Sitamarhi Tender: लगातार दूसरे साल सरकारी ठेकेदारी, मेले का भविष्य अधर में
सीतामढ़ी मेले के लिए लगातार दूसरी बार ठेकेदारों ने निविदा प्रक्रिया से किनारा किया। सरकारी ठेकेदारी और प्रशासनिक उदासीनता के चलते ऐतिहासिक मेले का अस्तित्व संकट में।
सीतामढ़ी जिले का ऐतिहासिक मेला, जो अपने सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व के लिए जाना जाता है, इस बार भी सरकारी ठेकेदारों के हवाले रहेगा। लगातार दूसरे साल, स्थानीय ठेकेदारों ने मेला निविदा प्रक्रिया में भाग नहीं लिया, जिससे जिला प्रशासन को मेला संचालन के लिए सरकारी तंत्र पर निर्भर होना पड़ा।
दूसरी बार ठेकेदारों ने निविदा से बनाई दूरी
जिला प्रशासन ने मेले के लिए पहले 11 से 13 नवंबर और फिर 5 से 7 दिसंबर तक निविदा प्रक्रिया आयोजित की। लेकिन दोनों बार, स्थानीय ठेकेदारों ने निविदा में भाग लेने से इनकार कर दिया।
पूर्व ठेकेदार राजेंद्र सिंह ने बताया, "सीतामढ़ी मेला की सुरक्षित राशि इतनी अधिक है कि स्थानीय ठेकेदार इसे वहन नहीं कर सकते। पिछले साल भी यही स्थिति थी और इस साल भी, निविदा के लिए कोई इच्छुक नहीं मिला।"
इतिहास और महत्व: सीतामढ़ी मेले की पहचान
सीतामढ़ी मेला भारत की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है। यह मेला माता सीता की निर्वासन स्थली और लव-कुश की जन्मस्थली के तौर पर प्रसिद्ध है।
- काष्ठ कला का प्रमुख केंद्र: मेले में काष्ठ कला से बने उत्पादों की भारी मांग रहती है।
- कृषि और सामाजिक उपयोग: विवाह, गौना जैसे मांगलिक कार्यों और कृषि उपकरणों के लिए लोग इस मेले का इंतजार करते हैं।
यह मेला स्थानीय व्यापारियों और कारीगरों के लिए भी आजीविका का बड़ा जरिया है।
प्रशासनिक उदासीनता का आरोप
पूर्व ठेकेदारों ने जिला प्रशासन पर उदासीनता का आरोप लगाते हुए कहा कि मेले की बढ़ती सुरक्षित राशि और सरकारी मदद की कमी ने ठेकेदारों को किनारे कर दिया है।
- पिछले साल सरकारी स्तर पर मेला संचालन से मात्र 13.5 लाख की वसूली हो पाई थी।
- इस बार मेला संचालन के लिए 25 लाख की सुरक्षित राशि तय की गई है, जो चार दिनों के मेले के लिए अव्यावहारिक मानी जा रही है।
रविंद्र सिंह, मेला संचालक, ने कहा, "अगर प्रशासन सुरक्षित राशि में कमी करता है, तो ठेकेदार निविदा में भाग लेने पर विचार कर सकते हैं।"
स्थानीय ठेकेदारों की दुविधा
स्थानीय ठेकेदार, जो पिछले 40 सालों से मेला संचालन की जिम्मेदारी उठाते आए हैं, ने कहा कि हर बार उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ता है।
राजेंद्र सिंह ने बताया, "बढ़ती टेंडर राशि और नगण्य सरकारी सहयोग के कारण ठेकेदारी अब लाभदायक नहीं रही।"
मेला संचालन पर संकट
अगर यही स्थिति बनी रही, तो सीतामढ़ी मेला, जो अपनी सांस्कृतिक और आर्थिक विरासत के लिए जाना जाता है, धीरे-धीरे अपने अस्तित्व को खो सकता है।
भविष्य का रास्ता क्या?
मेला संरक्षित रखने के लिए जिला प्रशासन को गंभीरता से विचार करना होगा।
- सुरक्षित राशि में कमी: टेंडर राशि को व्यवहारिक बनाया जाए।
- स्थानीय ठेकेदारों को प्रोत्साहन: उन्हें सरकारी सहायता और वित्तीय प्रोत्साहन दिया जाए।
- पारदर्शी संचालन: मेले की वसूली और खर्च का हिसाब-किताब सार्वजनिक किया जाए।
ऐतिहासिक सीतामढ़ी मेला केवल व्यापार और संस्कृति का केंद्र नहीं है, बल्कि यह क्षेत्र की पहचान भी है। इसे संरक्षित रखना हमारी जिम्मेदारी है। सरकारी तंत्र और स्थानीय ठेकेदारों को मिलकर इसका समाधान निकालना होगा, ताकि यह मेला आने वाली पीढ़ियों तक जीवित रह सके।
क्या सीतामढ़ी मेला फिर से अपने पुराने वैभव को पा सकेगा? यह सवाल अब जिला प्रशासन और समाज दोनों के लिए चुनौती बन गया है।
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