Jamshedpur Suicide : बर्मामाइंस के मजदूर ने क्यों चुनी मौत की राह? परिवार पूजा में था, घर में छाया मातम

जमशेदपुर के बर्मामाइंस में 35 वर्षीय सुभाष मुखी ने घर में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। परिवार पूजा में था, सुभाष अकेलेपन और मानसिक तनाव से जूझ रहा था। जानिए पूरी कहानी।

Apr 9, 2025 - 13:54
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Jamshedpur Suicide : बर्मामाइंस के मजदूर ने क्यों चुनी मौत की राह? परिवार पूजा में था, घर में छाया मातम
Jamshedpur Suicide : बर्मामाइंस के मजदूर ने क्यों चुनी मौत की राह? परिवार पूजा में था, घर में छाया मातम

जमशेदपुर, बर्मामाइंस: मंगलवार की रात बर्मामाइंस की रेलवे कैरेज कॉलोनी उस समय सन्नाटे में डूब गई जब वहां के निवासी 35 वर्षीय सुभाष मुखी की आत्महत्या की खबर फैली। एक मजदूर जिसने ज़िंदगी भर घर चलाने के लिए मेहनत की, वो आखिर किस हालात में खुद को खत्म करने को मजबूर हो गया?

????️पूजा का माहौल, लेकिन घर में पसरा मातम

घटना के वक्त सुभाष का पूरा परिवार मंगला पूजा में गया हुआ था। पूजा का पवित्र माहौल था, मगर घर में एक ऐसी खामोशी पसरी थी, जो आने वाले तूफान की ओर इशारा कर रही थी। इसी दौरान, जब घर लौटे परिजन दरवाज़ा खोलते हैं तो जो दृश्य उन्होंने देखा, वो उन्हें जीवनभर नहीं भूलने वाला।

एक मेहनतकश की अधूरी कहानी

सुभाष मुखी, एक साधारण मजदूर जो किसी ठेकेदार के अधीन रोज़ी-रोटी के लिए पसीना बहाता था, दो बच्चों का पिता था। न कोई बुरा अतीत, न कोई आपराधिक रिकॉर्ड—बस आम जिंदगी जीने वाला एक इंसान। फिर क्या वजह रही कि उसने खुद की ज़िंदगी खत्म करने का फैसला किया?

मानसिक तनाव – एक अदृश्य दुश्मन

परिवार वालों का कहना है कि सुभाष पिछले कुछ समय से गहरे मानसिक तनाव से गुजर रहा था। हालांकि वो कभी खुलकर अपनी परेशानी किसी से नहीं कहता था, लेकिन उसके हाव-भाव में चिंता साफ झलकती थी।

भारत में मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता अभी भी कम है। मजदूर वर्ग में, जहां रोज़ की कमाई ही जिंदा रहने की लड़ाई होती है, वहां "मानसिक तनाव" एक अदृश्य शत्रु की तरह काम करता है। NCRB (नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो) के आंकड़े बताते हैं कि हर साल हज़ारों मजदूर आत्महत्या करते हैं, जिनकी एक बड़ी वजह आर्थिक और मानसिक दबाव होता है।

पुलिस की जांच और परिवार का दुख

घटना की सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची और शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेजा। बुधवार को शव परिजनों को सौंप दिया गया। पुलिस ने आत्महत्या के कारणों की जांच शुरू कर दी है, लेकिन परिवार का कहना है कि सुभाष मानसिक रूप से परेशान था।

क्या यह अकेली घटना है? या समाज की एक अनसुनी चीख?

ये सिर्फ एक सुभाष की कहानी नहीं है, ये उन हज़ारों मजदूरों की आवाज़ है जो दबाव में आकर हर साल चुपचाप जीवन खत्म कर लेते हैं। हम अक्सर इन खबरों को पढ़कर भूल जाते हैं, लेकिन क्या कभी हमने इस पर ठहरकर सोचा है?

खामोश चीखों को पहचानिए

सुभाष मुखी की आत्महत्या ने एक बार फिर से इस सवाल को हमारे सामने रख दिया है—क्या हम अपने आस-पास के लोगों की तकलीफें समझ पा रहे हैं? जब तक समाज मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता नहीं देगा, तब तक न जाने कितने "सुभाष" ऐसे ही खामोशी में बर्बाद होते रहेंगे।

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Manish Tamsoy मनीष तामसोय कॉमर्स में मास्टर डिग्री कर रहे हैं और खेलों के प्रति गहरी रुचि रखते हैं। क्रिकेट, फुटबॉल और शतरंज जैसे खेलों में उनकी गहरी समझ और विश्लेषणात्मक क्षमता उन्हें एक कुशल खेल विश्लेषक बनाती है। इसके अलावा, मनीष वीडियो एडिटिंग में भी एक्सपर्ट हैं। उनका क्रिएटिव अप्रोच और टेक्निकल नॉलेज उन्हें खेल विश्लेषण से जुड़े वीडियो कंटेंट को आकर्षक और प्रभावी बनाने में मदद करता है। खेलों की दुनिया में हो रहे नए बदलावों और रोमांचक मुकाबलों पर उनकी गहरी पकड़ उन्हें एक बेहतरीन कंटेंट क्रिएटर और पत्रकार के रूप में स्थापित करती है।