Jamshedpur Crisis: स्कूलों में पानी की किल्लत! करनदीप सिंह की अपील से हिली प्रशासनिक कुर्सी
जमशेदपुर के जेम्को क्षेत्र के दो सरकारी स्कूलों में पीने के पानी की गंभीर समस्या को लेकर समाजसेवी करनदीप सिंह ने विधायक पूर्णिमा साहू को सौंपा ज्ञापन। जुस्को कनेक्शन और डीप बोरिंग की मांग ने प्रशासन को सोचने पर मजबूर किया।

जमशेदपुर से रिपोर्ट: शहर के विकास की बातें तो बहुत होती हैं, लेकिन जब स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे ही पानी की एक बूंद के लिए तरसें, तो ये सवाल बन जाता है – विकास आखिर किसके लिए?
टेल्को क्षेत्र के जेम्को इलाके में स्थित उत्क्रमित विद्यालय कालीमाटी (आजाद बस्ती) और महानंद बस्ती का नव प्राथमिक विद्यालय, इन दिनों भीषण जल संकट से जूझ रहा है। हालात इतने खराब हैं कि बच्चों को पीने तक का साफ पानी मयस्सर नहीं।
समाजसेवी करनदीप सिंह ने विधायक को सौंपा ज्ञापन
इन हालात को गंभीरता से लेते हुए, स्थानीय समाजसेवी करनदीप सिंह ने शनिवार को जमशेदपुर पूर्वी की विधायक पूर्णिमा साहू को एक लिखित ज्ञापन सौंपा।
ज्ञापन में उन्होंने स्पष्ट किया कि:
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दोनों विद्यालयों में पेयजल की कोई समुचित व्यवस्था नहीं है।
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आसपास की बस्तियों में जुस्को के पाइपलाइन से जलापूर्ति की जा रही है, लेकिन विद्यालय इससे वंचित हैं।
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स्कूल के बगल से ही जुस्को की पाइपलाइन गुजरती है, फिर भी स्कूलों को इससे जोड़ने की कोशिश अब तक नहीं की गई।
डीप बोरिंग की भी उठी मांग – सिर्फ टैंकर से नहीं चलेगा काम
ज्ञापन में करनदीप सिंह ने यह भी बताया कि यदि जुस्को कनेक्शन तुरंत संभव नहीं हो, तो स्कूल परिसरों में डीप बोरिंग की व्यवस्था की जाए।
जल संकट कोई मौसमी समस्या नहीं, बल्कि स्कूल के संचालन की बुनियादी जरूरत है।
सिर्फ टैंकरों से कुछ दिनों तक पानी देना कोई स्थायी समाधान नहीं है।
विधायक का आश्वासन – “समस्या का हल जल्द मिलेगा”
विधायक पूर्णिमा साहू ने इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए करनदीप सिंह को आश्वस्त किया कि:
“जल्द ही संबंधित विभागों से बातचीत कर दोनों स्कूलों में जुस्को कनेक्शन या डीप बोरिंग की व्यवस्था कराई जाएगी। बच्चों को पानी जैसी मूलभूत सुविधा से वंचित नहीं रखा जा सकता।”
इतिहास गवाह है – स्कूलों में पानी की समस्या ने कई बार रोकी है शिक्षा की गाड़ी
यह पहली बार नहीं है जब किसी सरकारी विद्यालय में पानी की अनुपलब्धता ने पढ़ाई को प्रभावित किया हो।
झारखंड सहित देश के कई राज्यों में ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं, जहां बच्चों को टॉयलेट या हैंडवॉश की सुविधा तक न मिलने के कारण स्कूल छोड़ना पड़ा।
इतिहास बताता है कि स्वच्छ जल और स्वच्छता (WASH) की मूलभूत सुविधाएं यदि स्कूलों में न हों, तो न केवल बच्चों का स्वास्थ्य बिगड़ता है, बल्कि उनकी शैक्षणिक गुणवत्ता भी प्रभावित होती है।
सरकारी स्कूलों की स्थिति क्यों अब भी बदहाल?
जब आसपास के घरों में जुस्को की जल आपूर्ति सुचारु रूप से हो रही है, तो फिर स्कूलों को क्यों वंचित रखा गया है?
क्या यह प्रशासन की अनदेखी है या सिस्टम का दोहरे मानदंड?
हर साल बजट में शिक्षा के नाम पर करोड़ों की घोषणाएं होती हैं, फिर भी सरकारी विद्यालयों की बुनियादी जरूरतें अधूरी क्यों हैं?
स्थानीय समाज का समर्थन भी जरूरी
करनदीप सिंह जैसे समाजसेवियों की पहल निश्चित रूप से प्रशंसनीय है। लेकिन अब समय आ गया है जब स्थानीय नागरिक, ग्राम पंचायतें और स्थानीय निकाय मिलकर आवाज उठाएं।
बच्चों के लिए बेहतर शिक्षा का मतलब सिर्फ किताबें नहीं, साफ पानी, स्वच्छ टॉयलेट और सुरक्षित वातावरण भी है।
क्या सिर्फ आश्वासन से बदलेगा भविष्य?
फिलहाल विधायक का आश्वासन मिला है, लेकिन क्या वास्तव में दोनों स्कूलों में जल्द व्यवस्था होगी? या फिर यह भी उन फाइलों की तरह दफन हो जाएगा, जो वर्षों से हल नहीं हो सकीं।
अब जिम्मेदारी जनता की भी है, कि वे इस मुद्दे को भुलाएं नहीं, उठाते रहें – ताकि अगली पीढ़ी को पढ़ने के लिए कम से कम पीने का पानी तो मिले।
पानी के बिना पढ़ाई की कल्पना? सोचिए, और सोच को आवाज दीजिए।
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