Saraikela Tragedy: गरम मांड़ गिरने से झुलसी डेढ़ साल की बच्ची की मौत, पूरे गांव में शोक
सरायकेला के ईचागढ़ में गरम मांड़ गिरने से झुलसी डेढ़ साल की बच्ची की मौत। जानिए इस दिल दहला देने वाली घटना की पूरी कहानी।
झारखंड के सरायकेला जिले के ईचागढ़ थाना क्षेत्र के खोखरा टोला गांव से एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है। शुक्रवार की शाम, खेल-खेल में डेढ़ साल की मासूम बच्ची सावित्री माझी पर खौलता हुआ मांड़ गिर गया, जिससे वह बुरी तरह झुलस गई। बच्ची को आनन-फानन में एमजीएम अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन इलाज के दौरान शनिवार सुबह उसकी मौत हो गई।
यह घटना पूरे गांव के लिए गहरे सदमे की वजह बन गई है। सावित्री अपनी छह बहनों में सबसे छोटी थी, और उसकी मासूमियत और हंसी से घर हमेशा गुलजार रहता था।
कैसे हुआ हादसा?
बच्ची की मां कल्पना माझी ने बताया कि वह शुक्रवार की शाम चूल्हे पर चावल पका रही थी। कुछ काम के लिए वह घर के बाहर चली गई, और इसी दौरान सावित्री खेलते-खेलते चूल्हे के पास आ गई। चूल्हे पर खौलता हुआ मांड़ रखा हुआ था, जो अचानक बच्ची के ऊपर गिर गया। गर्म तरल के संपर्क में आने से सावित्री बुरी तरह झुलस गई और दर्द से तड़पने लगी।
परिवार वालों ने तुरंत सावित्री को अस्पताल पहुंचाया, लेकिन उसके शरीर पर गहरे घावों और जलन के कारण उसकी हालत गंभीर बनी रही। डॉक्टरों ने भरसक प्रयास किया, लेकिन शनिवार सुबह करीब 5 बजे बच्ची ने दम तोड़ दिया।
ईचागढ़ और मासूम की त्रासदी
ईचागढ़, जो अपने शांत और ग्रामीण परिवेश के लिए जाना जाता है, अब इस हादसे से गमगीन है। खोखरा टोला जैसे छोटे गांवों में ऐसे हादसे दुर्भाग्यपूर्ण होते हैं, जहां स्वास्थ्य सेवाएं और सुरक्षा के उपाय सीमित हैं। यह घटना केवल एक परिवार का दुख नहीं है, बल्कि पूरे गांव की संवेदनाओं को झकझोरने वाली है।
बचाव और सतर्कता: ऐसी घटनाओं से कैसे बचा जाए?
इस घटना ने ग्रामीण परिवारों के लिए सतर्कता की जरूरत को रेखांकित किया है। गांवों में चूल्हे पर खाना बनाना आम बात है, लेकिन इसके साथ ही खतरे भी जुड़े होते हैं। ऐसे हादसों से बचने के लिए चूल्हे के पास बच्चों को जाने से रोकना बेहद जरूरी है।
विशेषज्ञ यह सलाह देते हैं:
- चूल्हे के आसपास बच्चों के खेल को सीमित रखें।
- गर्म तरल पदार्थ या खाना बच्चों की पहुंच से दूर रखें।
- प्राथमिक उपचार की जानकारी हर परिवार को होनी चाहिए।
सावित्री माझी: एक मासूम जिंदगी का अंत
सावित्री केवल डेढ़ साल की थी और परिवार की सबसे छोटी बेटी थी। उसके जाने से उसके माता-पिता और बहनों के बीच शोक का माहौल है। उसके खिलखिलाने और मासूम हरकतों ने घर को जीवंत बना रखा था। अब परिवार केवल उसकी यादों के सहारे ही आगे बढ़ने की कोशिश कर रहा है।
ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी
यह घटना यह भी दर्शाती है कि ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी के कारण कितने परिवारों को ऐसी त्रासदी झेलनी पड़ती है। एमजीएम अस्पताल जैसे क्षेत्रीय स्वास्थ्य केंद्रों में समय पर इलाज न मिलने से अक्सर गंभीर मामलों में जान नहीं बचाई जा सकती। सरकार और स्थानीय प्रशासन को ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कदम उठाने चाहिए।
ईचागढ़ की यह घटना एक बड़ी चेतावनी है कि परिवारों को बच्चों की सुरक्षा पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। सावित्री माझी की दुखद मौत ने पूरे गांव को झकझोर कर रख दिया है। यह घटना केवल एक हादसा नहीं, बल्कि समाज के लिए एक सीख है कि बच्चों की सुरक्षा और सतर्कता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाए।
परिवार की यह त्रासदी किसी भी व्यक्ति को भावुक कर सकती है। प्रशासन और समाज को मिलकर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसी घटनाएं दोबारा न हों।
What's Your Reaction?