Jivitputrika Vrat 2022: बिहार में जितिया व्रत कब है, 17 या 18 सितंबर 2022 को

बिहार में जितिया व्रत कब है. तिथि को लेकर महिलाएं भ्रमित हो रही है. यह कारण इस बार इसलिए बना हुआ है, क्योंकि पंचांग का मत तिथि को लेकर अलग-अलग है. आइए जानते है बिहार में जितिया व्रत कब है

Jivitputrika Vrat 2022: बिहार में जितिया व्रत कब है, 17 या 18 सितंबर 2022 को
Jivitputrika Vrat 2022: बिहार में जितिया व्रत कब है, 17 या 18 सितंबर 2022 को

जितिया भारत के बिहार प्रांत में होने वाला भक्ति और उपासना का कठिन व्रतों में से एक इस पर्व में जीवित्पुत्रिका, जितिया, जिउतिया और ज्युतिया व्रत के नाम से जाना जाता है जितिया व्रत माताएं अपनी संतानों के स्वस्थ जीवन दीर्घायु की कामना के लिए निर्जला व्रत करती है यह विशेषकर भारत के बिहार झारखंड तथा उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है इसके अलावा भारत के पड़ोसी देश नेपाल में भी इस पद को महिलाएं करती हैं साल 2022 में पंचांग के अलग-अलग मत के कारण तिथि को लेकर ऊहापोह  की स्थिति बनी हुई है

 

पंचांग के अनुसार जूतियां आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को होता है जितिया इस साल 18 सितंबर 2022 को होगा आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 18 सितंबर 2022 से शुरू होकर इसका समापन 19 सितंबर 2022 को होगा इसलिए इस बार जितिया का व्रत 18 सितंबर 2022 रविवार को रखा जाएगा तथा इसका पारण  19 सितंबर 2022 सोमवार को किया जाएगा| 

Jivitputrika Vrat 2022: बिहार में जितिया व्रत कब है, 17 या 18 सितंबर 2022 को

काशी विश्वनाथ पंचांग के अनुसार जीवित्पुत्रिका व्रत 2022 शुभ मुहूर्त

  • आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि का आरंभ - 16 सितंबर दिन शुक्रवार दोपहर 1 बजकर 36 मिनट पर
  • आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि का आरंभ - 17 सितंबर दिन शनिवार की दोपहर 02 बजकर 56 मिनट से
  • आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि का समापन- 18 सितंबर दिन रविवार की दोपहर 04 बजकर 39 मिनट तक
  • व्रत पारण का शुभ समय- 19 सितंबर 2022 दिन सोमवार सुबह 06 बजकर 38 मिनट के बाद (गाय के दूध से पारण करने का विशेष महत्व होता है)

 

जितिया व्रत की विधि

जितिया व्रत माताएं निर्जला प्रकट करती है इस व्रत में महिलाएं उपवास रखकर संतान की दीर्घायु और सुख समृद्धि की कामना करती है जितिया व्रत के दिन महिलाएं सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करती हैं तथा पूजा पाठ करके पूरे दिन निर्जला व्रत रखती है निर्जला व्रत में पानी भी नहीं पिया जाता है कि अगले दिन सूर्य को अर्घ्य देने के बाद ही महिलाएं व्रत का पारण करती है तथा इसके बाद ही अन्य ग्रहण कर सकती हैं धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत के पारण में यानी तीसरे दिन मुख्य रूप से झोर भात, मरुवा की रोटी और नोनी का साग  खाया जाता है |

जीवित्पुत्रिका का व्रत निर्णय

  • यह व्रत 17 सितंबर 2022 को दिन शनिवार से अष्टमी तिथि की शुरुआत दोपहर 2 बजकर 56 मिनट पर होगी. सप्तमी तिथि की समाप्ति 18 सितंबर 2022 को दिन के 4 बजकर 39 मिनट पर समाप्त होगा. इसलिए जीवित्पुत्रिका व्रत 18 सितंबर 2022 को मनाया जाएगा.
  • शास्त्रों के अनुसार जीवित्पुत्रिका व्रत का निर्णय अश्विन कृष्णपक्ष में जिस दिन चंद्रोदय काल में अष्टमी प्राप्त हो, उस दिन लक्ष्मी व्रत तथा जिस दिन सूर्योदय में प्राप्त हो उस दिन जीवित्पुत्रिका व्रत करना चाहिए.

गाय का दूध से पारण करना रहेगा शुभ

जब प्रदोष काल में अष्टमी हो तो महिलाएं जीवित वाहन की पूजा करती है अतः 18 सितंबर 2022 को किया जाए तो अष्टमी युक्त नवमी मिल जाती है वही व्रत का पारण का समय 19 सितंबर 2022 की सुबह 6:38 के बाद किया जाएगा पारण के लिए गाय का दूध सर्वोत्तम माना जाता है|

 

 

जिउतिया व्रत की पौराणिक कथा 1-

गन्धर्वराज जीमूतवाहन बड़े धर्मात्मा और त्यागी पुरुष थे। युवाकाल में ही राजपाट छोड़कर वन में पिता की सेवा करने चले गए थे। एक दिन भ्रमण करते हुए उन्हें नागमाता मिली, जब जीमूतवाहन ने उनके विलाप करने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि नागवंश गरुड़ से काफी परेशान है, वंश की रक्षा करने के लिए वंश ने गरुड़ से समझौता किया है कि वे प्रतिदिन उसे एक नाग खाने के लिए देंगे और इसके बदले वो हमारा सामूहिक शिकार नहीं करेगा। इस प्रक्रिया में आज उसके पुत्र को गरुड़ के सामने जाना है। नागमाता की पूरी बात सुनकर जीमूतवाहन ने उन्हें वचन दिया कि वे उनके पुत्र को कुछ नहीं होने देंगे और उसकी जगह कपड़े में लिपटकर खुद गरुड़ के सामने उस शिला पर लेट जाएंगे, जहां से गरुड़ अपना आहार उठाता है और उन्होंने ऐसा ही किया। गरुड़ ने जीमूतवाहन को अपने पंजों में दबाकर पहाड़ की तरफ उड़ चला। जब गरुड़ ने देखा कि हमेशा की तरह नाग चिल्लाने और रोने की जगह शांत है, तो उसने कपड़ा हटाकर जीमूतवाहन को पाया। जीमूतवाहन ने सारी कहानी गरुड़ को बता दी, जिसके बाद उसने जीमूतवाहन को छोड़ दिया और नागों को ना खाने का भी वचन दिया।

जिउतिया व्रत की पौराणिक कथा 2-

गन्धर्वराज जीमूतवाहन बड़े धर्मात्मा और त्यागी पुरुष थे। युवाकाल में ही राजपाट छोड़कर वन में पिता की सेवा करने चले गए थे। एक दिन भ्रमण करते हुए उन्हें नागमाता मिली, जब जीमूतवाहन ने उनके विलाप करने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि नागवंश गरुड़ से काफी परेशान है, वंश की रक्षा करने के लिए वंश ने गरुड़ से समझौता किया है कि वे प्रतिदिन उसे एक नाग खाने के लिए देंगे और इसके बदले वो हमारा सामूहिक शिकार नहीं करेगा। इस प्रक्रिया में आज उसके पुत्र को गरुड़ के सामने जाना है। नागमाता की पूरी बात सुनकर जीमूतवाहन ने उन्हें वचन दिया कि वे उनके पुत्र को कुछ नहीं होने देंगे और उसकी जगह कपड़े में लिपटकर खुद गरुड़ के सामने उस शिला पर लेट जाएंगे, जहां से गरुड़ अपना आहार उठाता है और उन्होंने ऐसा ही किया। गरुड़ ने जीमूतवाहन को अपने पंजों में दबाकर पहाड़ की तरफ उड़ चला। जब गरुड़ ने देखा कि हमेशा की तरह नाग चिल्लाने और रोने की जगह शांत है, तो उसने कपड़ा हटाकर जीमूतवाहन को पाया। जीमूतवाहन ने सारी कहानी गरुड़ को बता दी, जिसके बाद उसने जीमूतवाहन को छोड़ दिया और नागों को ना खाने का भी वचन दिया।