ईचा खरकई बांध के खिलाफ भड़की आग! कोल्हान के गांवों में शव यात्रा के साथ हेमंत सरकार के खिलाफ जनांदोलन का बिगुल!

झारखंड-ओड़िशा सीमा पर ईचा खरकई बांध के खिलाफ ग्रामीणों का आक्रोश चरम पर, शव यात्रा निकालकर हेमंत सोरेन सरकार को दी खुली चुनौती। जानिए इस जनांदोलन की पूरी कहानी।

Aug 18, 2024 - 20:57
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ईचा खरकई बांध के खिलाफ भड़की आग! कोल्हान के गांवों में शव यात्रा के साथ हेमंत सरकार के खिलाफ जनांदोलन का बिगुल!
ईचा खरकई बांध के खिलाफ भड़की आग! कोल्हान के गांवों में शव यात्रा के साथ हेमंत सरकार के खिलाफ जनांदोलन का बिगुल!

कोल्हान के गांवों में रविवार का दिन एक ऐतिहासिक जनांदोलन का गवाह बना, जब ईचा खरकई बांध के खिलाफ ग्रामीणों का आक्रोश सड़कों पर उमड़ पड़ा। झारखंड और ओड़िशा के सीमावर्ती तीरिंग प्रखंड के ग्राम मुड़ादा में कोल्हान ईचा खरकई बांध विरोधी संघ के बैनर तले एक विशाल जन जागरण सह जनांदोलन का आयोजन किया गया। इस आंदोलन ने ना सिर्फ बांध परियोजना के खिलाफ लोगों के गुस्से को उजागर किया, बल्कि हेमंत सोरेन सरकार के खिलाफ एक नए संघर्ष की शुरुआत का संकेत भी दिया।

इस आंदोलन की अगुवाई ग्रामीण मुंडा घनश्याम सामड की अध्यक्षता में की गई, जिसमें झारखंड और ओड़िशा के सीमावर्ती इलाकों से आए विस्थापित ग्रामीण शामिल हुए। सभा को संबोधित करते हुए संघ के अध्यक्ष बीर सिंह बुड़ीउली ने साफ शब्दों में कहा कि, "शव यात्रा का यह आगाज झारखंड और ओड़िशा के सीमावर्ती क्षेत्रों से शुरू हुआ है, लेकिन यह आग जल्द ही पूरे कोल्हान में फैलेगी। हेमंत सरकार ने आदिवासी मूलवासियों को केवल वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया है, लेकिन अब इसका हिसाब चुकाना होगा।"

ईचा डैम आंदोलन से संबंधित जानकारी साझा करते हुए बुड़ीउली ने ग्रामीणों को एकजुट होकर संयुक्त आंदोलन को तेज करने का आह्वान किया। उन्होंने आरोप लगाया कि झामुमो ने संघर्ष यात्रा और बदलाव यात्रा के जरिए कोल्हान के लोगों को धोखा दिया है। हेमंत सोरेन सरकार ने 87 गांवों के प्रभावित ग्रामीणों के साथ विश्वासघात कर राजनीतिक सत्ता हासिल की, लेकिन बांध रद्द नहीं किया।

आंदोलनकारियों ने डोकोडीह, चिपीडीह, टूपीबेड़ा, कुलुगुट्टू, रामबेड़ा, नंदुआ, और मुड़दा जैसे गांवों में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, जल संसाधन मंत्री चंपाई सोरेन, आदिवासी कल्याण मंत्री दीपक बिरुआ और विधायक निरल पुर्ती की प्रतीकात्मक शव यात्रा निकालकर अपना आक्रोश प्रकट किया। इस शव यात्रा के माध्यम से ग्रामीणों ने स्पष्ट संदेश दिया कि अगर उनकी आवाज़ को अनसुना किया गया, तो सरकार को गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।

इस आंदोलन में मुख्य रूप से सुरेश सोय, हरीश चंद्र अल्डा, रेयांस सामड, श्याम कुदादा, गुलिया कालुंडिया, बिरसा गोडसोरा, रवींद्र अल्डा, कृष्ण चंद्र बानरा, मनसा बोदरा, सुनील बाड़ा, संजीव कुमार सामड, पन्नालाल सामड, जगन्नाथ महाकुड़, सोमनाथ कालुंडिया, मोतीलाल कालुंडिया, गंगाधर सामड, घनश्याम सामड, सीता सामड समेत कई अन्य आंदोलकारियों ने हिस्सा लिया।

कोल्हान के इस जनांदोलन ने हेमंत सोरेन सरकार के खिलाफ एक बड़ी चुनौती पेश की है। ग्रामीणों की इस ललकार ने यह साबित कर दिया है कि अगर उनकी मांगों को नजरअंदाज किया गया, तो इस जनांदोलन की आग पूरे राज्य में फैल सकती है। अब देखना यह है कि हेमंत सरकार इस चुनौती का सामना कैसे करती है और क्या ईचा खरकई बांध परियोजना के खिलाफ ग्रामीणों की आवाज़ को सुना जाएगा या नहीं।

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Team India मैंने कई कविताएँ और लघु कथाएँ लिखी हैं। मैं पेशे से कंप्यूटर साइंस इंजीनियर हूं और अब संपादक की भूमिका सफलतापूर्वक निभा रहा हूं।