Seraikela Festival : सरायकेला में चैत्र पर्व के साथ शुरू हुआ छऊ महोत्सव, एसडीओ निवेदिता नियति ने दी आयोजन की पूरी जानकारी!
सरायकेला में चैत्र पर्व के साथ शुरू हुआ छऊ महोत्सव, एसडीओ निवेदिता नियति ने दी आयोजन की पूरी जानकारी। जानिए कब-कब होंगी खास पूजा और क्या है इसका ऐतिहासिक महत्व।

अब एक बार फिर इस पारंपरिक पहचान को रंगीन बनाने जा रहा है – राजकीय छऊ महोत्सव, जो चैत्र पर्व के साथ ज़ोर-शोर से मनाया जा रहा है। मंगलवार को इस भव्य आयोजन की रूपरेखा प्रेस कांफ्रेंस में साझा की गई, जिसमें प्रभारी अनुमंडल पदाधिकारी एवं छऊ कला केंद्र की सचिव निवेदिता नियति ने बताया कि यह उत्सव पूरी श्रद्धा और पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ मनाया जा रहा है।
छऊ: सिर्फ नृत्य नहीं, पहचान है
छऊ नृत्य कोई साधारण लोक नृत्य नहीं है, बल्कि ये है वीरता, पौराणिकता और परंपरा का ऐसा मेल, जो एक मास्क पहनकर हजारों दिलों को छूता है। सरायकेला, मयूरभंज और पुरुलिया – इन तीन शैलियों में छऊ का प्रदर्शन होता है, लेकिन सरायकेला शैली अपनी खासियत के लिए प्रसिद्ध है।
मुखौटे, शौर्य नाट्य और परंपराओं से भरपूर ये कला न केवल देश में, बल्कि विदेशों में भी खूब सराही जाती है।
महोत्सव की शुरुआत और पूजा की तिथियां
एसडीओ निवेदिता नियति ने जानकारी दी कि:
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6 अप्रैल को भैरव पूजा से महोत्सव की शुरुआत होगी
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9 अप्रैल: झुमकेश्वरी पूजा
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10 अप्रैल: यात्राघट शिवशक्ति पूजा
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11 अप्रैल: वृन्दावनी घट पूजा
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12 अप्रैल: गोरियाभार घट पूजा
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13 अप्रैल: कालीका घट पूजा
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14 अप्रैल: पाट संक्रांति पूजा के साथ समापन
हर पूजा के साथ सरायकेला की सांस्कृतिक आत्मा जागती है और छऊ महोत्सव इसे और भी जीवंत बना देता है।
क्या है टेंडर विवाद?
छऊ महोत्सव में वर्क ऑर्डर को लेकर सवाल खड़े हुए कि क्या बिना टेंडर दिए कार्य दिया गया है? इस पर निवेदिता नियति ने साफ़ किया कि किसी भी तरह की अनियमितता नहीं होगी। टेंडर प्रक्रिया पूरी पारदर्शिता से की जा रही है। उन्होंने कहा, "वर्क ऑर्डर का मतलब यह नहीं कि उसी को काम मिलेगा, जिसकी फाइल चली है। नियमों के तहत संवेदक को चुना जाएगा।"
कलाकारों को मिलेगा पूरा सम्मान
निवेदिता नियति ने साफ़ किया कि इस आयोजन में कोई पक्षपात नहीं किया जाएगा। हर कलाकार को उनके हुनर के मुताबिक पूरा मंच और सम्मान दिया जाएगा। उन्होंने मीडिया और स्थानीय लोगों से मिलकर आयोजन को सफल बनाने की अपील भी की।
इतिहास से जुड़े क़दम
छऊ नृत्य की जड़ें शैव परंपरा, शक्तिवाद और मार्शल आर्ट से जुड़ी हुई हैं। छऊ नृत्य प्राचीन युद्ध-कौशल को रंगमंच पर उतारता है। खास बात ये है कि यह पूरी तरह मुखौटे और प्रतीकात्मक भावों से चलता है। न कोई संवाद, न कोई शब्द – सिर्फ हाव-भाव और नृत्य की लय।
तो क्यों है ये इतना खास?
छऊ महोत्सव ना सिर्फ एक सांस्कृतिक आयोजन है, बल्कि यह सरायकेला की अस्मिता, उसकी कला और इतिहास को पुनर्जीवित करने वाला पर्व है। इसमें केवल कलाकारों की प्रस्तुति नहीं, बल्कि पीढ़ियों की पहचान छुपी हुई है।
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