Ranchi Fraud Case: रिटायर अधिकारी को डिजिटल अरेस्ट कर ठगे 2.27 करोड़, जानिए पूरा मामला

रांची में रिटायर अधिकारी को डिजिटल अरेस्ट कर 2.27 करोड़ की ठगी। जानिए कैसे TRAI अधिकारी बनकर साइबर ठगों ने इस वारदात को अंजाम दिया।

Jan 14, 2025 - 09:24
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Ranchi Fraud Case: रिटायर अधिकारी को डिजिटल अरेस्ट कर ठगे 2.27 करोड़, जानिए पूरा मामला
Ranchi Fraud Case: रिटायर अधिकारी को डिजिटल अरेस्ट कर ठगे 2.27 करोड़, जानिए पूरा मामला

रांची में साइबर अपराध का एक सनसनीखेज मामला सामने आया है, जहां बरियातू निवासी एक रिटायर्ड कोयला कंपनी अधिकारी को डिजिटल अरेस्ट कर 2.27 करोड़ रुपये की ठगी कर ली गई। यह ठगी TRAI और क्राइम ब्रांच का अधिकारी बनकर अंजाम दी गई।

कैसे हुई यह ठगी?

घटना की शुरुआत 10 दिसंबर 2024 को हुई, जब पीड़ित अधिकारी के मोबाइल पर एक अनजान कॉल आया। कॉल करने वाले ने अपना नाम अभिराज शुक्ला बताया और खुद को TRAI (Telecom Regulatory Authority of India) का अधिकारी कहा।

  • कॉलर ने दावा किया कि पीड़ित के नंबर से अवैध विज्ञापन और भ्रामक मैसेज भेजे जा रहे हैं।
  • शिकायत दर्ज होने की बात कहकर उन्हें दिल्ली क्राइम ब्रांच से जोड़ने की बात कही।
  • वीडियो कॉल के जरिए मानसिक रूप से डराया गया।
  • 10 से 20 दिसंबर तक 8 बार में अलग-अलग बैंक खातों में 2.27 करोड़ रुपये ट्रांसफर कराए गए।

कैसे बनाया मानसिक बंधक?

अभिराज शुक्ला के गिरोह में एक महिला भी शामिल थी, जिसने खुद को दिल्ली क्राइम ब्रांच अधिकारी बताया।

  • महिला ने अपना नाम पूनम गुप्ता बताया।
  • पीड़ित को वीडियो कॉल पर कैमरे के सामने लगातार बने रहने को कहा गया।
  • अवैध गतिविधियों का डर दिखाकर बार-बार पैसे ट्रांसफर करने को मजबूर किया गया।
  • जब पूरी जमा पूंजी ट्रांसफर हो गई, तो आरोपियों ने नंबर ब्लॉक कर दिया।

क्या है 'डिजिटल अरेस्ट' की रणनीति?

डिजिटल अरेस्ट साइबर अपराधियों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली एक नई ठगी तकनीक है।

  • मानसिक रूप से बंधक बनाने के लिए लगातार वीडियो कॉल पर नजर रखी जाती है।
  • पीड़ित को धमकी दी जाती है कि वह कहीं न जाए और सिर्फ निर्देशों का पालन करे।
  • पीड़ित को सोशल आइसोलेशन में रखकर डर और भ्रम की स्थिति पैदा की जाती है।

इतिहास: कैसे शुरू हुई साइबर ठगी?

भारत में साइबर अपराध 2000 के दशक में तेज़ी से बढ़ने लगे।

  • 2008 में IT Act संशोधन के बाद साइबर क्राइम के मामलों में बढ़ोतरी हुई।
  • 2020 के बाद डिजिटल लेन-देन में वृद्धि के साथ ये मामले और बढ़े।
  • फ़िशिंग, वॉयस फ़्रॉड और कॉल स्पूफिंग जैसे मामलों ने साइबर ठगों को नए तरीके अपनाने का मौका दिया।

कब और कैसे हुए पैसे ट्रांसफर?

10 से 20 दिसंबर के बीच पीड़ित से कुल 8 बार पैसों की मांग की गई।

  • पहले ट्रांजैक्शन में 50 लाख रुपये मांगे गए।
  • दूसरे ट्रांजैक्शन में 30 लाख रुपये ट्रांसफर कराए गए।
  • कुल 2.27 करोड़ रुपये विभिन्न खातों में ट्रांसफर कराए गए।

क्या कदम उठाए गए?

जब पीड़ित को ठगी का एहसास हुआ, तो उन्होंने तुरंत CID साइबर थाने और साइबर क्राइम हेल्पलाइन 1930 पर शिकायत दर्ज करवाई।

  • FIR दर्ज कर जांच शुरू कर दी गई है।
  • साइबर थाने ने बैंक खातों को फ्रीज करने का निर्देश दिया है।
  • कॉल रिकॉर्ड्स और UPI ट्रांजैक्शन्स की जांच जारी है।

साइबर ठगी से कैसे बचें?

  1. अनजान कॉल्स को अवॉयड करें: किसी भी अनजान कॉलर की बातों में न आएं।
  2. वीडियो कॉल पर सतर्क रहें: किसी को भी अपने निजी परिवेश का लाइव एक्सेस न दें।
  3. सत्यापन करें: अगर कोई खुद को अधिकारी बताए तो आधिकारिक वेबसाइट से जानकारी सत्यापित करें।
  4. साइबर हेल्पलाइन का प्रयोग करें: ठगी की स्थिति में तुरंत 1930 पर संपर्क करें।

बढ़ती डिजिटल ठगी से रहें सतर्क

रांची का यह मामला बताता है कि साइबर अपराधी कितनी चतुराई से लोगों को मानसिक रूप से फंसा सकते हैं। TRAI और क्राइम ब्रांच का अधिकारी बनकर की गई यह ठगी एक चेतावनी है कि डिजिटल युग में सतर्क रहना बेहद जरूरी है।

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