Jharkhand Protest: महिला सम्मान योजना की आस में टूट रहा सब्र, मंईयां सम्मान योजना पर सड़कों पर उतरीं महिलाएं
झारखंड में महिला सम्मान योजना को लेकर उठा विवाद, सैकड़ों महिलाएं लाभ न मिलने से नाराज़। बार-बार मांगने पर भी सिर्फ आश्वासन, योजना के क्रियान्वयन पर सवाल।

झारखंड के ग्रामीण इलाके एक बार फिर सरकार की वादाखिलाफी के खिलाफ आवाज़ बुलंद कर रहे हैं, और इस बार मोर्चा संभाला है उन महिलाओं ने जिन्हें मंईयां सम्मान योजना के तहत लाभ तो मिला नहीं, लेकिन आश्वासन की झोली जरूर भर दी गई।
बुधवार को झारखंड के एक प्रखंड कार्यालय के समक्ष सैकड़ों महिलाओं ने एकजुट होकर जोरदार नारेबाज़ी की। ये महिलाएं उस महिला सम्मान योजना के तहत लाभुक हैं या बनना चाहती हैं, जिसे राज्य सरकार ने महिला सशक्तिकरण के लिए बड़े वादों के साथ शुरू किया था।
क्या है मंईयां सम्मान योजना?
झारखंड सरकार की मंईयां सम्मान योजना का उद्देश्य था—गृहिणियों और आर्थिक रूप से निर्भर महिलाओं को मासिक आर्थिक सहायता प्रदान करना, जिससे वे आत्मनिर्भर बन सकें और सामाजिक सम्मान पा सकें। योजना के तहत हर लाभुक महिला को तीन महीनों में ₹7500 तक की सहायता राशि देने की बात कही गई थी।
हालांकि, कुछ महिलाओं को यह राशि दी गई भी—लेकिन, बड़ी संख्या में ऐसी महिलाएं हैं जिन्हें आज तक एक पैसा तक नहीं मिला।
सड़कों पर उतरीं महिलाएं क्यों भड़कीं?
“कई बार प्रखंड कार्यालय गए, हर बार सिर्फ आश्वासन मिला,” यह कहना है प्रदर्शन में शामिल एक महिला का। इन महिलाओं का कहना है कि जब योजना सभी के लिए है, तो लाभ चुनिंदा लोगों तक ही क्यों सीमित है?
“अगर सरकार योजना चला नहीं सकती, तो इसे बंद कर दे, ताकि हम लोग बार-बार अपमानित न हों,” एक वृद्ध महिला ने गुस्से में कहा।
इतिहास में झांकें तो...
झारखंड की राजनीति में महिला सशक्तिकरण हमेशा एक बड़ा मुद्दा रहा है। रघुवर दास सरकार से लेकर हेमंत सोरेन की सरकार तक—हर सत्ता ने महिलाओं को वादों के पुल बांधकर अपने पक्ष में करने की कोशिश की।
लेकिन धरातल पर जब योजनाएं असमान रूप से लागू होती हैं, तो न सिर्फ भरोसा टूटता है बल्कि राजनीतिक असंतोष भी गहराता है।
प्रशासनिक चुप्पी और महिलाओं की व्यथा
इन महिलाओं ने प्रशासन से बार-बार संपर्क किया, आवेदन दिया, लाइन में खड़ी रहीं—लेकिन हर बार सिर्फ “जांच चल रही है”, “अभी खाते में राशि नहीं आई” जैसे जवाब मिले।
इस प्रदर्शन में ग्रामीण इलाकों की महिलाएं शामिल थीं जो अक्सर घर की चारदीवारी से बाहर कम ही निकलती हैं। लेकिन जब बात सम्मान और हक़ की हो, तो वे सड़कों पर उतरने को मजबूर हो गईं।
क्या यह सिर्फ एक योजना का मुद्दा है?
नहीं। यह उस बड़ी समस्या का एक हिस्सा है, जिसमें कल्याणकारी योजनाओं की घोषणा तो होती है, पर उनके क्रियान्वयन में भारी खामियां होती हैं।
योजनाएं सत्ता के भाषणों में चमकती हैं, लेकिन ग्रामीण भारत में उनकी प्रभावशीलता सवालों के घेरे में रहती है।
अब आगे क्या?
प्रदर्शन कर रही महिलाओं ने सरकार को चेतावनी दी है—अगर अगले कुछ हफ्तों में योजना के तहत लाभ नहीं दिया गया, तो वे जिला मुख्यालय तक मार्च करेंगी।
उनका कहना है कि अगर सरकार महिला सशक्तिकरण की बात करती है, तो उसे हर महिला को समान रूप से सम्मान देना होगा—क्योंकि अधूरी योजनाएं सिर्फ वादे नहीं तोड़तीं, भरोसे भी तोड़ती हैं।
झारखंड की यह घटना एक बार फिर बताती है कि सिर्फ योजना बनाना काफी नहीं, उसे ईमानदारी और पारदर्शिता के साथ लागू करना ज़रूरी है।
वरना, महिला सशक्तिकरण का सपना सिर्फ भाषणों और घोषणाओं तक ही सीमित रह जाएगा।
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