Barkatha Fight: महुआ चुनने को लेकर दो पक्षों में हिंसक भिड़ंत, 10 महिलाओं की हालत गंभीर!
बरकट्ठा प्रखंड के कपका गांव में महुआ चुनने को लेकर दो पक्षों के बीच हुए हिंसक झगड़े में 10 महिलाएं घायल हो गईं। गांव में तनावपूर्ण माहौल, जानिए पूरी कहानी।

झारखंड के बरकट्ठा प्रखंड के कपका गांव में बुधवार की सुबह एक आम-सी दिनचर्या ने बवाल का रूप ले लिया, जब महुआ चुनने को लेकर दो पक्षों के बीच ऐसा विवाद हुआ कि 10 महिलाएं घायल होकर अस्पताल पहुंच गईं।
महुआ, जो झारखंड के ग्रामीण जीवन का न सिर्फ एक आर्थिक साधन, बल्कि सांस्कृतिक हिस्सा भी है, अब गांवों में झगड़े की वजह बनता जा रहा है।
महुआ... वरदान या विवाद?
झारखंड और खासकर बरकट्ठा जैसे इलाकों में महुआ सिर्फ पेड़ नहीं, जीवनदायिनी है।
ग्रामीण इससे तेल, शराब, खाद्य पदार्थ और दवा तक बनाते हैं।
लेकिन गांवों में ये पेड़ अकसर विवादों का कारण बनते हैं, क्योंकि इनकी उपज सीमित होती है और मांग अधिक।
कपका गांव में भी कुछ ऐसा ही हुआ, जब महुआ बीनने के अधिकार को लेकर दो परिवारों में तनातनी शुरू हुई, जो कुछ ही देर में हिंसक रूप ले बैठी।
10 महिलाएं घायल, गांव में दहशत
मारपीट में भुनेश्वरी देवी (24), खुशबू देवी (23), कौशल्या देवी (30), लीलावती देवी (40), लक्ष्मी देवी (25), रीना देवी (25), कौशल्या देवी (24), मंजू देवी (40), देवंती देवी (35), और गिरजा देवी (30) गंभीर रूप से घायल हुई हैं।
सभी घायलों का इलाज बरकट्ठा के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में चल रहा है।
गांव वालों के अनुसार, महिलाएं महुआ बीन रही थीं, तभी एक पक्ष ने दूसरे पर झपट्टा मारा।
कुछ ही मिनटों में लाठी-डंडे चलने लगे और चीत्कारों से पूरा इलाका गूंज उठा।
गांव के बुजुर्गों की चेतावनी, "ऐसा पहले भी हो चुका है"
गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि महुआ बीनने को लेकर यह पहली बार नहीं हुआ।
"हर साल गर्मियों में जब महुआ गिरने लगता है, तो पेड़ों पर दावा करने वाले झगड़ पड़ते हैं," – यह कहना है 70 वर्षीय बुधन पंडित का, जो गांव के पुराने निवासी हैं।
बुधन पंडित कहते हैं, "पहले ऐसे झगड़े पंचायत बैठाकर सुलझा लिए जाते थे, लेकिन अब लोग कानून हाथ में लेने लगे हैं।"
पुलिस मौन, लेकिन गांव में तनाव बरकरार
इस घटना के बाद भी स्थानीय पुलिस की कोई आधिकारिक कार्रवाई सामने नहीं आई है।
गांव में अभी भी तनाव का माहौल है और दोनों पक्षों के बीच तनाव और बदले की भावना महसूस की जा रही है।
ग्रामीणों की मांग है कि इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए पंचायत या प्रशासन कोई स्थायी समाधान लाए।
ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि
महुआ का आदिवासी और ग्रामीण समुदाय में गहरा महत्व है।
यह पेड़ सिर्फ आमदनी का जरिया नहीं, बल्कि लोकगीतों, त्योहारों और रीति-रिवाजों का हिस्सा है।
ऐसे में जब इससे जुड़ी कोई हिंसक घटना सामने आती है, तो यह सिर्फ एक झगड़ा नहीं, बल्कि सामाजिक संतुलन के बिगड़ने का संकेत भी होता है।
कब मिलेगा समाधान?
कपका की यह घटना सिर्फ एक गांव की कहानी नहीं है, बल्कि यह पूरे झारखंड और भारत के ग्रामीण इलाकों में प्राकृतिक संसाधनों पर अधिकार को लेकर चल रहे संघर्ष की एक झलक है।
प्रशासन, पंचायत और समाज को मिलकर सोचना होगा कि कैसे ऐसे विवादों को रोका जाए, ताकि महुआ जैसे वरदान विवाद का कारण न बनें।
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