Ratlam Insult: सैलाना विधायक के साथ डॉक्टर का दुर्व्यवहार, जातिसूचक गालियों और धमकी का आरोप
रतलाम के सैलाना विधायक कमलेश्वर डोडियार के साथ जातिसूचक अपशब्द और दुर्व्यवहार का आरोप। डॉक्टर के खिलाफ SC/ST एक्ट के तहत कार्रवाई की मांग।
रतलाम, मध्य प्रदेश: रतलाम जिले के सैलाना विधानसभा क्षेत्र से भारत आदिवासी पार्टी (BAP) के विधायक कमलेश्वर डोडियार के साथ एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है। आरोप है कि जिला अस्पताल, रतलाम में पदस्थ डॉक्टर चंद्र प्रताप सिंह राठौड़ ने उनके साथ जातिसूचक अपशब्दों का इस्तेमाल किया, अपमान किया, और जान से मारने की धमकी दी। इस घटना को लेकर आदिवासी समुदाय में रोष फैल गया है।
क्या है पूरा मामला?
विधायक कमलेश्वर डोडियार ने आरोप लगाया है कि डॉक्टर चंद्र प्रताप सिंह राठौड़ ने सवर्ण मानसिकता से प्रेरित होकर उनके साथ दुर्व्यवहार किया। उन्होंने कहा कि यह घटना आदिवासी समाज के प्रति बढ़ते भेदभाव और दुर्व्यवहार का ताजा उदाहरण है। डॉक्टर ने कथित रूप से उन्हें और उनके समाज को "नीच और हेय" कहकर संबोधित किया।
भारत आदिवासी पार्टी की मांग
इस मामले को लेकर भारत आदिवासी पार्टी (BAP) ने SC/ST अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 के तहत तत्काल एफआईआर दर्ज कर डॉक्टर के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई की मांग की है। साथ ही, राष्ट्रपति से अनुरोध किया है कि ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए सख्त कदम उठाए जाएं।
आदिवासी समाज: इतिहास और संघर्ष
भारत का आदिवासी समाज देश के मूल निवासी (एबोरिजिनल) माने जाते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 5 जनवरी 2011 को कैलाश बनाम महाराष्ट्र सरकार मामले में इसे प्रमाणित भी किया था। बावजूद इसके, आदिवासी समाज को उनके अधिकारों से वंचित किया जाता रहा है।
मध्य प्रदेश के पश्चिमी इलाकों, खासकर राजस्थान की सीमा से लगे रतलाम जिले, झाबुआ, और अलीराजपुर जैसे क्षेत्रों में आदिवासी बहुलता के बावजूद उनके साथ भेदभाव और अत्याचार की घटनाएं अक्सर सामने आती हैं।
समाज में बढ़ता असंतोष
विधायक डोडियार ने कहा कि यह सिर्फ व्यक्तिगत मामला नहीं है, बल्कि आदिवासी समाज के साथ किए जा रहे अन्याय और दुर्व्यवहार का प्रतीक है। उन्होंने कहा,
"आदिवासी समाज भारत का मूल मालिक है, लेकिन उनके साथ ऐसा व्यवहार करना दुर्भाग्यपूर्ण है।"
डॉक्टर के खिलाफ कार्रवाई की मांग
विधायक और पार्टी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि यदि डॉक्टर के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं की गई, तो वे आंदोलन करेंगे।
सरकारी प्रतिक्रिया और जांच
जिला प्रशासन ने घटना की गंभीरता को देखते हुए जांच शुरू कर दी है। अधिकारियों का कहना है कि मामले की निष्पक्षता से जांच की जाएगी और दोषी पाए जाने पर उचित कार्रवाई होगी।
आदिवासी नेताओं की प्रतिक्रिया
इस घटना ने पूरे आदिवासी समाज को आक्रोशित कर दिया है। सामाजिक और राजनीतिक संगठनों ने इसे आदिवासी समाज के आत्मसम्मान पर चोट बताया।
जातिगत भेदभाव और भारतीय संविधान
भारतीय संविधान ने समानता का अधिकार प्रदान किया है। अनुच्छेद 15 और 17 जातिगत भेदभाव और अस्पृश्यता को समाप्त करने की गारंटी देते हैं। इसके बावजूद, इस तरह की घटनाएं दिखाती हैं कि समाज में गहरी बैठी पूर्वाग्रह की मानसिकता को बदलने की जरूरत है।
इस घटना ने एक बार फिर भारतीय समाज में जातिगत भेदभाव की कड़वी सच्चाई को उजागर किया है। आदिवासी समाज ने अपने अधिकारों और सम्मान की लड़ाई में एकजुटता दिखाई है। देखना होगा कि प्रशासन इस मामले को कैसे हल करता है और पीड़ितों को न्याय दिलाने में कितना सक्षम साबित होता है।
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