Saraikela Victory: चंपई सोरेन की ऐतिहासिक जीत, झामुमो प्रत्याशी गणेश महाली को सातवीं बार हराया

सरायकेला सीट से भाजपा के चंपई सोरेन ने झामुमो के गणेश महाली को 20508 वोटों से हराकर सातवीं बार जीत दर्ज की। जानिए इस ऐतिहासिक जीत की पूरी कहानी।

Nov 23, 2024 - 14:28
Nov 23, 2024 - 14:33
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Saraikela Victory: चंपई सोरेन की ऐतिहासिक जीत, झामुमो प्रत्याशी गणेश महाली को सातवीं बार हराया
Saraikela Victory: चंपई सोरेन की ऐतिहासिक जीत, झामुमो प्रत्याशी गणेश महाली को सातवीं बार हराया

झारखंड की सरायकेला विधानसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता चंपई सोरेन ने एक बार फिर इतिहास रच दिया है। उन्होंने झामुमो (झारखंड मुक्ति मोर्चा) के प्रत्याशी गणेश महाली को 20508 वोटों से हराते हुए लगातार सातवीं बार जीत दर्ज की। इस जीत ने न केवल सरायकेला में भाजपा की पकड़ को और मजबूत किया है, बल्कि चंपई सोरेन को क्षेत्रीय राजनीति में एक अजेय योद्धा के रूप में स्थापित कर दिया है।

15 राउंड की कड़ी गिनती, चंपई की बड़ी बढ़त

चुनाव परिणाम की औपचारिक घोषणा अभी बाकी है, लेकिन 15 राउंड की मतगणना के बाद चंपई सोरेन को कुल 1,18,172 वोट मिले। उनके प्रतिद्वंदी गणेश महाली 97,564 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे। जेएलकेएम के प्रेम मार्डी 38,565 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहे। इस बार नोटा का भी प्रभाव देखा गया, जहां 3,448 वोट पड़े।

पोस्टल बैलट के परिणाम अभी आने बाकी हैं, लेकिन चंपई सोरेन की जीत अब केवल औपचारिकता बनकर रह गई है।

चंपई सोरेन का राजनीतिक सफर: संघर्ष से सफलता तक

चंपई सोरेन का राजनीतिक सफर संघर्ष और मेहनत से भरा रहा है। उन्होंने सरायकेला की राजनीति में 1980 के दशक में कदम रखा। अपनी सादगी, कुशल नेतृत्व और जमीनी जुड़ाव की वजह से उन्होंने जनता के बीच अपनी अलग पहचान बनाई।

सरायकेला सीट पर पहली बार 1995 में जीतने वाले चंपई सोरेन ने अपनी पहली जीत के बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उनकी रणनीतियों और कार्यशैली ने उन्हें हर चुनाव में मजबूत बनाकर रखा। झामुमो के गणेश महाली जैसे अनुभवी प्रतिद्वंदियों को हराने की उनकी काबिलियत ने उन्हें सरायकेला की राजनीति का 'अजेय योद्धा' बना दिया है।

झामुमो को फिर मिली करारी हार

झामुमो प्रत्याशी गणेश महाली, जो कई बार सरायकेला सीट से चंपई सोरेन के सामने उम्मीदवार रहे, इस बार भी उन्हें मात देने में नाकाम रहे। 20508 वोटों का बड़ा अंतर यह दर्शाता है कि झामुमो सरायकेला में अपनी पकड़ बनाने में विफल हो रहा है।

झामुमो के लिए सरायकेला की हार एक कड़ा सबक हो सकती है। पार्टी को इस क्षेत्र में अपनी रणनीति और जमीनी कार्यशैली पर फिर से काम करने की जरूरत है।

चुनाव परिणाम का विश्लेषण

इस बार के चुनाव में भाजपा और चंपई सोरेन के लिए बड़ी बात यह रही कि उन्होंने अपने विकास कार्यों और जनसमर्थन को मजबूत बनाए रखा। चंपई सोरेन के शासनकाल में सरायकेला में कई बुनियादी परियोजनाएं शुरू की गईं, जैसे सड़क निर्माण, शिक्षा में सुधार, और रोजगार के अवसरों की वृद्धि।

इस बार नोटा (NOTA) का भी दिलचस्प प्रभाव देखने को मिला, जहां 3,448 मतदाताओं ने किसी भी उम्मीदवार को न चुनने का विकल्प अपनाया। यह संख्या क्षेत्र के मतदाताओं के भीतर राजनीतिक असंतोष को भी उजागर करती है।

सरायकेला की ऐतिहासिक सीट और इसके मायने

सरायकेला विधानसभा सीट झारखंड की राजनीति में बेहद महत्वपूर्ण है। यह क्षेत्र आदिवासी बहुल होने के साथ-साथ भाजपा और झामुमो के बीच सत्ता संघर्ष का मुख्य केंद्र रहा है। चंपई सोरेन की लगातार जीत ने भाजपा के लिए इस सीट को एक मजबूत गढ़ बना दिया है।

सरायकेला के मतदाताओं का झुकाव भाजपा की ओर दिखाता है कि क्षेत्र में विकास और जनहितैषी नीतियां उनके लिए प्राथमिकता हैं।

चंपई सोरेन की जीत का असर

चंपई सोरेन की इस जीत का असर न केवल सरायकेला बल्कि झारखंड की राजनीति पर भी पड़ेगा। यह जीत भाजपा को राज्य स्तर पर एक मनोवैज्ञानिक बढ़त दिलाती है। वहीं, झामुमो को आत्ममंथन करने की जरूरत है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां उसकी पकड़ कमजोर हो रही है।

चंपई सोरेन की यह जीत एक बार फिर साबित करती है कि जनसमर्थन और विकास की राजनीति हमेशा सफल होती है। सरायकेला की जनता ने चंपई सोरेन पर भरोसा जताते हुए उन्हें क्षेत्र का नेतृत्व सौंपा है।

झारखंड के अन्य क्षेत्रीय नेताओं और पार्टियों के लिए यह एक संदेश है कि जनता केवल काम चाहती है, वादों से नहीं बहकती। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि चंपई सोरेन अपनी सातवीं पारी में सरायकेला को किस नई ऊंचाई तक पहुंचाते हैं।

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