Fake Teacher institutions: देश के 3000 टीचिंग इंस्टिट्यूशंस पर मंडराया खतरा, डिग्री का खेल या शिक्षा का घोटाला?
देशभर के 3000 टीचिंग इंस्टिट्यूशंस पर कार्रवाई की तलवार लटक रही है। एनसीटीई ने कारण बताओ नोटिस भेजे हैं, कई संस्थानों की मान्यता रद्द हो सकती है। जानिए टीचर एजुकेशन के इस बड़े घोटाले की पूरी कहानी।

देश में टीचर बनने का सपना देख रहे हजारों छात्रों के लिए एक चौंकाने वाली खबर सामने आई है। भारत के लगभग 3,000 टीचिंग इंस्टिट्यूशंस अब शक के घेरे में आ चुके हैं। नेशनल काउंसिल फॉर टीचर एजुकेशन (NCTE) ने इन संस्थानों को कारण बताओ नोटिस भेजना शुरू कर दिया है, क्योंकि इन्होंने लगातार दो शैक्षणिक वर्षों — 2021-22 और 2022-23 — की Performance Appraisal Report (PARS) जमा नहीं की है।
एनसीटीई की मान्यता प्राप्त संस्थानों की कुल संख्या करीब 15,500 है, जिनमें से 3,000 ने रिपोर्ट देना जरूरी नहीं समझा। यह संख्या महज़ एक आंकड़ा नहीं, बल्कि देश की शिक्षा व्यवस्था पर गहराते संकट का संकेत है।
शिक्षा या सिर्फ़ दिखावा?
सूत्रों के अनुसार, कई संस्थानों की शिकायतें पहले से आ रही थीं — जैसे कि सिर्फ कागजों पर कोर्स चलाना, बिना किसी स्थायी बिल्डिंग, लाइब्रेरी, प्रयोगशाला या शिक्षकों के। यानी छात्र रजिस्टर में नाम लिखवा रहे हैं, लेकिन असल में पढ़ाई न के बराबर हो रही है। एनसीटीई के चेयरमैन प्रो. पंकज अरोड़ा के अनुसार इन संस्थानों को 15 दिनों के भीतर जवाब देना होगा, वरना मान्यता रद्द कर दी जाएगी।
इतना ही नहीं, जिन संस्थानों की मान्यता रद्द होगी, उनकी जानकारी गजट नोटिफिकेशन के ज़रिए सार्वजनिक की जाएगी ताकि छात्रों और अभिभावकों को पता चल सके कि कौन-कौन से संस्थान अब वैध नहीं हैं।
क्यों जरूरी है PARS रिपोर्ट?
Performance Appraisal Report कोई औपचारिकता नहीं, बल्कि एक तरीका है जिससे यह पता लगाया जाता है कि किसी टीचिंग इंस्टिट्यूट में सही ढंग से पढ़ाई हो रही है या नहीं। इसमें इन्फ्रास्ट्रक्चर, फैकल्टी, स्टूडेंट एनरोलमेंट, क्लासरूम टीचिंग, प्लेसमेंट जैसी कई बातों की जांच होती है।
एनसीटीई का कहना है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत टीचर एजुकेशन सिस्टम में सुधार एक अहम लक्ष्य है, और इसीलिए यह रिपोर्ट अनिवार्य की गई है। इसके ज़रिए फर्जी संस्थानों और डमी टीचर्स-स्टूडेंट्स की पहचान की जा रही है।
टीचर बनने की प्रक्रिया कितनी पारदर्शी?
शिक्षा का क्षेत्र हमेशा से ही देश के विकास का आधार रहा है। लेकिन जब यह खुद ही घोटालों और फर्जीवाड़ों से घिरने लगे तो सवाल उठते हैं। इतिहास की बात करें तो 1993 में जब NCTE एक्ट आया, तो इसका मकसद था शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारना और सिर्फ उन्हीं संस्थानों को मान्यता देना जो तय मानकों को पूरा करते हों।
लेकिन वक्त के साथ कई संस्थान सिर्फ़ कागजों पर चलते रहे — बिना क्लास, बिना लाइब्रेरी, बिना टीचर्स। यही वजह है कि आज NCTE को इतने सख्त कदम उठाने पड़ रहे हैं।
आने वाले दिन होंगे निर्णायक
प्रो. अरोड़ा ने साफ कहा है कि इस प्रक्रिया के बाद देश में टीचिंग एजुकेशन का चेहरा बदलेगा। पहले चरण में डमी संस्थानों की पहचान, फिर मान्यता रद्द और इसके बाद नई गाइडलाइंस के ज़रिए एक नया ढांचा खड़ा किया जाएगा। यह शिक्षा में पारदर्शिता और गुणवत्ता लाने की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है।
अब देखना होगा कि ये 3,000 संस्थान समय रहते जवाब देते हैं या देश की सबसे बड़ी शिक्षा एजेंसी उनके खिलाफ कड़ा फैसला लेती है।
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