Dowry Death in India: दहेज ने ली निक्की भाटी जैसी हजारों महिलाओं की जान

ग्रेटर नोएडा की निक्की भाटी हत्या ने दहेज हिंसा की डरावनी हकीकत को सामने ला दिया। NCRB 2022 रिपोर्ट के अनुसार सिर्फ एक साल में 6,516 महिलाएं दहेज हत्या की शिकार बनीं। न्याय में देरी और कम सजा दर ने पीड़िताओं की स्थिति और गंभीर की है।

Aug 26, 2025 - 14:51
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Dowry Death in India: दहेज ने ली निक्की भाटी जैसी हजारों महिलाओं की जान
Dowry Death in India: दहेज ने ली निक्की भाटी जैसी हजारों महिलाओं की जान

ग्रेटर नोएडा में निक्की भाटी की हत्या ने एक बार फिर समाज को झकझोर दिया है। सिरसा गांव में निक्की को जलाकर मार डाला गया, और यह मामला अब पूरे देश में आक्रोश का कारण बना हुआ है। निक्की के लिए न्याय की मांग को लेकर कई राज्यों में कैंडल मार्च निकाले जा रहे हैं। इस घटना ने न केवल दहेज हत्या के क्रूर चेहरे को उजागर किया है बल्कि यह भी दिखाया है कि आज भी 21वीं सदी में महिलाएं इस कुप्रथा की शिकार हो रही हैं।

दहेज हत्या के आंकड़े चौंकाने वाले

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में केवल उसी वर्ष दहेज के कारण 6,516 महिलाओं की मौत हुई। यह आंकड़ा बलात्कार के बाद हत्या के मामलों से 25 गुना अधिक है।

इसके अलावा, 13,641 महिलाओं ने दहेज निषेध अधिनियम 1961 के तहत उत्पीड़न की शिकायत दर्ज कराई। लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि इन महिलाओं में से लगभग एक तिहाई की हत्या कर दी गई। रिपोर्ट यह भी बताती है कि वास्तविक घटनाएं इससे कहीं अधिक होती हैं क्योंकि अधिकांश महिलाएं और उनके परिवार डर या सामाजिक दबाव के कारण शिकायत दर्ज ही नहीं कराते।

न्याय में देरी बड़ी समस्या

भारत में दहेज हत्या से जुड़े मामलों में न्याय मिलने की प्रक्रिया बेहद धीमी है। NCRB के अनुसार, 2022 के अंत तक 60,577 मामले कोर्ट में लंबित थे।

  • इनमें से 54,416 पुराने मामले थे।

  • 2022 में जिन 3,689 मामलों की सुनवाई हुई, उनमें से केवल 33% आरोपियों को सजा हुई।

  • वहीं, उस वर्ष भेजे गए 6,161 नए मामलों में सिर्फ 99 मामलों में ही सजा सुनाई गई।

इस आधार पर देखा जाए तो निक्की भाटी जैसे किसी भी मामले में एक साल के भीतर सजा होने की संभावना 2% से भी कम है। यही देरी पीड़ित परिवारों को न्याय से दूर कर देती है।

दहेज न देने पर हिंसा

भारत में दहेज देना और लेना दोनों अपराध है, लेकिन सामाजिक तौर पर यह प्रथा आज भी गहराई से जमी हुई है। 2010 में प्रकाशित किताब Human Development in India: Challenges for a Society in Transition के अनुसार:

  • शादी में होने वाला खर्च, दुल्हन के परिवार की आय का औसतन डेढ़ गुना होता है।

  • सर्वे में 24% परिवारों ने स्वीकारा कि वे दहेज में मोटरसाइकिल, टीवी, फ्रिज, वॉशिंग मशीन जैसी चीजें देते हैं।

  • 29% परिवारों ने माना कि यदि दहेज नहीं दिया जाता है तो दुल्हन को घर में मारपीट और प्रताड़ना का सामना करना पड़ता है।

महिलाओं पर हिंसा की भयावह तस्वीर

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (NFHS 2019-21) के अनुसार:

  • 18-49 साल की 29% विवाहित महिलाओं ने स्वीकारा कि उन्होंने पति या साथी द्वारा शारीरिक या यौन हिंसा झेली।

  • इनमें से 24% महिलाओं ने पिछले एक साल में हिंसा का सामना किया।

  • हिंसा झेलने वाली महिलाओं में:

    • 3.3% गंभीर रूप से जल गईं।

    • 7.3% को आंखों में चोट, मोच या जलन हुई।

    • 6.2% को गहरे घाव, टूटी हड्डियां या दांत टूटने जैसी गंभीर चोटें आईं।

    • 21.8% को कट, खरोंच या दर्द झेलना पड़ा।

निक्की भाटी की हत्या कोई अकेली घटना नहीं है, बल्कि यह उन हजारों महिलाओं की चीख है जो हर साल दहेज के नाम पर अपनी जान गंवा रही हैं। कानून मौजूद हैं, लेकिन शिकायत दर्ज न होना, समाज का दबाव और न्याय में देरी जैसे कारण इस समस्या को और गहराते जा रहे हैं। जब तक समाज मानसिकता नहीं बदलेगा और कानूनों का सख्ती से पालन नहीं होगा, तब तक निक्की जैसी बेटियां यूं ही दहेज की आग में झुलसती रहेंगी।

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Team India मैंने कई कविताएँ और लघु कथाएँ लिखी हैं। मैं पेशे से कंप्यूटर साइंस इंजीनियर हूं और अब संपादक की भूमिका सफलतापूर्वक निभा रहा हूं।