Chaibasa Blast Alert: सारंडा जंगल में नक्सली IED विस्फोट से झारखंड जगुआर के जवान की शहादत, कोबरा जवान गंभीर
पश्चिम सिंहभूम के छोटानागरा में नक्सलियों के खिलाफ सर्च अभियान के दौरान IED ब्लास्ट में झारखंड जगुआर के एक जवान की मौत हो गई, जबकि कोबरा बटालियन का एक जवान घायल है। जानिए कैसे सारंडा जंगल फिर से बन रहा है नक्सली गतिविधियों का गढ़।

झारखंड के पश्चिम सिंहभूम जिले का छोटानागरा एक बार फिर सुर्खियों में है। यहां चल रहे नक्सल विरोधी सर्च ऑपरेशन के दौरान हुए आईईडी ब्लास्ट ने एक जवान की जान ले ली और दूसरे को गंभीर रूप से घायल कर दिया। घटना उस वक्त हुई जब सुरक्षा बल जंगल में नक्सलियों की तलाश कर रहे थे। अचानक जमीन के नीचे छिपे मौत के हथियार ने विस्फोट किया।
इस विस्फोट में झारखंड जगुआर के बहादुर जवान सुनील धान शहीद हो गए, जबकि कोबरा बटालियन के विष्णु सैनी गंभीर रूप से घायल हो गए। दोनों को तुरंत एयरलिफ्ट कर रांची लाया गया और राज अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां इलाज के दौरान सुनील ने दम तोड़ दिया। विष्णु की हालत अभी भी नाजुक बनी हुई है।
इतिहास दोहराने लगा है खुद को?
सारंडा जंगल का नाम सुनते ही झारखंड की जनता के जेहन में नक्सली हिंसा की पुरानी यादें ताजा हो जाती हैं। कभी यह इलाका माओवादियों का गढ़ हुआ करता था। वर्ष 2011 में "ऑपरेशन मानसून" के तहत बड़े स्तर पर सेना ने इस क्षेत्र में नक्सलियों की कमर तोड़ी थी। परंतु अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि नक्सली फिर से इस क्षेत्र में पैर पसारने लगे हैं।
एसपी आशुतोष शेखर की मानें तो इस क्षेत्र में भाकपा (माओवादी) के टॉप लीडर मिसिर बेसरा, अनमोल, मोछु, अनल, असीम मंडल और अजय महतो अपने दस्तों के साथ सक्रिय हैं। ये नक्सली सरगना अब भी जंगलों में घूमते हुए विध्वंसक गतिविधियों को अंजाम देने की फिराक में हैं।
हर कदम पर मौत का खतरा
सुरक्षा बलों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है आईईडी (इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस)। नक्सलियों ने जंगल के रास्तों में जगह-जगह आईईडी बिछा रखे हैं, जो हल्का दबाव पड़ते ही विस्फोट करते हैं। यही कारण है कि सर्च ऑपरेशन के दौरान हर कदम सोच-समझकर रखना पड़ता है। अब तक कई जवान इसी तरह की घटनाओं में शहीद हो चुके हैं।
चाईबासा पुलिस, झारखंड जगुआर, सीआरपीएफ और कोबरा बटालियन की टीमें मिलकर संयुक्त ऑपरेशन चला रही हैं। हर दिन जंगल में गश्त की जा रही है, नक्सलियों के डंप को ध्वस्त किया जा रहा है, और IED को निष्क्रिय किया जा रहा है। लेकिन जैसे-जैसे ऑपरेशन आगे बढ़ रहा है, नक्सलियों की हथियारबंदी और रणनीति भी सामने आ रही है।
क्या अब भी सुरक्षित हैं हमारे जवान?
इस सवाल का जवाब ढूंढना मुश्किल है। सुरक्षा बल दिन-रात अपनी जान जोखिम में डालकर जंगलों की खाक छान रहे हैं, लेकिन नक्सली अपनी चाल में सफल हो रहे हैं। सबसे बड़ी चिंता यह है कि आधुनिक तकनीक और संसाधनों के बावजूद, नक्सली हर दिन आईईडी विस्फोट जैसी वारदातों को अंजाम दे पा रहे हैं।
सरकार और पुलिस प्रशासन को चाहिए कि वे इस दिशा में और प्रभावी कदम उठाएं। ऑपरेशन को और मजबूत करें, ड्रोन तकनीक का इस्तेमाल बढ़ाएं, और सुरक्षा बलों को बुलेटप्रूफ प्रोटेक्शन और एडवांस ट्रेन्ड डिटेक्शन सिस्टम से लैस करें।
जनता का क्या?
इस पूरी स्थिति में सबसे ज्यादा प्रभावित होती है स्थानीय जनता। नक्सलियों का डर, पुलिस के सर्च ऑपरेशन और बार-बार हो रहे विस्फोटों ने गांवों की रफ्तार रोक दी है। लोग खौफ में हैं, खेती छोड़ रहे हैं, स्कूल बंद हो रहे हैं। ऐसे में ज़रूरत है स्थाई समाधान की।
झारखंड के मुख्यमंत्री और केंद्र सरकार को इस ओर ध्यान देना होगा कि सिर्फ सैन्य ऑपरेशन से नहीं, बल्कि शिक्षा, रोजगार और विकास के जरिए भी नक्सलवाद का अंत किया जा सकता है।
सारंडा एक बार फिर नक्सली गतिविधियों का केंद्र बनता जा रहा है। झारखंड जगुआर के सुनील धान की शहादत और कोबरा के विष्णु सैनी की हालत ने यह साफ कर दिया है कि लड़ाई अब और कठिन होने वाली है। लेकिन सवाल यह है – क्या हम तैयार हैं?
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