Jamshedpur Fire : गोलमुरी में आधी रात को लगी रहस्यमयी आग, दुकानदार बर्बाद, जांच पर सवाल!
जमशेदपुर के गोलमुरी में आधी रात को लगी रहस्यमयी आग ने आधा दर्जन फुटपाथी दुकानों को राख कर दिया। दुकानदारों की रोज़ी-रोटी पर संकट गहराया है। क्या ये हादसा था या साजिश?

जमशेदपुर, एक ऐसा शहर जो औद्योगिक पहचान के साथ-साथ मेहनतकशों का शहर भी माना जाता है। लेकिन बुधवार तड़के सुबह कुछ ऐसा हुआ जिसने लोगों को चौंका दिया। गोलमुरी थाना क्षेत्र के एलबीएसएम कॉलेज के पास स्थित फुटपाथी दुकानों में अचानक भीषण आग लग गई। चंद मिनटों में आग ने आधा दर्जन दुकानों को अपने लपटों में समेट लिया और फल-सब्ज़ी से लेकर जूते-चप्पलों तक सबकुछ राख हो गया।
दुकानदारों की आँखें नम, उम्मीदें राख
जब दुकान के मालिकों को आग लगने की खबर मिली तो वो दौड़ते हुए मौके पर पहुंचे, मगर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। जो कुछ था, वो सिर्फ जलती हुई लकड़ियों और राख का ढेर था। दुकानदारों के मुताबिक, यही दुकानें उनकी एकमात्र आजीविका थीं। इनकी कमाई से ही घर चलता था, बच्चों की पढ़ाई होती थी और रोज़ की ज़रूरतें पूरी होती थीं।
अब जब ये सबकुछ चुटकियों में खत्म हो गया, तो उनके सामने सबसे बड़ा सवाल यही है – "अब क्या करें?"
आग कैसे लगी? सवालों की चिंगारी
अब सवाल ये है कि आग अचानक लगी या लगाई गई? किसी शरारती तत्व की करतूत थी या कोई हादसा? हालांकि प्रशासनिक जांच की बात कही जा रही है, लेकिन दुकानदारों को शक है कि मामला सिर्फ हादसे का नहीं हो सकता।
स्थानीय लोगों का कहना है कि रात में संदिग्ध गतिविधियां देखी गई थीं, लेकिन पुलिस अभी तक ठोस जांच में नहीं उतरी है। और सबसे बड़ा सवाल – "जांच करेगा कौन?"
इतिहास गवाह है – फुटपाथी दुकानदारों पर हमेशा संकट
यह पहला मामला नहीं है जब जमशेदपुर में फुटपाथी दुकानों को निशाना बनाया गया हो। इससे पहले भी साकची, बिष्टुपुर और मानगो इलाकों में आग लगने या हटाए जाने के मामलों ने सवाल खड़े किए हैं। कई बार ये दुकानें अचानक उजाड़ दी जाती हैं, कभी अतिक्रमण के नाम पर, तो कभी अनजान आग के बहाने।
इन दुकानों में काम करने वाले अधिकतर लोग दैनिक मज़दूरी करने वाले हैं, जो किसी भी सरकारी या निजी योजना के दायरे में नहीं आते। ऐसे में जब कोई दुर्घटना होती है, तो न तो मुआवज़ा मिलता है, न ही सहारा।
राख से फिर खड़ी होगी उम्मीद?
इस हादसे के बाद भी दुकानदारों ने हार नहीं मानी है। वे फिर से अपने उजड़े आशियाने को खड़ा करने की कोशिश में लग गए हैं। कोई पुराना तिरपाल जमा कर रहा है, कोई उधार में सामान मांगने की योजना बना रहा है। जितना बड़ा नुकसान हुआ है, उतनी ही ज़्यादा मजबूत है इनकी हिम्मत।
लेकिन क्या ये हिम्मत अकेले काफी है? क्या प्रशासन इन गरीबों के लिए कुछ करेगा? क्या स्थानीय निकाय उन्हें फिर से कारोबार शुरू करने में मदद करेगा?
आग एक बहाना है, दर्द असली है
गोलमुरी की यह घटना सिर्फ एक आगजनी नहीं, बल्कि गरीबी और सिस्टम की अनदेखी की वो तस्वीर है जिसे अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है। आज भी देशभर के शहरों में लाखों फुटपाथी दुकानदार ऐसे ही हालात से जूझ रहे हैं – कभी प्रशासन से, कभी हादसों से, और कभी अपनी किस्मत से।
अंत में सवाल वही – कौन देगा जवाब?
जब कोई मॉल जलता है तो उसकी जांच के लिए स्पेशल टीम बनती है, हेलिकॉप्टर से मुआयना होता है। लेकिन जब गरीब की दुकान जलती है, तो प्रशासन मौन हो जाता है। गोलमुरी की यह घटना न सिर्फ जांच की माँग करती है, बल्कि यह भी कहती है – "हर आग सिर्फ लकड़ियां नहीं जलाती, कई बार सपने भी भस्म हो जाते हैं।"
अब देखना ये है कि क्या कोई जिम्मेदार आगे आएगा या फिर ये भी बस एक और अधूरी खबर बनकर रह जाएगी।
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