Ranchi: कोर्ट का फैसला, 8 परिजनों को बड़ी राहत, सबूतों के अभाव में बरी
रांची में सरिया से मारपीट के गंभीर आरोप में फंसे एक ही परिवार के 8 सदस्यों को कोर्ट ने साक्ष्य के अभाव में बरी किया। जानें पूरा मामला और फैसला।
रांची: न्यायिक दंडाधिकारी की अदालत ने सोमवार को सरिया से मारपीट के एक सनसनीखेज मामले में बड़ा फैसला सुनाया। अदालत ने साक्ष्य के अभाव में डोरंडा थाना क्षेत्र के गांधी नगर हिनू निवासी स्व. राज कुमार साव के एक बेटे और छह बेटियों समेत उनकी पत्नी को बरी कर दिया। यह मामला 4 सितंबर 2021 को दर्ज हुआ था, जब बिरसा चौक निवासी प्रीति देवी ने इन सभी पर घर में घुसकर उनके पति को सरिया से गंभीर रूप से घायल करने का आरोप लगाया था।
क्या था मामला?
प्रीति देवी ने अपनी प्राथमिकी में बताया था कि आरोपी उनके घर में जबरन घुस आए और सरिया से हमला कर उनके पति को गंभीर रूप से जख्मी कर दिया। आरोपियों में राहुल कुमार (राज कुमार साव का बेटा), सरिका कुमारी, बबीता कुमारी, सुनिता कुमारी, अनिता कुमारी, तनु कुमारी उर्फ जानवी कुमारी, खुशी कुमारी (सभी बेटियां) और प्रमिला देवी (पत्नी) शामिल थे।
क्यों बरी हुए आरोपी?
मुकदमे की सुनवाई के दौरान सबसे बड़ा मोड़ तब आया जब आरोपों की पुष्टि के लिए कोर्ट में एक भी गवाह उपस्थित नहीं हुआ। अभियोजन पक्ष के पास मामले को साबित करने के लिए पुख्ता साक्ष्य नहीं थे। अदालत ने साक्ष्य के अभाव को देखते हुए आरोपियों को बरी कर दिया।
परिवार के लिए बड़ी राहत
यह फैसला स्वर्गीय राज कुमार साव के परिवार के लिए राहत की सांस लेकर आया। परिवार पर लगे गंभीर आरोपों और लंबे समय से चल रहे मुकदमे के कारण उनकी सामाजिक स्थिति और मानसिक स्थिति पर बुरा असर पड़ा था। अब जब अदालत ने सभी को निर्दोष करार दिया है, यह उनके लिए एक नई शुरुआत का संकेत है।
इतिहास में ऐसे मामले
ऐसे मामलों में, जहां सबूत कमजोर होते हैं या गवाह कोर्ट में पेश नहीं होते, अदालतें अक्सर अभियुक्तों को बरी कर देती हैं। भारत के न्यायिक इतिहास में कई उदाहरण हैं जहां साक्ष्य के अभाव में आरोपी बच निकलते हैं। यह घटना न्यायिक प्रक्रिया की मजबूती और साक्ष्य के महत्व को भी रेखांकित करती है।
डोरंडा थाना क्षेत्र में बढ़ते विवाद
डोरंडा थाना क्षेत्र में विवादों और मारपीट के मामलों का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है। स्थानीय प्रशासन ने कई बार विवाद निपटारे और क्षेत्र में शांति बहाल करने की पहल की है, लेकिन ऐसे मामले अब भी सामने आते रहते हैं।
रांची कोर्ट का यह फैसला एक महत्वपूर्ण संदेश देता है कि किसी भी मामले में साक्ष्य और गवाहों का कितना महत्व है। बिना ठोस सबूत के, कोई भी आरोप अदालत में टिक नहीं सकता। इस मामले ने एक परिवार को तो राहत दी है, लेकिन यह भी स्पष्ट किया है कि झूठे आरोपों का सहारा लेना अंततः समाज और न्यायपालिका के लिए नुकसानदायक हो सकता है।
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