Mumbai Notice Challenge: टाटा स्टील को 25 हजार करोड़ की टैक्स मांग, भूषण डील पर फिर उठा विवाद!
टाटा स्टील ने भूषण स्टील अधिग्रहण से जुड़ी 25,185 करोड़ रुपये की कर्ज माफी पर आयकर विभाग के नोटिस को बांबे हाईकोर्ट में चुनौती दी है। जानिए इस बहुचर्चित डील और विवाद का पूरा सच।

मुंबई: देश की दिग्गज स्टील निर्माता कंपनी टाटा स्टील एक बार फिर चर्चा में है। इस बार मामला है भूषण स्टील के अधिग्रहण से जुड़ी भारी-भरकम कर्ज माफी और उस पर मिले आयकर विभाग के नोटिस का, जिसे टाटा स्टील ने सीधे बांबे हाईकोर्ट में चुनौती दी है।
लेकिन ये सिर्फ एक नोटिस का मामला नहीं है — यह मामला कॉरपोरेट टैक्सेशन, दिवालियापन कानून और हजारों करोड़ के टैक्स के सवालों से जुड़ा है। सवाल ये है कि क्या टाटा स्टील को 25,185.51 करोड़ रुपये की कर्ज माफी पर टैक्स देना होगा?
क्या है पूरा मामला?
साल 2018 में जब भूषण स्टील दिवालियापन की कगार पर थी, तब टाटा स्टील ने अपनी सहायक कंपनी बामनीपाल स्टील के ज़रिए भूषण स्टील को इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC) के तहत खरीदा था।
यह अधिग्रहण मई 2018 में हुआ और इसके बाद भूषण स्टील का नाम बदलकर टाटा स्टील BSL लिमिटेड कर दिया गया।
इस डील के साथ ही भूषण स्टील पर मौजूद 25,185.51 करोड़ रुपये का कर्ज माफ हो गया था। यह कर्ज माफी अब विवाद का मुख्य बिंदु बन चुकी है।
टैक्स नोटिस क्यों और किस आधार पर?
13 मार्च 2025 को टाटा स्टील को इनकम टैक्स डिपार्टमेंट से एक शो कॉज नोटिस मिला, जिसमें पूछा गया कि इस भारी-भरकम कर्ज माफी को टैक्सेबल इनकम के रूप में क्यों न जोड़ा जाए?
यह नोटिस आयकर विभाग के डिप्टी कमिश्नर, मुंबई द्वारा आकलन वर्ष 2019-2020 के लिए जारी किया गया है, और उद्देश्य है आय में पुनर्मूल्यांकन।
टाटा स्टील से दस्तावेज मांगे गए हैं जो यह स्पष्ट कर सकें कि यह कर्ज माफी टैक्स के दायरे से बाहर क्यों है।
टाटा स्टील का तर्क: कर्ज माफी हमारी नहीं थी
टाटा स्टील ने इस नोटिस को “ग़लत और तथ्यहीन” करार दिया है।
कंपनी का कहना है कि भूषण स्टील के अधिग्रहण से मिली कर्ज माफी, IBC कानून के तहत हुई थी, जो इनकम टैक्स कानून के अंतर्गत टैक्स योग्य नहीं मानी जा सकती।
इसके अलावा, टाटा स्टील का कहना है कि वित्तीय वर्ष 2018-19 में जब आयकर रिटर्न फाइल की गई थी, तब इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने बिना किसी आपत्ति के उसे स्वीकार कर लिया था। उस वक़्त इस तरह की कोई टैक्स देनदारी नहीं उठाई गई थी।
अंदरूनी कहानी: कर्ज माफी पर क्यों मचा बवाल?
IBC की प्रक्रिया के तहत जब कोई कंपनी दिवालिया होती है, तो खरीदार को उस पर मौजूद कर्ज का एक हिस्सा माफ किया जाता है।
लेकिन यह माफी टैक्सेबल है या नहीं — इस पर भारत के टैक्स कानूनों में स्पष्टता की कमी है, और यही टाटा स्टील और इनकम टैक्स विभाग के बीच टकराव की जड़ बन चुका है।
टाटा स्टील का कहना है कि यह कर्ज माफी लाभ के रूप में नहीं थी, बल्कि यह अधिग्रहण प्रक्रिया का हिस्सा थी।
जबकि टैक्स विभाग मानता है कि इतनी बड़ी राशि की माफी को बिना टैक्स के नहीं छोड़ा जा सकता।
बांबे हाईकोर्ट की भूमिका क्या होगी?
अब मामला हाईकोर्ट के दरवाज़े पर है। टाटा स्टील ने बांबे हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करते हुए इस नोटिस को चुनौती दी है।
अभी सुनवाई प्रारंभिक चरण में है, लेकिन यह केस आने वाले कॉरपोरेट टैक्सेशन विवादों की दिशा तय कर सकता है।
क्या ये मामला बाकी कंपनियों पर भी असर डालेगा?
अगर कोर्ट टाटा स्टील के पक्ष में फैसला देती है, तो यह दिवालिया कंपनियों के अधिग्रहण में राहत देने वाले बड़े फैसलों में से एक हो सकता है।
वहीं अगर टैक्स विभाग का पक्ष मजबूत साबित हुआ, तो भविष्य में IBC के तहत हुए अधिग्रहणों पर टैक्स का बड़ा बोझ आ सकता है।
टाटा स्टील और आयकर विभाग के बीच यह जंग सिर्फ 25,000 करोड़ की नहीं है, यह उस सिस्टम की परीक्षा है जिसे कॉरपोरेट इंडिया आज भरोसे से देखता है।
अब सबकी निगाहें हाईकोर्ट के फैसले पर टिकी हैं — क्या होगा कर का कानून, और कौन जीतेगा यह कानूनी मुकाबला?
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