Ghatshila Tragedy: अस्पताल में बेड नहीं! घाटशिला अनुमंडल अस्पताल की शर्मनाक लापरवाही, जमीन पर जन्म लेते ही नवजात की मौत, चिकित्सक पर गंभीर आरोप
घाटशिला अनुमंडल अस्पताल में बेड खाली न होने के कारण प्रसव पीड़ा से परेशान शुरुमनी मुर्मू ने जमीन पर ही बच्चे को जन्म दिया, जिसकी कुछ समय बाद मौत हो गई। परिजनों ने चिकित्सक रामचंद्र सोरेन पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए उपायुक्त से शिकायत करने की मांग की है। चिकित्सक ने कहा कि बच्चे की मौत गर्भ में ही हो गई थी।
झारखंड के घाटशिला अनुमंडल अस्पताल से मानवीय संवेदनशीलता और चिकित्सा प्रणाली की कमियों को दर्शाने वाली एक दिल दहलाने वाली घटना सामने आई है। प्रसव पीड़ा से तड़पती एक महिला को अस्पताल में बेड नसीब नहीं हुआ, और उसे जमीन पर ही बच्चे को जन्म देना पड़ा। इस शर्मनाक लापरवाही के कुछ ही घंटों के भीतर नवजात शिशु की मौत हो गई।
भारत में स्वास्थ्य सेवाओं का इतिहास यह बताता है कि सरकारी अस्पतालों में संसाधनों की कमी और कर्मियों की लापरवाही के कारण अक्सर गरीब और ग्रामीण परिजनों को भारी कीमत चुकानी पड़ती है। घाटशिला की यह घटना एक बार फिर इसी कड़वी सच्चाई को सामने लाती है।
बेड की कमी ने किया एक माँ को मजबूर
शुक्रवार की सुबह लगभग 3.30 बजे प्रखंड के बनकाटी गांव निवासी बिरु टुडू अपनी पत्नी शुरुमनी मुर्मू को प्रसव पीड़ा होने पर अनुमंडल अस्पताल लेकर पहुंचे।
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जमीन पर प्रसव: पीड़िता की सास, रायमनी टुडू ने बताया कि अस्पताल में बेड खाली नहीं होने के कारण उनकी बहू को जमीन पर ही लेटने को मजबूर होना पड़ा। प्रसव पीड़ा असहनीय होने पर शुरुमनी ने जमीन पर ही नवजात शिशु को जन्म दे दिया।
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चिकित्सक गायब: सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि रायमनी टुडू ने बताया कि जब बच्चे का जन्म हुआ, तो अस्पताल में कोई चिकित्सक या नर्स मौजूद नहीं था। सफाई कर रही एक कर्मी ही जच्चा-बच्चा को उठाकर प्रसव गृह में ले गई।
मृत घोषित, फिर मिला बेड
सुबह करीब सात बजे परिजनों को बताया गया कि मृत बच्चे का जन्म हुआ था।
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चिकित्सक का पक्ष: परिजनों के पूछने पर लगभग एक घंटे बाद ऑन ड्यूटी चिकित्सक रामचंद्र सोरेन मिले। उन्होंने बताया कि बच्चे की मौत ब्लीडिंग के बाद गर्भ में ही हो गई थी। बेड की कमी पर उन्होंने संसाधनों की कमी का हवाला दिया और कहा कि प्रसव गृह में दो ही बेड हैं और 6 मरीज प्रतीक्षारत थे।
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लापरवाही का आरोप: परिजनों ने चिकित्सक की बात को खारिज करते हुए कहा कि प्रसव पीड़ा से परेशान महिला की जांच तक नहीं की गई और न ही बेड दिया गया। जमीन पर बच्चे का जन्म होना ही व्यवस्था की घोर लापरवाही है। आश्चर्यजनक है कि बच्चे की मौत होने के बाद महिला को वार्ड में बेड मिल गया।
परिजनों का आरोप है कि प्रसूता की जांच शुरू से इसी अनुमंडल अस्पताल में कराई जा रही थी और अस्पताल ने ही पहले 9 अक्टूबर और बाद में 14 अक्टूबर की तिथि दी थी। अस्पताल प्रबंधन जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहा है। परिजनों ने इस घोर लापरवाही पर उपायुक्त से शिकायत करके ड्यूटी पर तैनात चिकित्सक पर ठोस कार्रवाई की मांग की है।
आपकी राय में, बेड की कमी के दौरान प्रसव जैसे अति महत्वपूर्ण मामलों में किसी भी लापरवाही से बचने के लिए अस्पताल प्रबंधन को कौन से दो आपातकालीन प्रोटोकॉल लागू करने चाहिए?
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