Moirang Flag Hoisting: जब अंग्रेजों के खिलाफ पहली बार भारतीय धरती पर फहराया गया तिरंगा, जानिए इस ऐतिहासिक घटना की अनसुनी कहानी!

मणिपुर के मोइरंग में 14 अप्रैल 1944 को आज़ाद हिंद फौज ने पहली बार भारतीय धरती पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया था। जानिए इस ऐतिहासिक घटना की अनसुनी कहानी और क्यों यह आज भी हमारे लिए प्रेरणा है।

Apr 14, 2025 - 16:24
Apr 14, 2025 - 16:26
 0
Moirang Flag Hoisting: जब अंग्रेजों के खिलाफ पहली बार भारतीय धरती पर फहराया गया तिरंगा, जानिए इस ऐतिहासिक घटना की अनसुनी कहानी!
Moirang Flag Hoisting: जब अंग्रेजों के खिलाफ पहली बार भारतीय धरती पर फहराया गया तिरंगा, जानिए इस ऐतिहासिक घटना की अनसुनी कहानी!

क्या आप जानते हैं कि आज़ादी का तिरंगा पहली बार भारतीय धरती पर कब और कहाँ फहराया गया था? नहीं, यह दिल्ली या मुंबई में नहीं, बल्कि एक छोटे से मणिपुरी कस्बे मोइरंग में 14 अप्रैल 1944 को हुआ था — और यह इतिहास की सबसे अनदेखी लेकिन सबसे गर्वभरी घटनाओं में से एक है।

यह वही दिन है जिसे आज "मोइरंग दिवस" के रूप में मनाया जाता है, जब आज़ाद हिंद फौज (INA) के वीर सिपाहियों ने ब्रिटिश साम्राज्य को धता बताते हुए मोइरंग पर कब्जा किया और वहाँ भारत का राष्ट्रीय ध्वज फहराया।

शुरुआत हुई थी 1943 में, जब लौटे नेताजी

नेताजी सुभाष चंद्र बोस का 1943 में दक्षिण-पूर्व एशिया में आगमन कोई साधारण घटना नहीं थी। यह उस आंदोलन की चिंगारी थी जिसने अंग्रेजी हुकूमत की नींव को हिलाकर रख दिया। उनके नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) को नया जीवन मिला और सैनिकों में आज़ादी की आग फिर से भड़क उठी।

INA मुख्यतः युद्धबंदियों और दक्षिण-पूर्व एशिया में बसे भारतीयों की सेना थी, जिन्होंने न केवल धर्म, जाति और पंथ से ऊपर उठकर खुद को "भारतीय" कहा, बल्कि अपने प्राणों की आहुति देने में भी पीछे नहीं हटे।

मोइरंग की ओर कूच और पहली जीत

14 अप्रैल, 1944 को INA के कर्नल शौकत अली मलिक अपने सैनिकों के साथ मोइरंग पहुँचे। यहाँ एक घमासान युद्ध हुआ, जिसे अंग्रेजों ने खुद माना कि यह उनके लिए भारत में लड़े गए सबसे कठिन युद्धों में से एक था।

इस युद्ध के अंत में, कर्नल मलिक ने मोइरंग की ज़मीन पर भारत का तिरंगा फहराया — यह भारत की धरती पर राष्ट्रीय ध्वज की पहली औपचारिक स्थापना थी, जो पूरी तरह ब्रिटिश शासन के विरुद्ध एक जीत के रूप में दर्ज हुई।

क्यों है यह इतिहास आज भी अनसुना?

इतिहास की किताबों में अगर आप इस युद्ध के बारे में ढूंढें, तो शायद एक पैराग्राफ भी न मिले। मोइरंग में INA की यह ऐतिहासिक जीत और ब्रिटिश शासन से पहला भू-भाग आज़ाद कराना एक ऐसा अध्याय है जिसे जानबूझकर भुला दिया गया।

इम्फाल की लड़ाई, जो इसके बाद हुई, को तो कुछ हद तक दर्ज किया गया, लेकिन मोइरंग के बलिदान और गौरव को शायद इसीलिए दरकिनार कर दिया गया क्योंकि यह “आधिकारिक” स्वतंत्रता संग्राम की परिभाषा में फिट नहीं बैठता।

INA का सिद्धांत: कोई धर्म नहीं, सिर्फ भारत

आज़ाद हिंद फौज की सबसे खास बात यह थी कि उसमें किसी जाति, धर्म या भाषा का भेद नहीं था। वे खुद को सिर्फ "भारतीय" कहते थे। यही एकता और समर्पण उनकी ताकत थी।

INA के लगभग 60,000 सैनिकों ने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोला और 26,000 से अधिक ने अपनी जान की आहुति दी — सिर्फ इसलिए ताकि अगली पीढ़ियाँ आज़ाद भारत की हवा में सांस ले सकें।

मोइरंग संग्रहालय: एक वीरता की झलक

आज मोइरंग में एक INA संग्रहालय मौजूद है जो इन सभी वीरों की यादें समेटे हुए है। यह संग्रहालय बताता है कि कैसे सीमित संसाधनों के बावजूद इन सिपाहियों ने ब्रिटिश सेना से टक्कर ली और देश के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया।

क्या हम इस वीरता को भूल गए हैं?

आज जब हम आज़ादी की 75वीं वर्षगांठ मना चुके हैं, तब यह सवाल बेहद जरूरी हो गया है: क्या हम अपने असली नायकों को याद कर पा रहे हैं? क्या INA और मोइरंग के बलिदान को हम उतनी जगह दे रहे हैं जितनी वे हकदार हैं?

यह सच है कि युद्ध हम नहीं जीत सके, लेकिन आज़ाद हिंद फौज ने देश को जीत दिला दी। इस घटना ने ब्रिटिश शासन को पहली बार अहसास दिलाया कि भारत अब सिर्फ आंदोलन नहीं कर रहा, बल्कि युद्ध के लिए भी तैयार है।

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow

Nihal Ravidas निहाल रविदास, जिन्होंने बी.कॉम की पढ़ाई की है, तकनीकी विशेषज्ञता, समसामयिक मुद्दों और रचनात्मक लेखन में माहिर हैं।