Jamshedpur Protest: विस्थापितों ने खोला मोर्चा, टाटा कंपनी और सरकार के खिलाफ उठी आवाज
जमशेदपुर में विस्थापितों की बड़ी बैठक, टाटा कंपनी और सरकार से 1932 खतियान के आधार पर पुनर्वास और मुआवजे की मांग। जानें पूरी रिपोर्ट।

जमशेदपुर के डिमना डैम हेलीपेड मैदान में 9 मार्च को विस्थापितों की एक अहम बैठक हुई, जिसमें टाटा कंपनी और सरकार के खिलाफ गहरा आक्रोश देखने को मिला। वर्षों से विस्थापित अपने अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन अब उन्होंने एकजुट होकर सरकार और कंपनी से जवाब मांगने का फैसला किया है।
विस्थापन का इतिहास: कब और कैसे उजड़ी बस्तियां?
डिमना डैम और टाटा कंपनी के विस्तार के चलते सैकड़ों परिवारों को अपनी जमीनें और घर छोड़ने पड़े। इस विस्थापन की जड़ें 1932 के खतियान तक जाती हैं, जब झारखंड में जमीन के मालिकाना हक को लेकर सर्वे हुआ था। बाद में, 1996 में हुए नए सेटलमेंट ने विस्थापितों की स्थिति और भी जटिल बना दी, क्योंकि इससे उनकी कानूनी मान्यता पर सवाल खड़े हो गए।
बैठक में रखी गई विस्थापितों की प्रमुख मांगें
इस बैठक में विस्थापितों ने अपनी समस्याओं को उठाते हुए 6 प्रमुख प्रस्ताव पारित किए:
- विस्थापित प्रमाण पत्र की मांग: टाटा कंपनी और डिमना डैम से विस्थापित हुए लोगों को आधिकारिक रूप से प्रमाण पत्र दिया जाए, जिससे उन्हें सरकारी लाभ मिल सके।
- 1932 खतियान के आधार पर पुनर्वास: जिनका नाम 1932 खतियान में दर्ज है, उन्हें चिन्हित कर पुनर्वास और मुआवजा दिया जाए।
- 1996 का सेटलमेंट रद्द हो: विस्थापितों ने 1996 के सर्वे सेटलमेंट को गलत ठहराते हुए इसे निरस्त करने की मांग की।
- त्रिपक्षीय वार्ता फिर से शुरू हो: विस्थापितों, सरकार और टाटा कंपनी के बीच 32 दौर की वार्ता बंद हो गई थी, जिसे दोबारा शुरू करने की मांग उठी।
- कंपनी द्वारा अधिग्रहित भूमि वापस मिले: जिन जमीनों पर टाटा कंपनी का अधिकार नहीं है, उन्हें 2013 भूमि अधिग्रहण कानून के तहत विस्थापितों को लौटाया जाए।
- रोजगार में प्राथमिकता: टाटा कंपनी की भर्तियों और ठेकेदारी में विस्थापितों को वरीयता दी जाए।
आंदोलन की धार और रणनीति
बैठक में मौजूद प्रमुख नेताओं ने स्पष्ट कर दिया कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी गईं, तो वे आंदोलन को और तेज करेंगे। विस्थापितों के समर्थन में कई स्थानीय संगठन भी सामने आ रहे हैं।
बैठक में हरमोहन महतो, दीपक रंजीत, प्रहलाद गोप, उत्तम कुमार प्रधान, देवन सिंह, सोहन सिंह, गोपाल माझी, तपन पांडा, गौर हेमब्रम, निरंजन गौड़, मधुसूदन प्रधान, प्रोबध सिंह, सारथी दास, प्रदीप कुमार सोरेन जैसे प्रमुख लोग मौजूद थे।
क्या कहती है सरकार और टाटा कंपनी?
अब सवाल यह उठता है कि सरकार और टाटा कंपनी विस्थापितों की मांगों पर क्या कदम उठाएंगे? क्या 1932 खतियान के आधार पर उन्हें न्याय मिलेगा या यह संघर्ष और लंबा खिंचेगा? विस्थापितों के इस आंदोलन पर सरकार और कंपनी की प्रतिक्रिया आने वाले दिनों में तय करेगी कि यह लड़ाई किस दिशा में जाएगी।
What's Your Reaction?






