Nawada Demand: अधिवक्ताओं की झोपड़ी में गुहार, 24 साल बाद भी नहीं मिला ठिकाना
नवादा सिविल कोर्ट के उद्घाटन को 24 साल हो गए, लेकिन अधिवक्ता आज भी प्लास्टिक की झोपड़ियों में काम करने को मजबूर। जानें, उनकी गुहार और सरकार से की गई मांग।
नवादा, 7 दिसंबर 2024: नवादा सिविल कोर्ट का उद्घाटन 24 साल पहले हुआ था, लेकिन इस लंबे समय के बाद भी अधिवक्ताओं को कोर्ट परिसर में बैठने की एक स्थायी जगह तक नसीब नहीं हुई है। हालात यह हैं कि अधिवक्ता आज भी प्लास्टिक के तंबू और झोपड़ियों में बैठकर जाड़ा, गर्मी और बरसात में अपने पेशेवर दायित्व निभाने को मजबूर हैं।
प्लास्टिक की झोपड़ी में अधिवक्ता
कोर्ट परिसर में अधिवक्ताओं के लिए जगह की कमी का आलम यह है कि हर मौसम की मार झेलते हुए उन्हें अस्थायी तंबू में काम करना पड़ता है। इस दौरान कई अधिवक्ता बीमार पड़ चुके हैं, और कुछ की समय से पहले मौत भी हो गई है। इसके बावजूद, बिहार सरकार और संबंधित अधिकारियों ने अधिवक्ताओं के लिए स्थायी भवन उपलब्ध कराने की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाए हैं।
आंदोलन और वादे, पर कोई समाधान नहीं
अधिवक्ताओं का कहना है कि उन्होंने कई बार आंदोलन किया और सरकार से जगह उपलब्ध कराने की मांग की। सरकार और प्रशासन ने वादे तो किए, लेकिन उन वादों को जमीन पर उतारने में विफल रहे।
वरिष्ठ अधिवक्ता गौरी शंकर प्रसाद सिंह कहते हैं, "सरकार ने हमें आश्वासन तो दिए, लेकिन वह केवल कागजों तक सीमित रह गए। अधिवक्ता अब प्लास्टिक की छत के नीचे काम करते हुए अपनी गरिमा को खतरे में देख रहे हैं।"
बीमारी और मौतें
अधिवक्ताओं ने बताया कि झोपड़ियों में काम करने के कारण वे कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे हैं। मौसम की मार और अनियमित स्थितियों के चलते कई अधिवक्ताओं की असमय मृत्यु हो चुकी है।
कौन उठा रहा है आवाज?
इस गंभीर समस्या को लेकर कई वरिष्ठ और युवा अधिवक्ताओं ने एकजुट होकर आवाज उठाई है। इन अधिवक्ताओं में पूर्व महासचिव संत शरण शर्मा, अजीत कुमार सिंह, संजय प्रियदर्शी, विपिन कुमार सिंह, अखलेश नारायण, रामश्रय सिंह, कुमार चंदन, करण सक्सेना, और अमित कुमार जैसे नाम शामिल हैं। इन अधिवक्ताओं ने सरकार से तुरंत अधिवक्ता भवन निर्माण के लिए जगह उपलब्ध कराने की मांग की है।
इतिहास में अधिवक्ताओं का संघर्ष
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी अधिवक्ताओं ने अहम भूमिका निभाई थी। महात्मा गांधी, सरदार पटेल और पंडित नेहरू जैसे कई स्वतंत्रता सेनानी भी अधिवक्ता रहे हैं। न्याय व्यवस्था के स्तंभ माने जाने वाले अधिवक्ता आज अपनी समस्याओं के समाधान के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जो देश की न्याय प्रणाली पर सवाल खड़े करता है।
सरकार के लिए एक अहम सवाल
नवादा सिविल कोर्ट की यह समस्या बिहार सरकार के प्रशासनिक ढांचे और न्याय व्यवस्था की प्राथमिकताओं पर सवाल उठाती है। क्या 24 साल का समय अधिवक्ताओं को एक स्थायी भवन देने के लिए पर्याप्त नहीं था?
नवादा के अधिवक्ताओं ने सरकार से तुरंत स्थायी भवन निर्माण की मांग की है। उनकी मांग सिर्फ एक भवन की नहीं, बल्कि एक गरिमामय कार्यस्थल की है, जो न्याय प्रक्रिया को सुचारू रूप से चलाने के लिए आवश्यक है। अगर सरकार इस मुद्दे को गंभीरता से लेती है, तो यह केवल अधिवक्ताओं की स्थिति को सुधारने में मदद नहीं करेगी, बल्कि न्याय प्रणाली में लोगों का विश्वास भी मजबूत करेगी।
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