Saraswati Puja Ban Controversy :सरस्वती पूजा पर रोक: प्रशासन का फैसला या पक्षपात? जानिए पूरा सच
RIMS प्रशासन ने सरस्वती पूजा पर सुरक्षा कारणों से रोक लगाई, लेकिन विरोध के बाद मंत्री इरफान अंसारी के हस्तक्षेप से फैसला बदला गया। क्या यह केवल प्रशासनिक निर्णय था या धार्मिक पक्षपात? जानिए पूरी खबर।
रांची: हाल ही में झारखंड की राजधानी रांची स्थित राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (RIMS) में सरस्वती पूजा पर अचानक लगाई गई रोक से छात्रों और स्थानीय लोगों में भारी नाराजगी देखी गई। पहले प्रशासन ने सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए सरस्वती पूजा समारोह पर प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन जब विरोध तेज हुआ, तो सरकार के हस्तक्षेप के बाद यह प्रतिबंध हटा लिया गया। इस फैसले ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं – क्या यह प्रशासनिक निर्णय मात्र था, या इसके पीछे किसी प्रकार का पूर्वाग्रह था?
कैसे लगा सरस्वती पूजा पर प्रतिबंध?
रांची के सबसे बड़े मेडिकल संस्थान RIMS में हर साल की तरह इस बार भी छात्रों ने सरस्वती पूजा का आयोजन किया था। लेकिन कैंपस में हाल ही में हुई झड़पों के चलते प्रशासन ने सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए पूजा कार्यक्रम पर प्रतिबंध लगा दिया। इस फैसले की खबर मिलते ही छात्रों, शिक्षकों और स्थानीय हिंदू संगठनों में आक्रोश फैल गया। उनका कहना था कि यह प्रतिबंध केवल एक धार्मिक समुदाय विशेष के त्योहार पर लगाया गया, जो उचित नहीं है।
छात्रों का विरोध और सोशल मीडिया पर गुस्सा
सरस्वती पूजा पर रोक के फैसले से नाराज छात्रों ने कॉलेज प्रशासन के खिलाफ प्रदर्शन शुरू कर दिया। सोशल मीडिया पर भी इस प्रतिबंध की जमकर आलोचना हुई। #SaveSaraswatiPuja और #RIMSProtest जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे।
छात्रों ने सवाल उठाए कि –
✅ अगर शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक आयोजन सुरक्षा कारणों से प्रतिबंधित हैं, तो क्या यह नियम सभी धर्मों पर लागू होगा?
✅ क्या प्रशासन ने पहले कभी किसी अन्य धार्मिक आयोजन पर इस तरह का प्रतिबंध लगाया है?
✅ सिर्फ सरस्वती पूजा को टारगेट करना क्या पक्षपातपूर्ण रवैया नहीं है?
मंत्री इरफान अंसारी के हस्तक्षेप के बाद फैसला बदला
छात्रों के बढ़ते विरोध को देखते हुए झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री इरफान अंसारी ने इस मामले में हस्तक्षेप किया। सोशल मीडिया के माध्यम से उन्होंने कहा कि सरस्वती पूजा पर लगी रोक को तुरंत हटाया जाए और छात्रों की भावनाओं का सम्मान किया जाए। इसके बाद RIMS प्रशासन ने एक आधिकारिक बयान जारी कर कहा –
"हाल ही में हुई घटनाओं को देखते हुए यह फैसला लिया गया था, लेकिन छात्रों और स्वास्थ्य मंत्री के निर्देशों के बाद हमने इस निर्णय को वापस लेने का फैसला किया है। पूजा आयोजन की अनुमति दी जाएगी, साथ ही सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए जाएंगे।"
क्या यह प्रशासनिक फैसला था या पूर्वाग्रह?
इस पूरे विवाद के बाद सवाल उठता है कि क्या RIMS प्रशासन का फैसला केवल सुरक्षा कारणों से था, या इसमें धार्मिक भेदभाव का कोई तत्व मौजूद था?
- अगर सुरक्षा ही मुद्दा था, तो सभी धर्मों के आयोजनों पर समान नियम क्यों नहीं लागू किए गए?
- छात्रों ने जब विरोध किया, तभी प्रशासन को अपना फैसला क्यों बदलना पड़ा?
- क्या यह हिंदू त्योहारों को टारगेट करने की कोई सोची-समझी नीति थी?
इन सभी सवालों के जवाब भविष्य की प्रशासनिक नीतियों और सरकार की मंशा पर निर्भर करेंगे।
राजनीतिक प्रतिक्रिया और हिंदू संगठनों का आक्रोश
इस घटना के बाद कई हिंदू संगठनों और राजनीतिक दलों ने भी प्रशासन के फैसले की निंदा की। VHP और बजरंग दल ने इसे हिंदू आस्थाओं के खिलाफ साजिश करार दिया। विपक्षी दलों ने भी सरकार पर धार्मिक भेदभाव का आरोप लगाया।
राज्य में पहले भी कई बार हिंदू त्योहारों पर पाबंदी लगाने की कोशिश की गई है, लेकिन जब जनता ने विरोध किया, तो प्रशासन को अपने फैसले पलटने पड़े।
क्या सीख मिली?
इस घटना से दो प्रमुख बातें स्पष्ट होती हैं:
- अगर छात्र और समाज अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाएं, तो सरकार को गलत फैसले वापस लेने पड़ते हैं।
- किसी भी धार्मिक आयोजन पर प्रतिबंध लगाना, खासकर एक विशेष समुदाय के त्योहार पर, समाज में असंतोष और अविश्वास पैदा कर सकता है।
सरस्वती पूजा पर रोक लगाने के इस विवाद ने यह दिखाया कि जनता की एकता और दबाव में प्रशासन को अपने फैसले बदलने पड़ते हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि भविष्य में ऐसे पक्षपातपूर्ण फैसले लेने से पहले सरकार और प्रशासन अधिक सतर्कता बरतेंगे।
सरस्वती पूजा पर लगी इस रोक ने जनता के भीतर एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है – क्या यह प्रशासनिक लापरवाही थी या एक सुनियोजित साजिश? हालांकि, छात्रों और जनता के दबाव में सरकार को अपना फैसला वापस लेना पड़ा, लेकिन यह घटना भविष्य में धार्मिक स्वतंत्रता और प्रशासनिक फैसलों की निष्पक्षता पर बहस जरूर छेड़ गई है।
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