Chakulia Scam: जन्म प्रमाण पत्र में बड़ा घोटाला, माटियाबांधी बना फर्जी 'जन्मस्थल' का अड्डा
चाकुलिया प्रखंड की माटियाबांधी पंचायत में जन्म प्रमाण पत्र को लेकर बड़ा घोटाला सामने आया है। फर्जी तरीके से कई बच्चों के नाम के दस्तावेज बनाए गए हैं। अब विधायक और प्रशासन हरकत में आ गए हैं।

चाकुलिया (झारखंड): एक और पंचायत, एक और घोटाला—इस बार मामला जुड़ा है हमारे बच्चों के सबसे ज़रूरी दस्तावेज़ यानी जन्म प्रमाण पत्र से। चाकुलिया प्रखंड की माटियाबांधी पंचायत में उस वक्त हड़कंप मच गया जब सामने आया कि यहां से फर्जी जन्म प्रमाण पत्र जारी किए जा रहे हैं। और यह कोई मामूली लापरवाही नहीं, बल्कि एक सुनियोजित धोखाधड़ी का संकेत है, जिसमें पंचायत सचिव की संलिप्तता उजागर हुई है।
सूत्रों के अनुसार, माटियाबांधी पंचायत सचिव सुनील महतो ने जमशेदपुर के कई बच्चों के लिए फर्जी जन्म प्रमाण पत्र जारी किए हैं, जिनमें जन्मस्थान माटियाबांधी दर्शाया गया है। जबकि इनमें से अधिकतर बच्चे कभी इस इलाके में रहे ही नहीं।
कैसे हुआ घोटाले का पर्दाफाश?
यह मामला तब उजागर हुआ जब कुछ स्थानीय लोगों ने इन दस्तावेजों पर संदेह जताया। सूचना मिलते ही विधायक समीर मोहंती ने खुद इस मुद्दे को गंभीरता से लिया और जिले के उपायुक्त से दूरभाष पर संपर्क कर पूरा विवरण साझा किया। विधायक ने स्पष्ट रूप से विभागीय जांच की मांग करते हुए दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की अपील की।
वहीं, चाकुलिया की बीडीओ आरती मुंडा ने भी इस मामले में सक्रियता दिखाई है। उन्होंने कहा है कि पंचायत सचिव से इस विषय में स्पष्टीकरण मांगा गया है और अगले सोमवार तक जवाब देने का निर्देश दिया गया है। जांच प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।
इतिहास की परछाइयाँ: यह पहली बार नहीं
झारखंड और देश के अन्य हिस्सों में पहले भी जन्म प्रमाण पत्र को लेकर फर्जीवाड़े के मामले सामने आते रहे हैं। खासकर शैक्षणिक दस्तावेज़ों, पहचान पत्रों और सरकारी योजनाओं में लाभ पाने के लिए फर्जी जन्म प्रमाण पत्र एक ‘टूल’ की तरह इस्तेमाल होता रहा है।
NCRB और कई सामाजिक संगठनों की रिपोर्ट में पहले भी बताया गया है कि ग्रामीण इलाकों में दस्तावेज़ों के साथ छेड़छाड़ कर बच्चों की उम्र घटा-बढ़ा कर दाखिले, छात्रवृत्ति और यहां तक कि नौकरी तक में फर्जीवाड़ा होता रहा है।
क्यों होता है ऐसा घोटाला?
इस पूरे खेल की जड़ में छिपी है व्यवस्था की खामियाँ और कुछ लालची लोगों की मिलीभगत। पंचायत स्तर पर दस्तावेज़ सत्यापन की प्रक्रिया जितनी ढीली है, उतना ही आसान हो जाता है फर्जी प्रमाण पत्र बनवाना।
एक तरफ जहां आम जनता जन्म प्रमाण पत्र बनवाने के लिए महीनों चक्कर काटती है, वहीं ऐसे मामलों में लोग बिना किसी दस्तावेज़ के सरकारी रजिस्टर में ‘अस्तित्व’ पा जाते हैं।
प्रशासन क्या करेगा?
बीडीओ द्वारा शुरू की गई जांच से उम्मीद की जा रही है कि दोषी व्यक्ति को जल्द ही चिन्हित कर कार्रवाई की जाएगी। यदि पंचायत सचिव दोषी पाए जाते हैं, तो उनके खिलाफ निलंबन और आपराधिक मामला दर्ज हो सकता है।
अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि कुल कितने फर्जी प्रमाण पत्र बनाए गए हैं, लेकिन जानकारों का मानना है कि संख्या दहाई से कहीं अधिक हो सकती है।
अब कब चेतेंगे?
इस तरह की घटनाएं यह सोचने पर मजबूर कर देती हैं कि हम किस तरह की व्यवस्था में भरोसा कर रहे हैं। बच्चों के नाम से जारी किए गए फर्जी दस्तावेज़ न केवल सरकारी आंकड़ों को दूषित करते हैं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को भी अंधेरे में धकेल सकते हैं।
चाकुलिया का यह मामला सिर्फ एक पंचायत तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि पूरे राज्य में इस तरह के मामलों की व्यापक जांच होनी चाहिए। सवाल सिर्फ जन्म प्रमाण पत्र का नहीं, सिस्टम की नीयत और पारदर्शिता का है।
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