ग़ज़ल 3 - नौशाद अहमद सिद्दीकी, भिलाई
दीवाने तेरा नाम लिए दिल से आए हैं, अपना वजूद भूल के ग़ाफ़िल से आए हैं। ......
ग़ज़ल
दीवाने तेरा नाम लिए दिल से आए हैं,
अपना वजूद भूल के ग़ाफ़िल से आए हैं।
सब खैरियत से आज गुज़र जाए रात यह,
आँखों में रंग लेके वो क़ातिल से आए हैं।
तूफां में तेरी कश्ती घिरी देखते ही हम,
तुझको बचाने दौड़ के साहिल से आए हैं।
पहरों हमारे होश पे रहता है यह नशा,
हम आज महजबीन की महफ़िल से आए हैं।
नौशाद कह रहे हैं ज़माने से चीख कर,
देखो हमें कि कौन सी मंज़िल से आए हैं।
गज़लकार,
नौशाद अहमद सिद्दीकी,
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