Jadugoda Tragedy: 12 साल के छात्र की रहस्यमयी मौत, खुला दरवाज़ा और बंद सवाल
जादूगोड़ा के तेरंगा गांव में 12 साल के छात्र रमन पाठक की रहस्यमयी आत्महत्या से पूरे इलाके में सनसनी फैल गई है। खुला दरवाज़ा, घर में सन्नाटा और unanswered सवालों ने माहौल को ग़मगीन बना दिया।

जादूगोड़ा, झारखंड: झारखंड के जादूगोड़ा थाना क्षेत्र से एक ऐसी दर्दनाक घटना सामने आई है, जिसने हर किसी को भीतर तक झकझोर कर रख दिया है। तेरंगा गांव निवासी राहुल पाठक के 12 वर्षीय पुत्र रमन पाठक ने बीती रात घर में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। घटना के समय घर पर कोई नहीं था, परिवार के लोग बाजार गए हुए थे और जब तक लौटे, सब कुछ खत्म हो चुका था।
इस खबर ने पूरे इलाके में एक सवालिया सन्नाटा फैला दिया है — आखिर एक 12 साल का मासूम बच्चा ऐसा कदम क्यों उठाएगा?
खुला दरवाज़ा और एक पड़ोसी की नजर
बुधवार की शाम रमन के पिता राहुल पाठक अपनी पत्नी और छोटे बेटे के साथ गांव के बाजार गए थे। घर में रमन अकेला था। जब वे लौटे, तब तक पड़ोस से एक भयावह सूचना उन्हें मिली—रमन घर के अंदर फंदे से झूल रहा था।
दरवाज़ा खुला था, जिससे पड़ोसी की नजर पड़ी और उन्होंने तुरंत परिवार को सूचना दी। जैसे ही परिवार घर पहुंचा, रमन को फंदे से उतारकर अनुमंडल अस्पताल ले जाया गया, लेकिन डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।
गुरुवार को रमन का शव पोस्टमार्टम के लिए एमजीएम अस्पताल भेजा गया और वहां से परिजनों को सौंप दिया गया।
रमन कौन था?
रमन पाठक महज़ 12 साल का था और छठी कक्षा में पढ़ता था। पड़ोसियों के अनुसार वह एक शांत और सामान्य बच्चा था, जो स्कूल नियमित रूप से जाता था और परिवार के साथ हँसी-खुशी रहता था। उसके व्यवहार में किसी प्रकार की असामान्यता नहीं दिखी थी, जिससे किसी को अंदेशा हो कि वह इस तरह का आत्मघाती कदम उठा सकता है।
इतनी कम उम्र में आत्महत्या—क्यों?
सबसे बड़ा सवाल यही है—आखिर ऐसा क्या हुआ जिसने रमन को आत्महत्या के लिए मजबूर किया? क्या स्कूल में कुछ हुआ था? क्या मानसिक तनाव की कोई वजह थी? या फिर यह किसी दबाव या डर का नतीजा था?
आज के समय में जब बच्चों पर पढ़ाई, सोशल मीडिया, घरेलू माहौल या रिश्तों का दबाव बढ़ता जा रहा है, ऐसी घटनाएं हमें बार-बार चेतावनी देती हैं कि मानसिक स्वास्थ्य सिर्फ बड़ों की समस्या नहीं है।
इतिहास से सीख: बच्चों के मन को समझना जरूरी
भारत में किशोर आत्महत्याओं के मामले कोई नई बात नहीं हैं। NCRB की रिपोर्ट के मुताबिक, हर साल हज़ारों नाबालिग बच्चे आत्महत्या कर लेते हैं और अधिकांश मामलों की वजह ‘अज्ञात’ होती है। यानी हम उनके मन की स्थिति तक पहुंच ही नहीं पाते।
रमन की मौत भी एक ऐसा ही ‘अज्ञात’ केस बन गई है। पुलिस अब इस घटना की तह तक जाने की कोशिश कर रही है, लेकिन फिलहाल कोई ठोस वजह सामने नहीं आई है।
समाज की जिम्मेदारी क्या है?
यह सिर्फ एक परिवार का दुख नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए एक चेतावनी है। बच्चों के मन को समझने, उनसे संवाद करने और उनके छोटे-छोटे इशारों को गंभीरता से लेने की ज़रूरत है।
क्या हम बच्चों से वाकई बात करते हैं? क्या हम उन्हें सिर्फ नंबर और अनुशासन के तराजू पर तौलते हैं, या उनके भीतर के डर और सवालों को सुनने की कोशिश करते हैं?
रमन पाठक की रहस्यमयी मौत ने कई अनसुलझे सवाल खड़े कर दिए हैं। यह सिर्फ एक बालक की आत्महत्या नहीं, बल्कि एक बड़ी सामाजिक चूक का संकेत है। इस खबर को पढ़कर हर माता-पिता, शिक्षक और पड़ोसी को रुककर सोचना होगा—कहीं हमारे आसपास का कोई "रमन" तो नहीं… जो चुपचाप जवाबों की तलाश में है।
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