Indore Santhara : 3 साल की बच्ची की संथारा के बाद मौत, धार्मिक और कानूनी सवाल खड़े
इंदौर में 3 साल की बच्ची वियाना जैन की संथारा के बाद मौत ने पूरे देश को झकझोर दिया है। बाल आयोग ने इस मामले में संज्ञान लेते हुए जिला प्रशासन से जवाब मांगा है।

मध्य प्रदेश के इंदौर में हुई एक घटना ने पूरे देश की संवेदनाओं को झकझोर कर रख दिया है। एक 3 साल 4 महीने की बच्ची वियाना जैन की संथारा लेने के बाद मृत्यु हो गई। यह वही संथारा है जिसे जैन धर्म में आध्यात्मिक मुक्ति और सांसारिक त्याग का प्रतीक माना जाता है। लेकिन जब यह प्राचीन परंपरा एक नन्ही बच्ची पर लागू हुई, तो धार्मिक आस्था और कानूनी नैतिकता आमने-सामने आ खड़ी हुईं।
घटना 21 मार्च 2025 की है। वियाना के माता-पिता पियूष और वर्षा जैन ने अपनी गंभीर रूप से बीमार बेटी को इंदौर के दिगंबर जैन संत राजेश मुनि महाराज के पास दर्शन के लिए ले जाया। संत ने बच्ची की हालत देखकर परिजनों को संथारा दिलवाने की सलाह दी। माता-पिता के मुताबिक, उन्होंने काफी सोच-विचार के बाद इस फैसले पर सहमति जताई। रात 9:25 बजे संथारा शुरू हुआ और सिर्फ 40 मिनट बाद, 10:05 बजे वियाना की सांसें थम गईं।
इस घटना ने न सिर्फ सामाजिक और धार्मिक चर्चा को जन्म दिया, बल्कि अब यह कानूनी जांच के घेरे में भी आ गई है। मध्य प्रदेश राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने इस घटना पर संज्ञान लिया है और इंदौर के जिला कलेक्टर को नोटिस जारी करने का निर्णय लिया है। आयोग के सदस्य ओंकार सिंह ने कहा, “तीन साल की बच्ची संथारा जैसी गंभीर और अंतिम प्रथा के लिए सहमति कैसे दे सकती है? यह बेहद गंभीर और संवेदनशील मुद्दा है।”
संथारा: एक परंपरा, कई सवाल
संथारा या सल्लेखना जैन धर्म की एक हजारों साल पुरानी प्रथा है। इसमें कोई व्यक्ति आत्मिक शुद्धि और मोक्ष की कामना के लिए धीरे-धीरे भोजन और जल त्यागकर मृत्यु की ओर बढ़ता है। यह निर्णय सामान्यतः वृद्धावस्था या लाइलाज बीमारी के समय लिया जाता है।
लेकिन जब इतनी कम उम्र की बच्ची को इस प्रक्रिया में शामिल किया गया, तो सवाल उठने लाजमी थे। क्या एक नाबालिग को धर्म के नाम पर ऐसा निर्णय देने का अधिकार हो सकता है? क्या माता-पिता अपनी धार्मिक आस्था के चलते इतना बड़ा फैसला ले सकते हैं?
2015 का विवाद और कोर्ट का स्टैंड
यह पहला मौका नहीं है जब संथारा को लेकर विवाद हुआ हो। 2015 में राजस्थान हाईकोर्ट ने संथारा को भारतीय दंड संहिता की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) और धारा 309 (आत्महत्या का प्रयास) के तहत अपराध घोषित कर दिया था। हालांकि, जैन समुदाय के तीव्र विरोध के बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश पर स्टे (रोक) लगा दी थी। आज भी यह मामला संविधान, धर्म और मानवाधिकारों के बीच संतुलन खोजने की चुनौती बना हुआ है।
क्या कहती है बच्ची की मां?
वियाना की मां वर्षा जैन ने मीडिया से बात करते हुए भावुक होकर कहा, “वियाना बहुत दर्द में थी। हमने उसकी पीड़ा देखी है। ये फैसला लेना आसान नहीं था। हम चाहते हैं कि वह अगले जन्म में सुखी और स्वस्थ रहे।”
अब आगे क्या होगा?
बाल आयोग ने स्पष्ट किया है कि वह डीएम के जवाब के आधार पर आगे की कार्रवाई करेगा। इस बीच सोशल मीडिया से लेकर धार्मिक मंचों तक इस मामले को लेकर काफी बहस हो रही है। कुछ लोग इसे धार्मिक स्वतंत्रता का हिस्सा मानते हैं, तो कुछ इसे कानूनी और नैतिक अपराध करार दे रहे हैं।
इंदौर की यह घटना सिर्फ एक मासूम की मौत की कहानी नहीं है, बल्कि यह भारत जैसे धार्मिक और संवैधानिक देश के लिए एक कठिन सवाल है – जब धर्म और कानून टकराते हैं, तो इंसानियत की राह कौन तय करता है?
क्या आपको लगता है कि इतनी कम उम्र में कोई संथारा ले सकता है, या यह फैसला केवल धर्म के नाम पर थोप दिया गया?
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