Patan Tragedy: Medical College Ragging से छात्र की मौत, जांच में जुटी पुलिस
गुजरात के पाटन मेडिकल कॉलेज में रैगिंग के कारण 18 वर्षीय छात्र की मौत। एंटी-रैगिंग सेल और पुलिस मामले की जांच में जुटी।
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गुजरात के पाटन में स्थित धारपुर के जीएमईआरएस मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में रैगिंग की एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है। यहां रैगिंग के चलते एक 18 वर्षीय छात्र की मौत हो गई। यह घटना न केवल माता-पिता बल्कि समाज को भी सोचने पर मजबूर कर देती है कि क्या हमारे शैक्षणिक संस्थान अभी भी छात्रों के लिए सुरक्षित हैं।
क्या है पूरा मामला?
शनिवार रात हॉस्टल में सीनियर छात्रों ने जूनियर्स के एक समूह को "जान-पहचान" के नाम पर रैगिंग के लिए रोक लिया। रिपोर्ट के अनुसार, 7-8 सीनियर छात्रों ने जूनियर छात्रों को तीन घंटे तक धूप में खड़े रहने के लिए मजबूर किया। इस दौरान उन्हें कहा गया कि वे चुपचाप खड़े रहें और किसी प्रकार की प्रतिक्रिया न दें।
इसी दौरान 18 वर्षीय छात्र अनिल मेथानिया, जो सुरेंद्रनगर जिले के ध्रांगधरा तालुका के जेसदा गांव का निवासी था, बेहोश होकर गिर पड़ा। उसे तुरंत अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।
डीन और पुलिस का क्या कहना है?
कॉलेज के डीन, डॉ. हार्दिक शाह ने इस घटना की पुष्टि करते हुए बताया कि कॉलेज की एंटी-रैगिंग सेल ने मामले की जांच शुरू कर दी है। उन्होंने कहा कि अनिल की मौत वरिष्ठ छात्रों द्वारा किए गए मानसिक और शारीरिक दबाव का परिणाम हो सकती है।
पुलिस ने मृतक के शव का पोस्टमार्टम कराया है और आकस्मिक मौत का मामला दर्ज किया गया है। बलिसाना पुलिस स्टेशन के अधिकारियों के अनुसार, रैगिंग के दौरान किए गए अमानवीय व्यवहार की जांच की जा रही है।
रैगिंग के खिलाफ कड़े कानून, लेकिन फिर भी घटनाएं क्यों?
भारत में रैगिंग के खिलाफ 1989 में एंटी-रैगिंग कानून बना, लेकिन इसके बावजूद यह समस्या पूरी तरह खत्म नहीं हुई। 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे रोकने के लिए सख्त दिशा-निर्देश जारी किए थे। इसके तहत कॉलेजों में एंटी-रैगिंग सेल और काउंसलिंग की व्यवस्था की गई।
फिर भी, इस तरह की घटनाएं कानून और व्यवस्था पर सवाल खड़े करती हैं। रैगिंग का शिकार होने वाले छात्रों पर इसका गहरा मानसिक और शारीरिक प्रभाव पड़ता है, जिसका असर उनके जीवनभर रहता है।
अनिल के परिवार का दर्द
अनिल के माता-पिता ने इस घटना के लिए कॉलेज प्रशासन और सीनियर छात्रों को दोषी ठहराया है। उनका कहना है कि अनिल मेडिकल क्षेत्र में बड़ा नाम बनना चाहता था, लेकिन इस घटना ने उनके सपनों को चूर कर दिया।
रैगिंग: एक समाजिक समस्या
रैगिंग केवल एक शैक्षणिक संस्थान की समस्या नहीं है; यह हमारे समाज का एक बड़ा मुद्दा है। रैगिंग को एक "मस्ती" या "परंपरा" के रूप में देखा जाता है, लेकिन यह नए छात्रों के लिए मानसिक उत्पीड़न और शारीरिक शोषण का माध्यम बन जाती है।
समाज और प्रशासन की भूमिका
इस घटना से यह स्पष्ट है कि केवल कानून बनाना काफी नहीं है। प्रशासन और समाज को मिलकर इस समस्या का समाधान खोजना होगा।
- कॉलेज प्रशासन को जागरूकता बढ़ाने और एंटी-रैगिंग सेल को और सशक्त बनाने की जरूरत है।
- छात्रों को जागरूक करना और उन्हें सही प्रशिक्षण देना जरूरी है।
- रैगिंग के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए, ताकि अन्य छात्रों को सबक मिले।
स्थिति को बदलने की जरूरत
अनिल मेथानिया जैसे होनहार छात्र की मौत ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि हमें रैगिंग को जड़ से खत्म करने की आवश्यकता है। इस घटना ने देशभर के अभिभावकों और छात्रों को झकझोर कर रख दिया है।
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