Deoghar Suicide: पढ़ाई के दबाव में 10 साल के बच्चे की दर्दनाक मौत! माता-पिता की डांट बनी काल?
देवघर में पढ़ाई के दबाव में 10 वर्षीय बच्चे ने ट्रेन से कटकर दी जान! माता-पिता की डांट बनी मौत की वजह? जानिए पूरी खबर।

देवघर: क्या पढ़ाई का दबाव अब बच्चों की जिंदगी पर भारी पड़ रहा है? देवघर-दुमका रेल लाइन पर मंगलवार की शाम एक दर्दनाक घटना सामने आई, जिसने हर किसी को झकझोर कर रख दिया।
10 वर्षीय अंकेश कुमार मंडल ने अपने ही जीवन का अंत कर लिया। परिवार की डांट से नाराज होकर उसने ट्रेन के सामने कूदकर जान दे दी। यह घटना घोरमारा स्टेशन के पास बांक गांव क्रॉसिंग पर हुई, जहां दुमका की ओर से आ रही पैसेंजर ट्रेन ने उसे काट दिया।
घटना की खबर मिलते ही स्थानीय लोग और पुलिस मौके पर पहुंचे, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल था, जबकि गांव में मातम पसर गया।
कैसे हुआ यह दर्दनाक हादसा?
अंकेश कुमार मंडल, देवघर के बांक गांव का रहने वाला था और पांचवीं कक्षा का छात्र था।
मंगलवार को उसके माता-पिता ने उसे पढ़ाई को लेकर डांट दिया था।गुस्से में घर से निकला अंकेश सीधे रेलवे ट्रैक पर पहुंच गया।
जब तक कोई कुछ समझ पाता, उसने ट्रेन के सामने छलांग लगा दी।
स्थानीय लोगों ने तुरंत पुलिस को सूचना दी, जिसके बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया।
क्या बच्चों पर पढ़ाई का दबाव जानलेवा बन रहा है?
पढ़ाई के दबाव में बच्चों द्वारा खुदकुशी करने के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं।
2023 में ही झारखंड में 50 से अधिक बच्चों ने इसी तरह पढ़ाई के दबाव में आत्महत्या कर ली थी।
2019 में देवघर में ही एक छात्र ने परीक्षा के डर से फांसी लगा ली थी।
कोटा, पटना जैसे कोचिंग हब में हर साल सैकड़ों स्टूडेंट्स पढ़ाई के दबाव में अपनी जान दे देते हैं।
क्या माता-पिता और समाज को अब बच्चों की मानसिक स्थिति पर ध्यान देने की जरूरत नहीं है?
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि बच्चों पर जरूरत से ज्यादा पढ़ाई का दबाव डालना खतरनाक साबित हो सकता है।
अगर बच्चा किसी विषय में कमजोर है, तो उसे डांटने की बजाय उसे समझाने की जरूरत है।
बच्चों की मानसिक स्थिति को समझना बहुत जरूरी है, खासकर जब वे गुस्से में हों।
परिवार और शिक्षकों को बच्चों से खुलकर बात करनी चाहिए और उन्हें मानसिक तनाव से बाहर निकालना चाहिए।
देवघर पुलिस की क्या है अगली कार्रवाई?
देवघर पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी है।
पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चलेगा कि बच्चे ने हादसे में जान गंवाई या यह पहले से सोची-समझी आत्महत्या थी।
परिजनों और स्थानीय लोगों से पूछताछ जारी है।
अगर किसी तरह की लापरवाही सामने आती है, तो कानूनी कार्रवाई भी की जा सकती है।
क्या माता-पिता को अब अपनी सोच बदलनी होगी?
बच्चों को डांटना और डराना कोई समाधान नहीं है।
उनके साथ खुलकर बात करें और उनकी परेशानी को समझें।
हर बच्चा पढ़ाई में अव्वल नहीं हो सकता, लेकिन हर बच्चा खास होता है।
उन पर इतना दबाव न डालें कि वे जिंदगी से ही हार मान लें।
क्या अंकेश की मौत समाज के लिए एक चेतावनी है?
इस घटना ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है – क्या पढ़ाई अब बच्चों के लिए बोझ बन गई है? क्या माता-पिता को अपने बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को गंभीरता से लेने की जरूरत है?
अगर सही समय पर बच्चों से बात नहीं की गई, तो ऐसी घटनाएं बार-बार सामने आएंगी।
समाज, स्कूल और माता-पिता को अब समझना होगा कि हर बच्चा एक जैसी क्षमता नहीं रखता।
बच्चों को सही मार्गदर्शन देना ही असली शिक्षा है, न कि उन्हें मानसिक दबाव में डालना।
क्या हम इस दर्दनाक हादसे से कुछ सीख लेंगे, या फिर अगली बार फिर किसी मासूम की जिंदगी ऐसे ही खत्म होगी?
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