Chakulia Forest: लाखों की लागत से बनी मशीन यूनिट दो साल से बंद, रोजगार की उम्मीदें हुईं ध्वस्त!

चाकुलिया वन क्षेत्र में बंबू स्प्लिटिंग मशीन यूनिट पिछले दो साल से बंद, लाखों की लागत की मशीनें बर्बाद हो रही हैं। क्या फिर से यह योजना चालू होगी?

Nov 20, 2024 - 11:53
Nov 20, 2024 - 18:37
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Chakulia Forest: लाखों की लागत से बनी मशीन यूनिट दो साल से बंद, रोजगार की उम्मीदें हुईं ध्वस्त!
Chakulia Forest: लाखों की लागत से बनी मशीन यूनिट दो साल से बंद, रोजगार की उम्मीदें हुईं ध्वस्त!

20 नवम्बर 2024: चाकुलिया वन क्षेत्र में रोजगार सृजन के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर स्थापित की गई कई योजनाएं आज दम तोड़ चुकी हैं। इनमें से एक प्रमुख योजना बंबू स्प्लिटिंग मशीन यूनिट है, जिसे 2006-2007 में विश्व खाद्य कार्यक्रम द्वारा वित्त पोषित किया गया था। यह यूनिट बांस के उत्पादन को बढ़ावा देने और स्थानीय लोगों को रोजगार देने के उद्देश्य से स्थापित की गई थी। लेकिन दुख की बात यह है कि यह यूनिट पिछले दो साल से बंद पड़ी है और लाखों की लागत से खरीदी गई मशीनें और अन्य उपकरण अब बर्बाद हो रहे हैं। इस बीच, स्थानीय लोग रोजगार की उम्मीद में इस यूनिट की ओर देख रहे हैं, लेकिन कोई भी सुधार की दिशा में कदम नहीं बढ़ा रहा है।

2007 में हुआ था बंबू स्प्लिटिंग यूनिट का उद्घाटन

यह बंबू स्प्लिटिंग मशीन यूनिट 2007 में तत्कालीन वन मंत्री सुधीर महतो द्वारा उद्घाटित की गई थी। इसकी स्थापना का उद्देश्य बांस से जुड़े स्थानीय लोगों को रोजगार प्रदान करना और उन्हें बांस से विभिन्न सामान बनाने की ट्रेनिंग देना था। पहले कुछ सालों तक इस यूनिट में काम हुआ और 10 से 12 लोगों को रोजगार भी मिला। इसके अलावा, बांस से निर्मित विभिन्न सामान और प्लाइवुड भी बनाए जाते थे, जिससे न केवल रोजगार सृजन हुआ, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी गति मिली।

दो साल से बंद पड़ा है बंबू स्प्लिटिंग यूनिट

हालांकि, पिछले दो सालों से यह मशीन यूनिट बंद पड़ी है और अब यह पूरी तरह से झाड़ियों से घिर चुकी है। लाखों की लागत से खरीदी गई मशीनें, कंप्यूटर, डीजी सेट और अन्य उपकरण अब बर्बाद हो रहे हैं। इस यूनिट के बंद होने से न केवल स्थानीय लोगों को रोजगार का अवसर नहीं मिल रहा, बल्कि बांस से जुड़ी पूरी व्यवस्था पर भी इसका नकारात्मक असर पड़ा है।

चंद्र मोहन हेंब्रम: बिना वेतन के ड्यूटी पर

इस यूनिट में काम कर रहे बाबरीचुआ गांव के चंद्र मोहन हेंब्रम ने 2011 से रात्रि प्रहरी के रूप में अपनी सेवाएं दी हैं। लेकिन दो साल से उन्हें कोई वेतन नहीं मिला है। वे अब भी बिना वेतन के ड्यूटी कर रहे हैं, केवल इसलिए क्योंकि मशीन यूनिट की चाबी उनके पास है और वह इसे संभाल रहे हैं। चंद्र मोहन हेंब्रम ने बताया कि उन्होंने कई बार रांची जाकर झारखंड के पदाधिकारियों से मशीन यूनिट की चाबी सौंपने का प्रयास किया, लेकिन किसी ने भी इसे लेने में रुचि नहीं दिखाई।

वन विभाग और झारक्राफ्ट के बीच जिम्मेदारी का टकराव

चाकुलिया वन क्षेत्र के प्रभारी वन क्षेत्र पदाधिकारी दिग्विजय सिंह ने बताया कि वन विभाग ने इस यूनिट को झारक्राफ्ट को हैंडओवर कर दिया है, और इसलिए इसकी जिम्मेदारी झारक्राफ्ट की है। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि वन विभाग ने पूरी तरह से इस परियोजना को छोड़ दिया है, लेकिन इस टकराव के कारण यूनिट की देखरेख में भारी कमी आई है। झारक्राफ्ट द्वारा इस यूनिट की अनदेखी के कारण यह पूरी योजना अपनी सफलता से बहुत दूर हो गई है, और लाखों की लागत से खड़ी हुई यह यूनिट अब सिर्फ एक बर्बाद होती योजना बनकर रह गई है।

स्थानीय रोजगार की उम्मीदें अधूरी

इस पूरे मामले में सबसे दुखद पहलू यह है कि चाकुलिया वन क्षेत्र में बांस का उत्पादन बहुत अधिक है, और यहां के लोग बांस से जुड़ी हर गतिविधि में शामिल होते हैं। इस यूनिट को स्थानीय लोगों के लिए रोजगार देने के उद्देश्य से स्थापित किया गया था, लेकिन अब यह योजना पूरी तरह से ठप हो चुकी है। स्थानीय लोग अब रोजगार के लिए परेशान हैं और उनके पास कोई विकल्प नहीं बचा है।

क्या यह भविष्य में साकार हो सकता है?

क्या इस यूनिट को फिर से चालू किया जा सकता है? क्या वन विभाग और झारक्राफ्ट मिलकर इस योजना को फिर से सक्रिय करेंगे और लाखों रुपये की लागत से खरीदी गई मशीनों और उपकरणों का सही उपयोग करेंगे? यह सवाल अब लोगों के मन में खड़ा हो गया है।

यह मामला यह भी दर्शाता है कि सरकारी योजनाओं में गंभीरता की कमी और जिम्मेदारी का टकराव किस तरह से समाज के विकास को प्रभावित कर सकता है। चाकुलिया वन क्षेत्र में रोजगार की उम्मीदें अब भी जीवित हैं, लेकिन इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों को इस दिशा में सही कदम उठाने की जरूरत है।

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