Delhi Ban में Court का बड़ा फैसला: रतन टाटा के नाम पर अवार्ड देना अब गैरकानूनी
दिल्ली हाईकोर्ट ने टाटा समूह के चेयरमैन रतन टाटा के नाम पर दिए जा रहे अवार्ड पर रोक लगाई। जानिए पूरा मामला और कोर्ट ने क्यों लिया यह फैसला।
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टाटा समूह के चेयरमैन रतन टाटा के नाम का अनाधिकृत उपयोग अब कानूनी रूप से प्रतिबंधित हो गया है। दिल्ली हाईकोर्ट ने "रतन टाटा आइकन अवार्ड" नाम से दिए जा रहे पुरस्कार पर पूरी तरह रोक लगा दी है। यह मामला तब उठा जब सर रतन टाटा ट्रस्ट और टाटा ट्रस्ट ने बौद्धिक संपदा (Intellectual Property) के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए अदालत में याचिका दायर की।
रतन टाटा – सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि एक ब्रांड!
भारतीय उद्योग जगत में रतन टाटा सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि एक प्रतिष्ठित ब्रांड हैं। उनकी नेतृत्व क्षमता और समाजसेवा के कारण वे न सिर्फ उद्योग जगत बल्कि आम जनता में भी बेहद सम्मानित व्यक्ति माने जाते हैं। कोर्ट ने भी अपने फैसले में कहा कि रतन टाटा का नाम खुद में एक ब्रांड है, जिसे किसी भी तरह से बिना अनुमति के इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
क्या था पूरा विवाद?
- रजत श्रीवास्तव नामक व्यक्ति द्वारा "रतन टाटा आइकन अवार्ड" नाम से एक अवार्ड का आयोजन किया जा रहा था।
- टाटा ट्रस्ट ने कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा कि यह अवार्ड टाटा ब्रांड की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा सकता है।
- न्यायालय ने पाया कि रतन टाटा का नाम और टाटा ट्रस्ट का लोगो किसी अन्य संस्था द्वारा इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
- कोर्ट ने इस तरह के किसी भी अवार्ड पर रोक लगाने का आदेश दिया।
दिल्ली हाईकोर्ट का क्या कहना है?
दिल्ली हाईकोर्ट की जस्टिस मिनी पुष्करणा ने इस मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि "रतन टाटा का नाम और प्रतिष्ठा संरक्षित किए जाने योग्य है।" कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि कोई भी व्यक्ति या संस्था टाटा ट्रस्ट या रतन टाटा के नाम का उपयोग कर जनता को गुमराह नहीं कर सकती।
क्या रतन टाटा का नाम ट्रेडमार्क बनेगा?
यह मामला सिर्फ अवार्ड तक सीमित नहीं है। कोर्ट यह भी विचार कर रही है कि क्या रतन टाटा को उनकी लोकप्रियता और ब्रांड वैल्यू के आधार पर एक "प्रसिद्ध ट्रेडमार्क" घोषित किया जाए। यदि ऐसा होता है, तो रतन टाटा का नाम कानूनी रूप से संरक्षित हो जाएगा और कोई भी इसे बिना अनुमति के व्यावसायिक रूप से इस्तेमाल नहीं कर पाएगा।
आरोपी कंपनी ने क्या कहा?
जब कोर्ट ने आरोपी रजत श्रीवास्तव और उनकी कंपनी यूसी मेंटर्स प्राइवेट लिमिटेड को तलब किया, तो उन्होंने स्वीकार किया कि वे अब रतन टाटा के नाम का उपयोग नहीं करेंगे और पुरस्कार को पूरी तरह से रद्द कर रहे हैं। इसके बाद कोर्ट ने मामला समाप्त कर दिया, लेकिन अगली सुनवाई की तारीख 12 फरवरी 2025 तय की है, जिसमें और भी अहम फैसले आ सकते हैं।
टाटा ग्रुप का तर्क – प्रतिष्ठा और भरोसे को नुकसान पहुंचाने की साजिश
टाटा समूह की ओर से अधिवक्ता राजीव नायर, प्रवीण आनंद और अच्युतन श्रीकुमार ने कोर्ट में दलील दी कि यह पुरस्कार टाटा ब्रांड की छवि को नुकसान पहुंचाने और जनता को गुमराह करने की कोशिश थी।
सर रतन टाटा ट्रस्ट और टाटा ट्रस्ट ने दो करोड़ रुपये हर्जाने की मांग भी की, ताकि भविष्य में इस तरह की धोखाधड़ी दोबारा न हो।
क्या टाटा ब्रांड का गलत इस्तेमाल पहले भी हुआ है?
टाटा समूह पिछले कई दशकों से अपने ब्रांड की सुरक्षा के लिए कानूनी लड़ाई लड़ता आ रहा है। इससे पहले भी टाटा नाम का दुरुपयोग कर फर्जी कंपनियों और योजनाओं को बढ़ावा दिया गया।
- 2020 में टाटा ग्रुप ने एक फर्जी "टाटा मॉर्टगेज लोन स्कीम" के खिलाफ केस दर्ज किया था।
- 2018 में फर्जी टाटा ट्रस्ट से जुड़े एनजीओ द्वारा चंदा इकट्ठा करने का मामला सामने आया था।
कोर्ट का बड़ा संदेश
दिल्ली हाईकोर्ट का यह फैसला न केवल टाटा समूह की प्रतिष्ठा की रक्षा करता है, बल्कि भविष्य में ब्रांड नामों के दुरुपयोग को भी रोकता है। यह स्पष्ट कर दिया गया है कि रतन टाटा का नाम सिर्फ एक व्यक्ति का नाम नहीं, बल्कि भारतीय उद्योग जगत की विरासत है।
अगली सुनवाई में क्या होगा? क्या रतन टाटा का नाम ट्रेडमार्क बनेगा? इस पर 12 फरवरी को कोर्ट का फैसला आ सकता है।
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