Ranchi Fraud: एक इंच जमीन नहीं, फिर भी 22 को मिली नौकरी, 29 साल बाद सजा
रांची के पिपरवार क्षेत्र में जमीन अधिग्रहण के नाम पर फर्जी दस्तावेजों से सीसीएल में नौकरियां पाने वाले 22 अभियुक्तों को 29 साल बाद तीन साल की सजा। जानें पूरा मामला।
रांची के पिपरवार क्षेत्र से जुड़ा यह मामला झारखंड के सबसे चर्चित जमीन अधिग्रहण घोटालों में से एक बन गया। 1995 से 1996 के बीच 22 लोगों ने फर्जी दस्तावेजों के जरिए सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड (CCL) में नौकरी पा ली, जबकि उन्होंने एक इंच भी जमीन अधिग्रहण के लिए नहीं दी थी।
यह घोटाला तब उजागर हुआ जब 1998 में असली जमीन मालिक नौकरी के लिए कागजात लेकर सीसीएल के मुख्यालय पहुंचे। उन्हें यह जानकर हैरानी हुई कि उनकी जमीन के बदले नौकरियां पहले ही दे दी गई थीं। इसके बाद मामला सीबीआई को सौंपा गया।
सीबीआई की जांच: फर्जी दस्तावेज और मिलीभगत का पर्दाफाश
सीबीआई ने 18 अगस्त 1998 को प्राथमिकी दर्ज की। पांच साल की लंबी जांच के बाद 2003 में चार्जशीट दाखिल की गई। जांच में यह पाया गया कि सीसीएल के अधिकारियों ने फर्जी दस्तावेजों के आधार पर 28 लोगों को नौकरी दिलाने में मदद की।
जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया के दौरान 1995 में पहली बार 14 लोगों को नौकरी मिली। फिर 1996 में 10 और लोगों को नौकरी दी गई। इस पूरी साजिश में सीसीएल के तत्कालीन जीएम हरिद्वार सिंह समेत कई अधिकारियों की भूमिका पाई गई।
अदालत का फैसला: 22 दोषी, 3 साल की सजा
29 साल की कानूनी लड़ाई के बाद, सीबीआई के विशेष न्यायाधीश पीके शर्मा ने शुक्रवार को 22 अभियुक्तों को दोषी करार देते हुए तीन साल की कैद और जुर्माने की सजा सुनाई।
सजा पाने वाले प्रमुख अभियुक्त:
- हरिद्वार सिंह (तत्कालीन जीएम) और उनके बेटे प्रमोद कुमार सिंह
- मनोज कुमार सिंह
- कृष्ण नंद दुबे
- मुरारी कुमार दुबे
- प्रमोद कुमार
- दिनेश रॉय
- ललित मोहन सिंह
- बैजनाथ महतो
- जयपाल सिंह
जुर्माना:
- हरिद्वार सिंह पर 58,000 रुपये
- अन्य अभियुक्तों पर 8,000 रुपये
कैसे हुआ फर्जीवाड़ा?
अभियुक्तों ने अधिकारियों से मिलीभगत कर फर्जी दस्तावेज बनाए और खुद को जमीन का मालिक साबित किया। असली जमीन मालिकों को इस घोटाले की भनक तब लगी जब वे नौकरियों के लिए आवेदन करने पहुंचे।
घोटालों का इतिहास: झारखंड में बढ़ती फर्जीवाड़े की घटनाएं
झारखंड में जमीन अधिग्रहण से जुड़े कई विवाद पहले भी सामने आए हैं।
- 2000 का दशक: औद्योगिक परियोजनाओं के लिए जमीन अधिग्रहण के दौरान कई बार हकदारों को धोखा दिया गया।
- 2015: खूंटी जिले में आदिवासियों की जमीन पर फर्जी कागजात के जरिए कब्जा करने का मामला चर्चा में रहा।
जनता की प्रतिक्रिया और प्रशासन की कार्रवाई
यह फैसला झारखंड की जनता के लिए राहत की खबर है। हालांकि, यह सवाल उठाता है कि ऐसी धोखाधड़ी रोकने के लिए प्रशासन कितनी तैयार है।
सीबीआई के लोक अभियोजक खुशबू जायसवाल ने अदालत में प्रभावी तरीके से पक्ष रखा, जिससे इस घोटाले का पर्दाफाश हो सका।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला भ्रष्टाचार के खिलाफ एक अहम जीत है। लेकिन, सवाल यह है कि 29 साल तक न्याय में देरी क्यों हुई।
भ्रष्टाचार पर रोक के लिए सुझाव:
- जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाना।
- डिजिटल दस्तावेज प्रबंधन प्रणाली लागू करना।
- फर्जीवाड़े के मामलों में तेज़ न्याय प्रक्रिया।
यह मामला न्याय के लिए लंबी लड़ाई का प्रतीक है। 29 साल बाद दोषियों को सजा मिली, लेकिन यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि भविष्य में ऐसा घोटाला न हो। झारखंड जैसे राज्य में, जहां जमीन अधिग्रहण और नौकरियों से जुड़े मामले संवेदनशील होते हैं, प्रशासन को और अधिक सतर्कता बरतनी होगी।
What's Your Reaction?