Jamshedpur Farewell: प्रोफेसर डोरिस दास की विदाई, 43 साल की सेवा को मिला भावुक सम्मान
जमशेदपुर के ग्रेजुएट कॉलेज में प्रोफेसर डोरिस दास का विदाई समारोह आयोजित हुआ। 43 वर्षों की सेवा के बाद B.Ed कोऑर्डिनेटर और वनस्पति विज्ञान विभाग की प्रमुख रहीं डोरिस मैडम को भावभीनी विदाई दी गई।

जमशेदपुर का ग्रेजुएट कॉलेज, साकची—शनिवार, 27 सितंबर 2015। तारीख शायद कैलेंडर पर साधारण लगे, लेकिन इस दिन कॉलेज के इतिहास का एक अहम अध्याय समाप्त हो गया।
कॉलेज के B.Ed कोऑर्डिनेटर और वनस्पति विज्ञान विभाग की प्रमुख प्रोफेसर डोरिस दास ने 43 साल की लंबी और गौरवशाली सेवा के बाद शिक्षण जगत को अलविदा कह दिया।
1982 से 2015 तक का सफ़र
प्रोफेसर डोरिस दास ने 1982 में ग्रेजुएट कॉलेज से अपनी यात्रा की शुरुआत की। उस समय कॉलेज की पहचान आकार ले रही थी और शिक्षा का स्तर सुधार की ओर बढ़ रहा था।
चार दशकों से अधिक समय तक उन्होंने न सिर्फ छात्रों को पढ़ाया बल्कि कॉलेज प्रशासन और अकादमिक गतिविधियों में भी अहम भूमिका निभाई। B.Ed विभाग के समन्वयक के रूप में उनकी मेहनत ने कॉलेज को राज्य भर में नई पहचान दिलाई।
विदाई समारोह में उमड़ा भावनाओं का सैलाब
सेवानिवृत्ति के मौके पर कॉलेज परिसर का माहौल पूरी तरह भावुक था।
समारोह का संचालन डॉ. अर्चना सिन्हा ने किया। मंच पर एक तरफ शिक्षकों की कतार थी तो दूसरी ओर छात्र-छात्राओं की भीड़। सबकी नज़रें उस शख्सियत पर टिकी थीं, जिसने दशकों तक शिक्षा और अनुशासन की मशाल थामे रखी।
कॉलेज की प्राचार्या डॉ. वीणा सिंह प्रियदर्शी ने अपने संबोधन में पुराने दिनों को याद करते हुए कहा—
"डोरिस मैम का सौम्य स्वभाव और जिम्मेदारी से भरा व्यक्तित्व हमेशा हमारी प्रेरणा रहा है। उनके साथ बिताए पलों को भुलाना नामुमकिन है।"
गीत, नृत्य और यादों की बारिश
समारोह की खास बात यह रही कि शिक्षकों ने अपने ढंग से उन्हें सम्मान दिया।
डॉ. अरुंधती डे और डॉ. दीप्ति ने नृत्य प्रस्तुति देकर माहौल को भावुक कर दिया। वहीं, शिक्षकों और कर्मचारियों ने उनके लिए गीत गाकर अपने दिल की बात कही।
हर किसी के पास डोरिस मैडम से जुड़ी कोई न कोई याद थी—कभी क्लासरूम की, कभी स्टाफ मीटिंग की, तो कभी छात्रों की समस्याओं को हल करने की।
परिवार की मौजूदगी और कॉलेज का अपनापन
इस खास पल को और यादगार बनाने के लिए उनके परिवार के सदस्य भी मौजूद थे।
जब मंच से उनके अनुभव साझा किए जा रहे थे, तो परिवार की आंखें गर्व से चमक रही थीं। यह सिर्फ एक विदाई नहीं थी, बल्कि एक शिक्षक के उस समर्पण का उत्सव था, जिसने अपनी पूरी जिंदगी विद्यार्थियों और शिक्षा को समर्पित कर दी।
बहुमुखी व्यक्तित्व
प्रोफेसर डोरिस दास सिर्फ एक शिक्षिका नहीं, बल्कि एक बहुमुखी व्यक्तित्व थीं।
कॉलेज प्रशासनिक कार्यों में उनकी सटीकता, छात्रों के लिए उनका अपनापन और विभागीय गतिविधियों में उनकी सक्रियता हमेशा चर्चा का विषय रहती थी। सहकर्मी उन्हें “समस्या समाधान करने वाली मैडम” के नाम से भी पुकारते थे।
शिक्षा जगत में योगदान
43 साल की सेवा अवधि में उन्होंने हजारों छात्रों को शिक्षा दी। इनमें से कई आज डॉक्टर, शिक्षक, प्रोफेसर और सरकारी सेवाओं में कार्यरत हैं। उनका मानना था कि “शिक्षा केवल डिग्री नहीं, बल्कि जीवन जीने का संस्कार है।”
यही कारण है कि उनके विद्यार्थी आज भी उन्हें सिर्फ शिक्षक नहीं, बल्कि मार्गदर्शक और जीवन सलाहकार के रूप में याद करते हैं।
आखिर में…
जमशेदपुर के ग्रेजुएट कॉलेज में हुआ यह विदाई समारोह इस बात का गवाह बना कि एक शिक्षक का प्रभाव पीढ़ियों तक कायम रहता है।
प्रोफेसर डोरिस दास का जाना भले ही कॉलेज के लिए एक खालीपन छोड़ गया हो, लेकिन उनकी दी हुई सीख और योगदान हमेशा आने वाले समय में कॉलेज की नींव को मज़बूत करते रहेंगे।
अब सवाल यह है—क्या आने वाली पीढ़ी के शिक्षकों में भी वही समर्पण और जिम्मेदारी दिखाई देगी, जो डोरिस मैडम ने अपने 43 वर्षों में दिखाई?
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