Ladakh Protest: सोनम वांगचुक के नेतृत्व में भड़की आग, क्यों सुलग उठा पूरा लेह?
लद्दाख में पूर्ण राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची की मांग पर प्रदर्शन हिंसक हुआ। सोनम वांगचुक ने शांति की अपील की, जबकि भाजपा दफ्तर और सीआरपीएफ गाड़ी जला दी गई।
लद्दाख की शांत वादियां बुधवार को अचानक हिंसा की लपटों में घिर गईं। पूर्ण राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर शुरू हुआ शांतिपूर्ण आंदोलन अब आग और पथराव में तब्दील हो गया। लेह की सड़कों पर युवाओं की भीड़ ने जहां एक ओर सीआरपीएफ की गाड़ी जला दी, वहीं भाजपा कार्यालय को भी आग के हवाले कर दिया।
प्रदर्शन कैसे हुआ हिंसक?
प्रदर्शनकारियों की भीड़ बुधवार सुबह से लेह की सड़कों पर उमड़ पड़ी थी। शुरुआत में नारेबाज़ी और शांत मार्च का माहौल था, लेकिन दोपहर तक गुस्सा भड़क उठा। पुलिस ने भीड़ को रोकने के लिए लाठीचार्ज किया, जिसके बाद हालात बेकाबू हो गए। पथराव शुरू हुआ और देखते ही देखते माहौल दहशत में बदल गया।
सोनम वांगचुक की अपील
प्रदर्शनकारियों के नेता और पर्यावरणविद सोनम वांगचुक ने हिंसा पर दुख जताया और युवाओं से शांति बनाए रखने की अपील की। वांगचुक बीते 15 दिनों से भूख हड़ताल पर हैं और उनका कहना है कि लद्दाख के लोग अपनी संस्कृति, पर्यावरण और जीवनशैली की सुरक्षा चाहते हैं।
सरकार का रुख
हिंसा के बाद केंद्र सरकार हरकत में आई और 6 अक्टूबर को बातचीत के लिए लद्दाख के प्रतिनिधियों को दिल्ली बुलाया है। यह बैठक बेहद अहम मानी जा रही है, क्योंकि सालों से लद्दाखवासियों की मांग अनसुनी रह गई है।
2019 का ऐतिहासिक फैसला और लद्दाख की नाराज़गी
साल 2019 में जब मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया, तब प्रदेश को दो हिस्सों में बांटकर लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया। उस समय सोनम वांगचुक ने इस फैसले का स्वागत किया था। लेकिन जल्द ही स्थानीय लोगों ने महसूस किया कि उनके अधिकार और संस्कृति खतरे में हैं। तब से ही लद्दाखवासियों ने पूर्ण राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची में सुरक्षा की मांग तेज़ कर दी।
कौन हैं सोनम वांगचुक?
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लद्दाख के मशहूर शिक्षाविद और पर्यावरणविद।
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पेशे से इंजीनियर और SECMOL (स्टूडेंट्स एजुकेशनल एंड कल्चरल मूवमेंट ऑफ़ लद्दाख) के संस्थापक।
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उन्होंने बर्फ स्तूप जैसी कई नवोन्मेषी तकनीकों का आविष्कार किया है।
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यह दावा किया जाता है कि हिंदी फिल्म “3 Idiots” का किरदार फुंसुक वांगडू उन्हीं से प्रेरित है।
वांगचुक लंबे समय से लद्दाख के पर्यावरण और परंपरा की रक्षा के लिए संघर्षरत हैं। उनके अनुसार, अगर लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल नहीं किया गया तो यहां की जनजातीय संस्कृति, भाषा और संसाधन धीरे-धीरे खत्म हो जाएंगे।
क्यों जरूरी है छठी अनुसूची?
भारत का संविधान उत्तर-पूर्वी राज्यों के जनजातीय इलाकों को छठी अनुसूची के तहत विशेष अधिकार और स्वायत्तता देता है।
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स्थानीय लोगों की भूमि और संसाधन की रक्षा।
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सांस्कृतिक परंपराओं को सुरक्षित रखने का अधिकार।
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प्रशासनिक और आर्थिक मामलों में अधिक नियंत्रण।
लद्दाख की भूगोल और जनजातीय पहचान को देखते हुए यहां के लोग मानते हैं कि छठी अनुसूची ही उनकी सुरक्षा का सबसे बड़ा कवच हो सकती है।
अब आगे क्या?
लेह की हिंसा ने केंद्र सरकार पर दबाव बढ़ा दिया है। सवाल यह है कि क्या 6 अक्टूबर की बातचीत से कोई समाधान निकलेगा? या फिर यह आंदोलन और उग्र रूप लेगा? लद्दाख के लोग इंतजार में हैं और पूरे देश की नजरें इस बैठक पर टिक गई हैं।
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