Saraikela Collision Drama: टांगरानी गांव में आमने-सामने टकराई बाइकें, एंबुलेंस ने बढ़ाया बवाल
सरायकेला के टांगरानी गांव में दो बाइकों की आमने-सामने टक्कर से मचा हड़कंप, एंबुलेंस की गैरहाजिरी ने बढ़ाई परेशानी, स्थानीय लोगों ने निभाई फरिश्तों की भूमिका।

सरायकेला खरसावां: राजनगर थाना क्षेत्र के टांगरानी गांव में सोमवार की सुबह कुछ ऐसा हुआ जिसने एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए—क्या आपातकाल में भी हमारी व्यवस्थाएं समय पर काम करती हैं? ओडिशा के बहलदा से टाटा की ओर जा रहे सुबोध महतो और टांगरानी के मंगल बास्के की बाइकें गांव के पास आमने-सामने भिड़ गईं। हादसा इतना भीषण था कि दोनों सवार सड़क पर लहूलुहान हालत में गिर पड़े।
हैरानी की बात यह रही कि हादसे के तुरंत बाद स्थानीय लोगों ने 108 एंबुलेंस सेवा को सूचना दी, लेकिन जो जवाब मिला, उसने सभी को चौंका दिया। एंबुलेंस चालक ने "व्यस्तता" का हवाला देकर आने से इनकार कर दिया। सवाल उठता है कि अगर आपात स्थिति में भी सरकारी सेवा समय पर न पहुँचे, तो लोगों की ज़िंदगी किसके हवाले?
स्थानीयों ने संभाली ज़िम्मेदारी
घटना स्थल पर जमा हुए ग्रामीणों ने बिना देरी किए खुद ही घायलों को राजनगर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पहुँचाने की ज़िम्मेदारी उठाई। बाद में जब सीएचसी प्रभारी को फोन किया गया, तब जाकर एक और एंबुलेंस की व्यवस्था की गई, जिससे दोनों को अस्पताल पहुँचाया जा सका। ये वही आम लोग थे जो अक्सर खबरों में "मूक दर्शक" के रूप में देखे जाते हैं, लेकिन आज इन्होंने इंसानियत की मिसाल कायम की।
घटना कैसे घटी?
घटना सुबह करीब 10 बजे की है। सुबोध महतो, जो होंडा शाइन (नं. OD11W-6098) बाइक से टाटा जा रहे थे, उसी समय मंगल बास्के अपनी पैशन प्लस (JH05D-0368) बाइक से टाटा से कामारवासा लौट रहे थे। टांगरानी गांव के पास एक मोड़ पर दोनों की बाइकों की आमने-सामने भिड़ंत हो गई। दोनों युवकों के सिर और पैरों में गहरी चोटें आई हैं और फिलहाल उनका इलाज सीएचसी राजनगर में चल रहा है।
एंबुलेंस सेवा की हकीकत
सरकार भले ही "108 एंबुलेंस सेवा" को ग्रामीण क्षेत्रों में आपातकालीन जीवनरक्षक पहल कहती हो, लेकिन इस मामले ने इसकी सच्चाई को उजागर कर दिया। पहले भी झारखंड के कई हिस्सों से 108 एंबुलेंस सेवा की अनदेखी और देर की खबरें आती रही हैं। और आज फिर टांगरानी की इस घटना ने साबित कर दिया कि जब तक स्थानीय लोग खुद आगे नहीं आएंगे, तब तक सिस्टम का भरोसा खतरे में रहेगा।
इतिहास की झलक
सरायकेला-खरसावां जिला, जो झारखंड के पश्चिमी हिस्से में स्थित है, ओडिशा की सीमा से सटा हुआ क्षेत्र है। यह क्षेत्र आदिवासी बहुल है और वर्षों से बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझता रहा है। राजनगर थाना अंतर्गत टांगरानी जैसे गांवों में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति कभी भी संतोषजनक नहीं रही। यही वजह है कि हर बार किसी भी दुर्घटना के समय, सबसे पहले स्थानीय लोग ही "फर्स्ट रिस्पॉन्डर" बनते हैं।
क्या कहते हैं स्थानीय लोग?
घटना के बाद एक स्थानीय युवक रंजीत महतो ने बताया, “हमने कई बार देखा है कि 108 एंबुलेंस समय पर नहीं आती। आज भी अगर हम लोग खुद न भागते, तो शायद इन दोनों की जान पर बन आती।”
आखिर सवाल वही पुराना...
जब बात जिंदगी और मौत की हो, तो क्या हम अब भी "व्यस्तता" जैसे बहाने को स्वीकार करेंगे? क्या सरकार की योजनाएं कागजों से निकलकर ज़मीन पर उतरी हैं? और अगर नहीं, तो इसका ज़िम्मेदार कौन?
टांगरानी गांव की यह घटना सिर्फ एक हादसे की खबर नहीं, बल्कि हमारे तंत्र की हकीकत का आईना है। जहां एक ओर आम लोग इंसानियत की मिसाल पेश करते हैं, वहीं सिस्टम की लापरवाही फिर सवालों के घेरे में आ जाती है। अगर यही हाल रहा, तो अगली बार शायद किसी की जान समय की अनदेखी का शिकार हो जाए। वक्त है, जब हमें न सिर्फ सोचने, बल्कि ठोस कदम उठाने की ज़रूरत है।
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