Jadugora : विद्युत संकट में मौत का खतरा, ग्रामीणों की चिंता बढ़ी
पूर्वी सिंहभूम के जादूगोड़ा के धर्मडीह गांव में 24 साल बाद भी बांस-बल्लियों से हो रही है विद्युत आपूर्ति। ग्रामीणों के लिए मौत का खतरा बन चुकी स्थिति। जानिए पूरी कहानी।
पूर्वी सिंहभूम जिले का धर्मडीह गांव, जिसे अपनी सांस्कृतिक विविधता और प्राकृतिक संसाधनों के लिए जाना जाता है, आज भी बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझ रहा है। खासकर, यहां की विद्युत आपूर्ति व्यवस्था ने ग्रामीणों को भय के साए में डाल रखा है। झारखंड के अलग राज्य बनने के 24 साल बाद भी इस गांव में बिजली के तार बांस-बल्लियों से चलाए जा रहे हैं, जो न केवल असुरक्षित हैं बल्कि एक गंभीर हादसे का कारण भी बन सकते हैं।
भयावह स्थिति:
वीरेंद्र शर्मा, एक स्थानीय निवासी, बताते हैं कि "बिजली के तार जमीन से चार फीट ऊंचाई पर लटके हुए हैं। लोग और उनके जानवर इन तारों के नीचे से गुजरते हैं, और हमेशा मौत का खतरा मंडराता रहता है।" यह स्थिति बताती है कि गांव में बिजली आपूर्ति का हाल कितना चिंताजनक है। लोग दिन-रात इस खतरे का सामना कर रहे हैं, और हर गुजरता दिन उनके लिए नई चुनौती लेकर आता है।
ग्रामीणों का दर्द:
गांव के सैकड़ों लोग इस समस्या से प्रभावित हैं। इस असुरक्षित व्यवस्था की वजह से न केवल उनकी जान को खतरा है, बल्कि उनके घर और संपत्ति भी जोखिम में रहती है। ग्रामीणों का कहना है कि बिजली विभाग के अधिकारी इस गंभीर समस्या पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। यह स्थिति तब और भयावह हो जाती है जब अधिकारी अपनी आंखें मूंदे हुए नजर आते हैं, जैसे किसी बड़े हादसे का इंतजार कर रहे हों।
इतिहास की झलक:
जादूगोड़ा का नाम झारखंड में विशेष स्थान रखता है, खासकर अपनी यूरेनियम खदानों के लिए। यह खनिज भारत के परमाणु कार्यक्रम में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। लेकिन क्या यह उचित है कि जिस क्षेत्र की इतनी बड़ी महत्वता हो, वहां के लोग अपनी बुनियादी जरूरतों के लिए संघर्ष करें? यह सवाल उठता है कि क्या विकास के नाम पर केवल बड़े परियोजनाओं पर ही ध्यान दिया जाता है और आम लोगों की समस्याओं को नजरअंदाज कर दिया जाता है?
आखिर कब जागेगा बिजली विभाग?
ग्रामीणों की शिकायतें और चिंताओं के बावजूद, जादूगोड़ा बिजली विभाग ने अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। समय का चक्र चलता रहता है, लेकिन स्थिति जस की तस बनी हुई है। ग्रामीणों की उम्मीदें अब धीरे-धीरे कमजोर हो रही हैं, और वे सोचने लगे हैं कि क्या कभी उनकी समस्या का समाधान होगा।
भविष्य की दिशा:
यह समय की मांग है कि बिजली विभाग और संबंधित अधिकारी इस समस्या को गंभीरता से लें और गांव में सुरक्षित और प्रभावी बिजली आपूर्ति व्यवस्था स्थापित करें। नहीं तो एक दिन ऐसा हो सकता है जब यह असुरक्षित व्यवस्था एक बड़ा हादसा उत्पन्न कर दे, जिससे न केवल जान-माल का नुकसान होगा बल्कि पूरे क्षेत्र में भय और असुरक्षा का माहौल बनेगा।
सारांश:
धर्मडीह गांव में 24 साल बाद भी बांस-बल्लियों के सहारे हो रही विद्युत आपूर्ति से ग्रामीण भय के साए में जी रहे हैं। यह समय की आवश्यकता है कि बिजली विभाग अपनी जिम्मेदारी समझे और ग्रामीणों को इस संकट से मुक्ति दिलाए।
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