Jamshedpur Mystery Death: करंट से नहीं, क्या मर्डर था सैफ अली का? पुलिस की भूमिका पर उठे सवाल
जमशेदपुर के सैफ अली की मौत रहस्य बन गई है। शादी के नाम पर घर से निकले युवक की लाश 13 दिन बाद मिली, लेकिन पुलिस की चुप्पी और अंतिम संस्कार की प्रक्रिया ने परिजनों को शक में डाल दिया है। हत्या या हादसा – सच्चाई क्या है?

जमशेदपुर से एक ऐसी घटना सामने आई है जिसने पूरे शहर को हिला कर रख दिया है। जुगसलाई थाना क्षेत्र के हबीब नगर गोलघर स्कूल निवासी 26 वर्षीय सैफ अली की मौत अब एक गूढ़ रहस्य बन चुकी है। सवाल ये है कि यह महज एक करंट लगने से हुई मौत थी या किसी सोची-समझी साजिश का शिकार हुआ सैफ?
सैफ अली 11 अप्रैल 2025 को पम्मी नामक महिला से शादी करने की बात कहकर घर से निकला था। परिवार ने शादी का विरोध किया था, लेकिन वह नहीं रुका और फिर लौटकर कभी घर नहीं आया। परिजनों ने कई बार जुगसलाई थाने में गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराने का प्रयास किया, लेकिन पुलिस की कथित उदासीनता के कारण रिपोर्ट दर्ज नहीं हो पाई।
और फिर, 3 मई को एक चौंकाने वाली खबर सैफ की बहन शब्बो को मिली। सूचना थी कि बागबेड़ा थाना क्षेत्र के रेलवे ट्रैफिक कॉलोनी स्थित एक खाली क्वार्टर (टी/105/1/12) से 24 अप्रैल को एक युवक की सड़ी-गली लाश मिली थी। जब शब्बो ने जाकर तस्वीरें दिखाई, तो पुलिस ने पुष्टि की कि शव सैफ अली का ही है। लेकिन हैरानी की बात यह थी कि पोस्टमॉर्टम के बाद 29 अप्रैल को शव को बिना पहचान के पार्वती बर्निंग घाट में जला दिया गया।
यहां से उठता है पहला बड़ा सवाल—क्या एक मुस्लिम युवक का शव अंतिम संस्कार में जलाया जा सकता है? परिजनों ने कहा कि अगर पुलिस ने समय रहते गुमशुदगी रिपोर्ट दर्ज की होती, तो शव की पहचान हो सकती थी और उसे धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार दफनाया जा सकता था।
इतिहास में झांकें तो— झारखंड और खासकर जमशेदपुर क्षेत्र में पहले भी ऐसे कई मामले सामने आए हैं जहां लापरवाही या अनदेखी की वजह से पीड़ित परिवार न्याय से वंचित रह गए। रेलवे कॉलोनियों में पहले भी लावारिस शव मिलने की घटनाएं होती रही हैं, लेकिन यह मामला इसलिए गंभीर है क्योंकि इसमें धर्म, पुलिस की चूक और एक संभावित हत्या का मिला-जुला खेल सामने आ रहा है।
शब्बो का दावा है कि सैफ अली की मौत करंट से नहीं बल्कि सुनियोजित हत्या थी। एक व्यक्ति अनिमेष कुमार राम द्वारा दी गई सूचना के आधार पर इसे सामान्य मौत (UD) दिखाया गया। यानी, हत्या की जांच के बजाय इसे एक प्राकृतिक या दुर्घटनावश मौत मान लिया गया।
बागबेड़ा थाना के पुलिसकर्मी नौशाद ने बताया कि शव की पहचान नहीं हो पाई और अखबार में विज्ञापन देने के बावजूद कोई परिजन सामने नहीं आया, इसलिए नियमानुसार अंतिम संस्कार कर दिया गया। उन्होंने कहा कि परिजन FIR दर्ज कराने के लिए स्वतंत्र हैं और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट आने के बाद कार्रवाई की जाएगी।
इधर, परिजनों की मांग है कि अब इस मामले में हत्या का केस दर्ज हो और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए। परिजनों का यह भी आरोप है कि पुलिस ने जानबूझकर केस को दबाने की कोशिश की।
अब सवाल यह उठता है— क्या सैफ अली की मौत को सिर्फ एक दुर्घटना मान लेना न्याय होगा? क्या झारखंड की पुलिस किसी दबाव में काम कर रही है? और सबसे बड़ी बात, क्या एक मुस्लिम युवक को उसकी धार्मिक मान्यताओं के खिलाफ जला देना एक चूक थी या कुछ और?
सच्चाई अभी सामने आना बाकी है, लेकिन इस पूरे मामले ने पुलिस व्यवस्था, प्रशासनिक सतर्कता और धार्मिक संवेदनशीलता पर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि पुलिस किस दिशा में जांच को आगे बढ़ाती है और क्या सैफ अली को इंसाफ मिल पाएगा।
क्या आप भी मानते हैं कि ये महज एक हादसा नहीं, बल्कि हत्या है? आपकी राय हमें जरूर बताएं।
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