेमारी के दौरान कई जगहों पर पन्ना के अवैध खनन के स्पष्ट साक्ष्य मिले। अधिकारियों ने इन माइंसों को फिलहाल मिट्टी डालकर बंद करा दिया है।
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माफियाओं में हड़कंप: छापेमारी की सूचना मिलते ही इलाके के पन्ना माफियाओं में जबरदस्त हड़कंप मच गया, जो दिखाता है कि यह कारोबार कितने सुनियोजित तरीके से चल रहा था।
हाईकोर्ट का संज्ञान और अधिकारियों की खामोशी
गुड़बांदा इलाके में पन्ना खनिज रिजर्व फॉरेस्ट में मिलता है, लेकिन वन विभाग इसकी सुरक्षा नहीं कर पा रहा है, जिसके चलते खनन और वन विभाग आपस में दोषारोपण करते रहते हैं।
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फाइलों में फंसा प्रस्ताव: सबसे गंभीर सवाल यह है कि जब यह स्पष्ट है कि पन्ना की नीलामी से राज्य सरकार को बड़ा राजस्व मिल सकता है, बावजूद इसके कई साल पहले शुरू की गई नीलामी की पहल फाइलों में क्यों अटकी हुई है? इस अवैध लूट के पीछे सरकार की लापरवाही भी एक बड़ा कारण है।
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अदालत की सख्ती: मीडिया में खबरें आने के बाद हाईकोर्ट ने इस मामले का संज्ञान लिया है और खनन विभाग, वन विभाग और पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के सचिवों से हलफनामा मांगा है। यह हाईकोर्ट का हस्तक्षेप दिखाता है कि मामला कितना गंभीर है।
अधिकारी देने से कतरा रहे जवाब
इस मामले में कई वरिष्ठ अधिकारियों की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में है। यही वजह है कि कोई भी इस संबंध में जवाब नहीं देना चाहता।
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टालमटोल: जब इस संबंध में डीएफओ सबा आलम अंसारी से फोन पर बात की गई, तो उन्होंने सवाल सुनने के बाद खुद के मीटिंग में होने की बात कहकर फोन काट दिया। खान निदेशक राहुल सिन्हा ने फोन ही नहीं उठाया, और जियोलॉजी के निदेशक कुमार अभिषेक ने भी सवाल सुनकर जवाब देने के बजाए फोन काट दिया।
‘द फोटॉन न्यूज’ अखबार ने पहले भी इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया था, ताकि सरकार बेशकीमती पन्ने का अवैध खनन रोककर इसे वैध तरीके से नीलाम कराए और झारखंड के विकास के लिए अच्छी-खासी रकम जुटा सके। जब तक नीलामी नहीं होती, माफिया यूं ही झारखंड के खजाने को लूटते रहेंगे।
आपकी राय में, पन्ना जैसे बेशकीमती खनिज के अवैध खनन को रोकने और इसकी नीलामी प्रक्रिया में देरी के लिए जवाबदेही तय करने हेतु सरकार को कौन से दो सबसे कड़े और पारदर्शी कदम उठाने चाहिए?
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