Prayagraj Achievement: झारखंड की अमरजीत बनीं महामंडलेश्वर, इतिहास रचकर धर्मध्वज लहराने का संकल्प
झारखंड की अमरजीत सिंह को प्रयागराज महाकुंभ में महामंडलेश्वर की उपाधि दी गई। जानिए कैसे बनीं तृतीय लिंग समुदाय की पहली महामंडलेश्वर और उनकी प्रेरणादायक यात्रा।
प्रयागराज: महाकुंभ प्रयागराज में एक ऐतिहासिक क्षण दर्ज हुआ, जब झारखंड की अमरजीत सिंह को वैष्णो किन्नर अखाड़ा द्वारा महामंडलेश्वर की उपाधि से सम्मानित किया गया। अमरजीत सिंह, जो लंबे समय से तृतीय लिंग समुदाय के अधिकारों के लिए संघर्षरत हैं, अब सनातन धर्म की सेवा में नई भूमिका निभाते हुए पूरे झारखंड में धर्मध्वजा लहराने का संकल्प ले चुकी हैं।
ऐतिहासिक अभिषेक: कब और कैसे हुआ?
महाकुंभ के पवित्र अवसर पर वैष्णो किन्नर अखाड़ा के अर्धनारीश्वर धाम में जगतगुरु हिमांगी सखी मां ने विधिवत पटाभिषेक कर अमरजीत को महामंडलेश्वर की उपाधि प्रदान की। इस दौरान उनका नया नाम श्री श्री 1008 साध्वी अमरजीत सखी रखा गया।
यह अवसर न केवल झारखंड बल्कि पूरे तृतीय लिंग समुदाय के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण था, क्योंकि इससे पहले झारखंड में किसी भी तृतीय लिंग व्यक्ति को यह गौरव नहीं मिला था।
अमरजीत कौन हैं? – जानिए उनकी प्रेरणादायक यात्रा
अमरजीत सिंह न सिर्फ सामाजिक कार्यकर्ता हैं, बल्कि झारखंड की उत्थान संस्थान नामक संस्था चलाती हैं, जो तृतीय लिंग समुदाय के सशक्तिकरण और अधिकारों के लिए कार्य करती है।
- पेशेवर भूमिका: अमरजीत टाटा स्टील में कार्यरत हैं।
- सामाजिक योगदान: उत्थान संस्थान के माध्यम से उन्होंने कई तृतीय लिंग व्यक्तियों को रोजगार, शिक्षा और समाज में सम्मान दिलाने का कार्य किया है।
- आध्यात्मिक मार्ग: अब महामंडलेश्वर की भूमिका में वे सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार में भी सक्रिय रहेंगी।
महामंडलेश्वर का पद क्या है और क्यों महत्वपूर्ण है?
महामंडलेश्वर सनातन धर्म में एक सम्मानित धार्मिक पद होता है, जो धर्म प्रचार, समाज सुधार और आध्यात्मिक नेतृत्व का प्रतीक होता है।
- अर्थ: 'महामंडलेश्वर' का अर्थ है – एक महान आध्यात्मिक गुरु, जो धर्म और संस्कृति की रक्षा करता है।
- भूमिका: धार्मिक अनुष्ठानों का नेतृत्व, प्रवचन और सामाजिक कल्याण कार्य।
- इतिहास: प्राचीन काल में यह पद केवल पुरुष संतों को दिया जाता था, लेकिन हाल के वर्षों में किन्नर अखाड़ों ने भी इस परंपरा को अपनाया है।
प्रयागराज महाकुंभ में क्यों हुआ यह आयोजन?
प्रयागराज महाकुंभ सदियों पुरानी आध्यात्मिक परंपरा का हिस्सा है। यहां साधु-संत और महामंडलेश्वर का अभिषेक और प्रतिष्ठा अनुष्ठान किया जाता है। अमरजीत सिंह का अभिषेक इसी पवित्र परंपरा के तहत किया गया।
यह न केवल धार्मिक बल्कि सामाजिक क्रांति का संकेत भी है, जहां तृतीय लिंग समुदाय को भी धर्मगुरु के रूप में समान अधिकार मिल रहे हैं।
अमरजीत का संकल्प: धर्म की ध्वजा लहराने का वादा
अमरजीत सिंह ने अपने महामंडलेश्वर बनने के बाद संकल्प लिया:
"मैं पूरे झारखंड में सनातन धर्म की सेवा करूंगी और विश्वभर में धर्मध्वजा लहराऊंगी। मेरा उद्देश्य तृतीय लिंग समुदाय को समाज में सम्मान और धार्मिक पहचान दिलाना है।"
किन्नर अखाड़ों का इतिहास और महत्व
किन्नर अखाड़े भारतीय धार्मिक संस्कृति का एक नया और महत्वपूर्ण पहलू हैं।
- स्थापना: 2015 में उज्जैन महाकुंभ में वैष्णो किन्नर अखाड़े की स्थापना हुई।
- उद्देश्य: तृतीय लिंग समुदाय को धार्मिक और सामाजिक पहचान दिलाना।
- प्रमुख गतिविधियां: धर्म प्रचार, सामाजिक सेवा, आध्यात्मिक शिक्षा।
समाज में बढ़ते कदम: क्या बदलेगा अब?
अमरजीत सिंह का महामंडलेश्वर बनना सामाजिक समावेशिता की दिशा में एक बड़ा कदम है।
- धार्मिक नेतृत्व: तृतीय लिंग समुदाय के लोग भी अब धार्मिक नेतृत्व करेंगे।
- समानता की ओर: समाज में समानता और सम्मान का संदेश।
- सशक्तिकरण: तृतीय लिंग समुदाय को एक नई पहचान।
महामंडलेश्वर साध्वी अमरजीत सखी का अभिषेक न केवल झारखंड बल्कि पूरे भारत के लिए ऐतिहासिक क्षण है। यह धार्मिक समावेशिता और सामाजिक परिवर्तन का प्रतीक बन चुका है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि अमरजीत सिंह धर्म और समाज सुधार के क्षेत्र में किस तरह से अपनी भूमिका निभाती हैं।
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